कुछ दिन पहले ही संसद का मानसून सत्र समाप्त हुआ था। इस सत्र के दौरान काफी हंगामा हुआ और कई महत्वपूर्ण बिल भी पारित कराए गए। आज संसदीय कार्यमंत्री प्रह्लाद जोशी के एक ट्वीट ने उस वक्त हलचल मचा दी जिसमें इस बारे में जानकारी दी गई कि 18 से 22 सितंबर के बीच संसद का विशेष सत्र बुलाया गया है और इसमें पांच बैठकें होंगी। लेकिन इस ट्विट में उन्होंने यह नहीं बताया कि यह सत्र क्यों बुलाया जा रहा है? इसी वजह से कयासों का बाजार गर्म हो गया। पक्ष या विपक्ष किसी को कोई आइडिया ही नहीं मिल पा रहा है कि इस सत्र में होगा क्या? इस सत्र की टाइमिंग को लेकर भी सवाल उठने शुरू हो गए हैं की क्या सरकार इस सत्र के दौरान एक देश एक चुनाव से संबंधित बिल पेश करेगी, ताकि साल के अंत में पांच राज्यों में होने वाले चुनाव के समय ही लोकसभा चुनाव करवा सके। क्योंकि विपक्ष के कई नेता जैसे नीतीश कुमार, ममता बनर्जी भी इस बारे ने बात कर चुके हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई मौकों पर खुलेआम एक देश-एक चुनाव का जिक्र कर चुके हैं। वे लंबे समय से एक साथ चुनाव करवाने के पक्षधर रहे हैं। कुछ साल पहले उन्होंने इसको लेकर सर्वदलीय बैठक भी बुलाई थी। लेकिन राय अलग होने के कारण इस बैठक से कोई निष्कर्ष नहीं निकला था।
राज्यसभा में चर्चा के दौरान पीएम ने कहा था ‘सीधे कह देना कि हम इसके पक्षधर नहीं हैं। आप इस पर चर्चा तो करिए भाई, आपके विचार होंगे। हम चीजों को स्थगित क्यों करते हैं। मैं मानता हूं जितने भी बड़े-बड़े नेता हैं, उन्होंने कहा है कि यार इस बीमारी से मुक्त होना चाहिए। पांच साल में एक बार चुनाव हों, महीना-दो महीना चुनाव का उत्सव चले। उसके बाद फिर काम में लग जाएं। ये बात सबने बताई है। सार्वजनिक रूप से स्टैंड लेने में दिक्कत होती होगी।’
सीधे-सीधे शब्दों में कहें तो पीएम मोदी का ‘एक देश-एक चुनाव’ करवाने के पीछे तर्क यह है कि इससे न सिर्फ समय की बचत होगी, बल्कि देश का संसाधन भी बचेगा। देश के जवान को आधे से ज्यादा समय चुनाव करवाने में लगे रहते हैं, जिस कारण एक जगह से दूसरे जगह जाते रहते हैं, इसमें जो बड़ी राशि खर्च होती है। उस पर भी लगाम लगेगा। ऐसे में बीजेपी का तर्क है कि यदि इन चुनावों को एक साथ करवाया जाता है तो पैसे और समय की बचत होगी, जिसे देश के विकास में लगाया जा सकेगा।