बसपा संस्थापक कांशीराम की प्रतिमा का रायबरेली में लोकार्पण कर समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने विरासत पर दावेदारी की जो जंग छेड़ी है उसने समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच दूरियां और बढ़ा दी हैं। यही नहीं अपने आधार वोट बैंक को लेकर सचेत हुई बसपा की ओर से समाजवादी पार्टी पर हमले भी तेज हो गए हैं। ताजा हमला पार्टी सु्प्रीमो मायावती ने किया है।
बुधवार को एक के बाद एक तीन ट्वीट कर मायावती ने सपा पर स्वामी के बहाने बड़ा इल्जाम लगाया। मायावती ने कहा है कि है 1993 में कांशीराम ने मिशनरी भावना के तहत सपा-बसपा गठबंधन की सरकार बनाई। इस गठबंधन की ओर से मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव बने लेकिन इसके बाद भी सपा ने बसपा को बदनाम करना शुरू कर दिया। मायावती के मुताबिक उस दौर में अयोध्या, श्रीराम मंदिर और अपरकास्ट (सवर्ण) समाज से सम्बन्धित जो नारे प्रचारित किए गए वे बसपा को बदनाम करने की सपा की शरारत और सोची-समझी साजिश थी।
बता दें कि रायबरेली की सभा में 1993 में सपा-बसपा के गठबंधन के दौर का एक बहुचर्चित नारा ‘मिले मुलायम-कांशीराम, हवा में उड़ गए….’ लगवाने पर स्वामी प्रसाद मौर्य पर केस हो गया है। मायावती ने अपने पहले ट्वीट में लिखा कि सपा प्रमुख की मौजूदगी में ’मिले मुलायम-कांशीराम, हवा में उड़ गए…’ नारे को लेकर रामचरित मानस विवाद वाले सपा नेता पर मुकदमा होने की खबर आज सुर्खि़यों में है। वास्तव में यूपी के विकास और जनहित के बजाय जातिवादी द्वेष एवं अनर्गल मुद्दों की राजनीति करना सपा का स्वभाव रहा है।
मायावती ने आगे लिखा, ‘यह हकीकत लोगों के सामने बराबर आती रही है कि सन 1993 में मान्यवर श्री कांशीराम जी ने सपा-बसपा गठबंधन मिशनरी भावना के तहत बनाई थी, किन्तु श्री मुलायम सिंह यादव के गठबंधन का सीएम बनने के बावजूद उनकी नीयत पाक-साफ न होकर बसपा को बदनाम करने व दलित उत्पीड़न को जारी रखने की रही।’ मायावती यहीं नहीं रुकीं। अपने तीसरे ट्वीट में उन्होंने लिखा, ‘इसी क्रम में उस दौरान अयोध्या, श्रीराम मन्दिर व अपरकास्ट समाज आदि से सम्बंधित जिन नारों को प्रचारित किया गया था वे बीएसपी को बदनाम करने की सपा की शरारत व सोची-समझी साजिश थी। अतः सपा की ऐसी हरकतों से खासकर दलितों, अन्य पिछड़ों व मुस्लिम समाज को सावधान रहने की सख्त जरूरत।’
दरअसल, मायावती मिशन-2024 के मद्देनज़र मुस्लिम वोटरों को बसपा से जोड़ने की पुरजोर कोशिश कर रही हैं। मायावती का मानना है कि पूर्व में सवर्ण समाज के लिए अपनी पार्टी के दरवाजे खोलकर उन्होंने जिस सोशल इंजीनियरिंग के जरिए बहुमत से यूपी की सत्ता हासिल की थी उसे पूरी तरह न सही लेकिन नए समीकरणों के साथ दोहराने की कोशिश की जा सकती है। इसी वजह से मायावती सर्वसमाज की बात कर रही हैं। अयोध्या, श्रीराम मंदिर और अपरकास्ट के खिलाफ पूर्व में फैलाए गए नारों से पल्ला झाड़ने के पीछे भी यही रणनीति दिखती है।
वहीं दूसरी ओर मायावती की कोशिश मुस्लिम वोटरों को लगातार यह संदेश देने की है कि भाजपा से लड़ने में एकमात्र वही सक्षम हैं। गौरतलब है कि 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में मात्र एक सीट जीतने के बाद उन्होंने इसके लिए मुस्लिमों के एकतरफा सपा की ओर जाने को जिम्मेदार ठहराया था। मायावती ने कहा था कि मुसलमानों को एकतरफा सपा के पक्ष में जाते देख हिंदू वोटों का बीजेपी के पक्ष में ध्रुवीकरण हुआ और इसी वजह से वो दोबारा पूर्ण बहुमत से सत्ता में आग गई। इधर, दलित वोटरों को रिझाने की सपा और भाजपा की कोशिशों को देखते हुए मायावती बसपा के इस आधार वोट बैंक को लेकर भी सतर्क हो गई हैं। उन्होंने अपने गुरु और पार्टी संस्थापक कांशीराम की विरासत को सपा की दावेदारी से बचाने के लिए नए सिरे अखिलेश की घेराबंदी शुरू कर दी है।