उत्तर प्रदेश में पान-मसाला उत्पादन में गिरावट के कारण जीएसटी और सेस की कमाई में भारी कमी होने की संभावना है, जो राज्य और केंद्र सरकार के राजस्व को प्रभावित कर सकता है। इस गिरावट का असर न केवल राज्य के खुदरा बाजारों में दिख रहा है, बल्कि पूरे देश के उद्योगों पर भी इसका प्रभाव पड़ सकता है। लखनऊ और कानपुर की पान-मसाला फैक्ट्रियों में उत्पादन में 90 प्रतिशत तक की कमी आ चुकी है, जिसका असर इन उत्पादों के खुदरा विक्रेताओं पर पड़ा है।
पान-मसाला कारोबार से केंद्र और राज्य को बड़ा राजस्व मिलता है, और इसका उत्पादन घटने से इस क्षेत्र पर बुरा असर पड़ेगा। इसके साथ ही यूपी सरकार के निवेश आकर्षण अभियान को भी नुकसान हो सकता है, क्योंकि उद्योगीकरण और उत्पादन में गिरावट से राज्य की आर्थिक स्थिति पर दबाव बढ़ सकता है।
पान-मसाला पर जीएसटी और सेस के संग्रह में कमी के कारण उद्योगों को नए निवेश लाने में मुश्किल हो सकती है। कारोबारियों का कहना है कि पान-मसाला पर एमआरपी के आधार पर 32 प्रतिशत सेस का भुगतान करना पड़ता है, जो अब कम हो सकता है। इसके अलावा, सरकार के प्रयासों के बावजूद व्यापारियों को ‘चोर’ साबित करने की प्रक्रिया ने भी माहौल को तनावपूर्ण बना दिया है।
इस समस्या के समाधान के लिए राज्य और केंद्र सरकार को मिलकर एक स्थिर नीति बनाने की आवश्यकता है, ताकि पान-मसाला उद्योग की गिरावट को रोका जा सके और इसके प्रभाव को कम किया जा सके। अगर यह स्थिति इसी तरह जारी रही, तो इससे न केवल राज्य के राजस्व में कमी आएगी, बल्कि पूरे देश के औद्योगिक विकास पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।