साल 2019 के अंत में कोरोना वायरस का पहला मामला चीन में दर्ज किया गया था। तब ये वायरस दुनियाभर में करोड़ों लोगों की जान ले चुका है। एक के बाद एक कोरोना वायरस के कई नए वैरिएंट सामने आए हैं। भारत में दूसरी लहर के दौरान कहर मचाने वाले कोरोना के डेल्टा वैरिएंट के बाद अल्फा ने भी कई लोगों की जान ली थी। अब ऐसा ही एक और वैरिएंट उभर कर सामने आया है जिसका नाम आर्कटुरस (Arcturus) है।
खुद विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने नए कोविड वैरिएंट आर्कटुरस के बारे में चेतावनी दी है। इस वैरिएंट को एक्सबीबी.1.16 भी कहा जा रहा है। कोरोना वायरस का आर्कटुरस वैरिएंट सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया, यूके और यूएस सहित 22 देशों में पाया जा चुका है। दुनियाभर में कोरोना मामलों में बढ़ोत्तरी के लिए इसी कोविड सबवैरिएंट को जिम्मेदार माना जा रहा है। यही वजह है कि स्वास्थ्य अधिकारियों को एक बार फिर से मास्क अनिवार्य करने की सलाह दी है।
यह वैरिएंट का पहली बार इसी साल जनवरी में पता चला था। उसके बाद इसका प्रसार बढ़ा है। WHO ने वैरिएंट को चिंता का विषय बताया है। विश्व स्वास्थ्य निकाय नए स्ट्रेन की निगरानी कर रहा है। जीव विज्ञान अनुसंधान वेबसाइट BioRxiv पर प्रकाशित टोक्यो विश्वविद्यालय के एक अध्ययन के अनुसार, नया वैरिएंट ओमिक्रॉन संस्करण की तुलना में 1.2 गुना अधिक संक्रामक हो सकता है।
आर्कटुरस वैरिएंट के मुख्य लक्षणों में सांस लेने में तकलीफ, खांसी और कंजक्टिवाइटिस (नेत्रश्लेष्मलाशोथ) व कुछ मामलों में आंखें चिपचिपी हो जाना शामिल हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ लीड्स में वायरोलॉजी के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ स्टीफन ग्रिफिन ने द मिरर को बताया, “हां, यह सच है कि भारत में बच्चों में कंजक्टिवाइटिस में वृद्धि हुई है। इसका कारण एक खास प्रकार का वायरस हो सकता है।” शोधकर्ताओं ने भी आर्कटुरस की पहचान आंख में दिक्कत करने वाले वायरस के तौर पर की है, जो पहले कंजंक्टिवाइटिस का कारण बन सकता है।
ग्रिफिन ने कहा, “मुझे लगता है कि इसके आधार पर और अध्ययन किए जाने की जरूरत है, लेकिन निश्चित रूप से ऐसा हो रहा है।” कंजक्टिवाइटिस एक आंख का संक्रमण है। आंखों का फटना या पानी आना, लालिमा, सूजन, दर्द या जलन, खुजली, डिस्चार्ज कंजंक्टिवाइटिस के लक्षण हैं। इसे पहले कोविड के लक्षणों के रूप में रिपोर्ट किया गया है लेकिन ज्यादातर मामलों में ऐसा नहीं था। कई अध्ययनों में दावा किया गया है कि एक्सबीबी.1.16 वेरिएंट (आर्कटुरस) XBB.1 और XBB.1.5 की तुलना में लगभग 1.17 से 1.27 गुना फैलता है। यही कारण है कि यह निकट भविष्य में दुनिया भर में फैल सकता है।