समय से प्रबंधन न होने से डेंगू बुखार पहुंचा सकता है खतरा: डॉ. मोनिका
प्रयागराज,17 मई(हि.स.)। कुछ मामलों में डेंगू बुखार गंभीर रूपों में विकसित हो सकता है। जिसमें डेंगू शॉक सिंड्रोम शामिल है। यदि इसका तत्काल प्रबंधन न किया जाय तो यह जीवन के लिए खतरा पैदा कर सकता है। यह बात शनिवार को मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के माइक्रोबायोलॉजी विभाग में राष्ट्रीय डेंगू दिवस आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए माइक्रोबायोलॉजी विभाग की सह आचार्य डॉ मोनिका ने कही।
उन्होंने डेंगू बुखार के लक्षणों जैसे अचानक तेज बुखार आना, गंभीर सिरदर्द, रेट्रो-ऑर्बिटल दर्द (आंखों के पीछे दर्द), जोड़ों और मांसपेशियों में दर्द, दाने और हल्के रक्तस्राव जैसे या मसूड़ों से खून आना आदि के विषय पर अपने विचार व्यक्त किया।
उन्होंने बताया कि इस वर्ष की थीम: शीघ्र कार्रवाई करें, डेंगू को रोकें: स्वच्छ पर्यावरण, स्वस्थ जीवन है। उत्तर प्रदेश की बड़ी आबादी विशेष कर शहरी डेंगू में एडीज मच्छरों के प्रजनन स्थलों की प्रचुरता के कारण डेंगू नियंत्रण में अधिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। ये मच्छर आम तौर पर दिन के समय काटते हैं। डेंगू वायरस के फाइप सीरोटाइप (डेन-1, डेन-2, डेन-3, डेन-4 और डेन-5) होते है, जिसमें डेन-5, भारत में कम देखा गया है। कुछ मरीजों में एक से अधिक सीरोटाइप हो सकते है। डेंगू का प्रकोप पूरे देश में समय समय पर होता रहता है।
मानसून के मौसम के दौरान मामलों की संख्या बढ़ जाती है, जो आम तौर पर जूनसे सितंबर तक रहता है। माइक्रोबायोलॉजी विभाग में डेंगू जांच हेतु सेंटिनल सेर्विलांस हॉस्पिटल, लैब संचालित है, जिसमें प्रयागराज एवं आस -पास के जिलों जैसे , प्रतापगढ़, कौशाम्बी आदि जिलों से रैपिड टेस्ट में आये हुए धनात्मक नमूनों का कन्फर्मेशन ईएलआईएसए जांच द्वारा किया जाता है। प्रत्येक वर्ष मानसून के मौसम में लगभग 1500-2000 मरीजों की डेंगू जांच की जाती है। इस जांच हेतु किट की व्यवस्था एनआईटीवीएआर पुणे एवं उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा की जाती है।
बचाव करने को जनजागरूकता सबसे महत्वपूर्ण: डॉ.गरिमा गौड़
सहायक आचार्य डॉ गरिमा गौड़ ने भारत सरकार द्वारा चलाये जा रहे, नेशनल वेक्टर जनित बीमारी एवं नियंत्रण कार्यक्रम के बारे में जानकारी साझा की, इनमें फॉगिंग, लार्विसाइडल उपचार, जनजागरूकता अभियान और सामुदायिक जुटाव शामिल हैं।
सहायक आचार्य, डॉ अंजली ने बताया की कि मॉनसून के मौसम में रुका हुआ पानी एडीज मच्छरों के लिए अंडे देने के लिए आदर्श है, जिससे संक्रमण में वृद्धि होती है। एडीज़ मच्छरों के लचीले पन और विभिन्न वातावरणों के अनुकूल होने की उनकी क्षमता के कारण वेक्टर नियंत्रण प्रयासों को चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। फॉगिंग और अन्य पारंपरिक तरीके हमेशा प्रभावी नहीं हो सकते हैं, और प्रजनन स्थलों को लक्षित करने के लिए निरंतर प्रयासों की आवश्यकता होती है।
इस कार्यक्रम में एक पोस्टर प्रतियोगिता का भी आयोजन किया गया , जिसमे एम.बी. बी.एस. (63बैच ) के छात्र छात्रों ने प्रतिभाग किया। मोतीलाल नेहरू मेडिकल कालेज की प्रधानाचार्य प्रो (डॉ) वत्सला मिश्रा ने प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय पुरूस्कार प्रदान कर छात्र छात्रों का मनोबल बढ़ाया तथा डेंगू के प्रकोप को रोकने के लिए सभी को आगे आने एवं अपने आस पास साफ सफाई का ख्याल रखने के लिये प्रोत्साहित किया।
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