हिमाचल प्रदेश के 6 मुख्य संसदीय सचिव (सीपीएस) से जुड़े मामले की आज सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को बड़ी राहत दी है। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुसार पूर्व सीपीएस विधायक पद पर बने रहेंगे। इन पर हाईकोर्ट के फैसले का पैरा 50 फिलहाल लागू नहीं होगा। इस निर्णय के बाद अब संबंधित विधायकों की सदस्यता को खतरा नहीं है।

हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि सरकार न तो नया सीपीएस नियुक्त कर पाएगी और न ही जो सीपीएस बाहर किए गए हैं, उन्हें बरकरार रख पाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षकारों को निर्देश दिया है कि वे अगले 2 सप्ताह के भीतर अपना जवाब दाखिल करें। अदालत ने मामले की अगली सुनवाई की तारीख 20 जनवरी तय की है।

बता दें कि हाईकोर्ट ने हिमाचल प्रदेश के सीपीएस कानून 2006 को असंवैधानिक करार दिया है। हाईकोर्ट के निर्णय के बाद 6 विधायकों अर्की से संजय अवस्थी, दून से राम कुमार चौधरी, पालमपुर से आशीष बुटेल, रोहड़ू से मोहन लाल ब्राक्टा, बैजनाथ से किशोरी लाल और कुल्लू से सुंदर सिंह ठाकुर को मुख्य संसदीय सचिव के पद से हटना पड़ा है।

हाईकोर्ट के फैसले के बाद सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जहां आज मामले की सुनवाई हुई। सरकार की ओर दायर याचिकाओं में कहा गया कि मुख्य संसदीय सचिव और संसदीय सचिव के पद 70 वर्षों से भारत और 18 वर्षों से हिमाचल में हैं। याचिका में दलील दी गई है कि हिमाचल सरकार ने गुड गवर्नेंस और जनहित के कार्यों के लिए सीपीएस नियुक्त किए थे। इस फैसले के बाद हिमाचल प्रदेश के राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज हो गई है। इस मामले को लेकर विपक्ष जहां सरकार पर हमलावर है, वहीं सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है।

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