भारत को जी-20 की अध्यक्षता की कमान मिलने से तीसरी दुनिया के देशों में एक नए आत्मविश्वास का उदय हुआ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पीटीआई/भाषा को दिए एक विशेष साक्षात्कार में यह बात कही।

साक्षात्कार में प्रधानमंत्री ने जी-20 के साथ ही रूस-यूक्रेन युद्ध, भारत में भ्रष्टाचार जातिवाद और संप्रदायवाद पर भी बात की। उन्होंने कहा कि लंबे समय से भारत को एक अरब भूखे पेट वाले देश के रूप में देखा जाता था पर यह अब दो अरब कुशल हाथों वाला देश बन चुका है। संयुक्त राष्ट्र रिफार्म पर प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि 20वीं सदी के मध्य का दृष्टिकोण 21वीं सदी में दुनिया की सेवा नहीं कर सकता। उन्होंने कश्मीर और अरुणाचल में जी-20 की बैठक पर पाकिस्तान और चीन की आपत्तियों को खारिज करते हुए कहा कि देश के हर हिस्से में बैठकें आयोजित करना स्वाभाविक है। प्रस्तुत हैं साक्षात्कार के संपादित अंश :-

प्रश्न : जी-20 की अध्यक्षता ने भारत को एक स्थाई, समावेशी और न्यायसंगत दुनिया के लिए अपने दृष्टिकोण को बढ़ावा देने और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक नेता के रूप में अपना प्रोफाइल बढ़ाने का अवसर दिया है। शिखर सम्मेलन में अब कुछ ही दिन बचे हैं, कृपया भारत की अध्यक्षता की उपलब्धियों के बारे में अपने विचार साझा करें?

उत्तर : इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए, हमें दो पहलुओं पर ध्यान देने की आवश्यकता है। पहला जी-20 के गठन पर है। दूसरा वह संदर्भ है जिसमें भारत को जी-20 की अध्यक्षता मिली। जी-20 की उत्पत्ति पिछली शताब्दी के अंत में हुई थी। दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं आर्थिक संकटों के लिए एक सामूहिक और समन्वित प्रतिक्रिया की दृष्टि को लेकर एक साथ मिलीं। 21 वीं सदी के पहले दशक में वैश्विक आर्थिक संकट के दौरान इसका महत्व और भी बढ़ गया। लेकिन जब महामारी ने दस्तक दी, तो दुनिया ने समझा कि आर्थिक चुनौतियों के अलावा, मानवता को प्रभावित करने वाली अन्य महत्वपूर्ण और तात्कालिक चुनौतियां भी हैं। इस समय तक, दुनिया पहले से ही भारत के मानव-केंद्रित विकास मॉडल पर ध्यान दे रही थी। चाहे वह आर्थिक विकास हो, तकनीकी प्रगति हो, संस्थागत वितरण हो या सामाजिक बुनियादी ढांचा हो, इन सभी को अंतिम छोर तक ले जाया जा रहा था ताकि यह सुनिश्चित हो कि कोई भी पीछे न छूटे। भारत द्वारा उठाए जा रहे इन बड़े कदमों के बारे में अधिक जागरूकता थी। यह स्वीकार किया गया कि जिस देश को सिर्फ एक बड़े बाजार के रूप में देखा जाता था, वह वैश्विक चुनौतियों के समाधान का एक हिस्सा बन गया है।

भारत के अनुभव को देखते हुए, यह माना गया कि संकट के दौरान भी मानव-केंद्रित दृष्टिकोण काम करता है। एक स्पष्ट और समन्वित दृष्टिकोण के माध्यम से महामारी के प्रति भारत की प्रतिक्रिया, प्रौद्योगिकी का उपयोग करके सबसे कमजोर लोगों को प्रत्यक्ष सहायता, टीकों का विकास और दुनिया का सबसे बड़ा टीका अभियान चलाना और लगभग 150 देशों के साथ दवाओं और टीकों को साझा करना। इन सभी को दुनिया ने महसूस किया और अच्छी तरह से इसकी सराहना भी की गई। यह समझ बढ़ रही है कि दुनिया को जिन समाधानों की आवश्यकता है, उनमें से कई पहले से ही हमारे देश में गति और पैमाने के साथ सफलतापूर्वक लागू किए जा रहे हैं। भारत की जी-20 अध्यक्षता से कई सकारात्मक प्रभाव सामने आ रहे हैं। उनमें से कुछ मेरे दिल के बहुत करीब हैं।

भारत की जी-20 अध्यक्षता ने तथाकथित ‘तीसरी दुनिया’ के देशों में भी विश्वास के बीज बोए हैं। वे जलवायु परिवर्तन और वैश्विक संस्थागत सुधारों जैसे कई मुद्दों पर आने वाले वर्षों में दुनिया की दिशा को आकार देने के लिए अधिक आत्मविश्वास हासिल कर रहे हैं। हम एक अधिक प्रतिनिधित्व और समावेशी व्यवस्था की ओर तेजी से बढ़ेंगे जहां हर आवाज सुनी जाएगी।

प्रश्नः जी–२० दुनिया के सबसे प्रभावशाली समूह के रूप में उभरा है‚ जिसमें वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का ८५ प्रतिशत हिस्सा है। अब जबकि आप ब्राजील को इसकी अध्यक्षता सौंपने वाले हैं तो जी–२० के सामने सबसे बड़़ी चुनौती के रूप में क्या देखते हैंॽ आप राष्ट्रपति लूला (लुइज इनासियो लूला ड़ी सिल्वा) को क्या सलाह देंगेॽ

 उत्तरः यह निश्चित रूप से सच है कि जी २० एक प्रभावशाली समूह है। तथापि‚ मैं आपके प्रश्न के उस भाग का समाधान करना चाहता हूं जो विश्व के ८५ प्रतिशत सकल घरेलू उत्पाद का उल्लेख करता है। जैसा कि मैंने पहले ही कहा है‚ दुनिया का जीड़ीपी–केंद्रित दृष्टिकोण अब मानव–केंद्रित दृष्टिकोण में बदल रहा है। जैसे द्वितीय विश्व युद्ध के बाद एक नई विश्व व्यवस्था देखी गई थी‚ कोविड़ के बाद एक नई विश्व व्यवस्था आकार ले रही है। प्रभाव और असर के मापदंड़ बदल रहे हैं और इसे पहचानने की आवश्यकता है। ‘सबका साथ–सबका विकास’ मॉड़ल जिसने भारत में रास्ता दिखाया है‚ वह विश्व के कल्याण के लिए भी मार्गदर्शक सिद्धांत हो सकता है। जीड़ीपी का आकार कुछ भी हो‚ हर आवाज मायने रखती है। इसके अलावा‚ मेरे लिए किसी भी देश को कोई सलाह देना सही नहीं होगा कि उनकी जी २० अध्यक्षता के दौरान क्या करना है। हर किसी की अपनी अनूठी ताकत होती है और वह उसी के अनुरूप आगे बढ़ता है। मुझे अपने मित्र राष्ट्रपति लूला के साथ बातचीत करने का सौभाग्य मिला है और मैं उनकी क्षमताओं और दृष्टिकोण का सम्मान करता हूं। मैं उन्हें और ब्राजील के लोगों को जी–२० की अध्यक्षता के दौरान उनकी सभी पहलों में बड़़ी सफलता की कामना करता हूं। हम अभी भी अगले वर्ष ‘ट्रोइका’ (जी–२० के भीतर एक शीर्ष समूह) का हिस्सा होंगे जो हमारी अध्यक्षता से परे जी–२० में हमारे निरंतर रचनात्मक योगदान को सुनिश्चित करेगा। मैं इस अवसर का लाभ उठाकर जी–२० की अध्यक्षता में अपने पूर्ववर्ती इंड़ोनेशिया और राष्ट्रपति (जोको) विड़ोड़ो से प्राप्त समर्थन को स्वीकार करता हूं। हम उसी भावना को अपने उत्तराधिकारी ब्राजील की अध्यक्षता में आगे बढ़ाएंगे।

प्रश्नः भारत ने अफ्रीका संघ को जी–२० का स्थायी सदस्य बनाने का प्रस्ताव दिया है। यह ‘ग्लोबल साउथ’ को एक आवाज देने में कैसे मदद करेगा। यह आवाज अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सुनी जानी क्यों महत्वपूर्ण हैॽ

उत्तर : इससे पहले कि मैं आपके प्रश्न का उत्तर दूं‚ मैं आपका ध्यान हमारे जी–२० की अध्यक्षता के विषय ‘वसुधैव कुटुम्बकम–एक पृथ्वी‚ एक परिवार‚ एक भविष्य’ की ओर दिलाना चाहता हूं। यह सिर्फ एक नारा नहीं है बल्कि एक व्यापक दर्शन है जो हमारे सांस्कृतिक लोकाचार से लिया गया है। यह भारत के भीतर और दुनिया के प्रति हमारे दृष्टिकोण का मार्गदर्शन करता है। भारत में हमारे ‘ट्रैक रिकॉर्ड़’ (पुराने प्रदर्शन) को देखें। हमने उन जिलों की पहचान की जिन्हें पहले ‘पिछड़़ा’ और उपेक्षित करार दिया गया था। हम एक नया दृष्टिकोण लाये और वहां के लोगों की आकांक्षाओं को सशक्त बनाया। आकांक्षी जिला कार्यक्रम शुरू किया गया। इनमें से कई जिलों में महत्वपूर्ण प्रगति के साथ इसके अद्भुत परिणाम सामने आ रहे हैं।

प्रश्नः आपने कुछ साल पहले सौर गठबंधन शुरू किया था। अब आप जैव–ईंधन गठबंधन का प्रस्ताव कर रहे हैं‚ जिसका हमें विश्वास है कि आप जी–२० में अनावरण करेंगे। इसका उद्देश्य क्या है और यह ऊर्जा सुरक्षा पर भारत जैसे आयात पर निर्भर देशों की मदद कैसे करेगाॽ

उत्तरः २०वीं सदी और २१वीं सदी की दुनिया में बड़़ा अंतर है। दुनिया अधिक परस्पर जुड़़ी हुई और एक–दूसरे पर आश्रित है‚ और यह सही भी है। लेकिन हमें यह समझना चाहिए कि एक–दूसरे से जुड़़े और एक–दूसरे पर आश्रित दुनिया में‚ दुनिया भर के देशों की क्षमता और क्षमताएं जितनी अधिक होंगी‚ वैश्विक लचीलापन उतना ही अधिक होगा। जब एक श्रृंखला में कड़़ी कमजोर होती है‚ तो प्रत्येक संकट पूरी श्रृंखला को और कमजोर कर देता है। लेकिन जब कड़़ी मजबूत होती हैं‚ तो वैश्विक श्रृंखला एक–दूसरे की ताकत का उपयोग करके किसी भी संकट को संभाल सकती है। एक तरह से यह विचार महात्मा गांधी के आत्मनिर्भरता के दृष्टिकोण में भी देखा जा सकता है‚ जो वैश्विक स्तर पर भी प्रासंगिक बना हुआ है। इसके अलावा‚ हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए हमारे ग्रह की सुरक्षा और संरक्षण एक साझा जिम्मेदारी है जिसे सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए। हम भारत के भीतर जलवायु केंद्रित पहलों में बड़़ी प्रगति कर रहे हैं। भारत ने कुछ ही वर्षों में अपनी सौर ऊर्जा क्षमता को २० गुना बढ़़ा दिया है।

प्रश्नः भारत की अध्यक्षता के दौरान आपने जिस तरह से जी–२० को चर्चा का विषय बनाया और देश भर में उच्च–स्तरीय बैठकों के एक साल के कैलेंड़र की योजना बनाई‚ उसकी आपके आलोचकों ने भी प्रशंसा की है। यह अभूतपूर्व था। आपने पूरे भारत में जी–२० बैठकों के प्रसार की इस अवधारणा की परिकल्पना कैसे कीॽ इस रणनीति के पीछे तर्क क्या थाॽ

उत्तर – हमने अतीत में ऐसे कई उदाहरण देखे हैं‚ जहां कुछ देशों ने‚ भले ही आकार में छोटे हों‚ ओलंपिक जैसे उच्च–स्तरीय वैश्विक आयोजन की जिम्मेदारी ली। इन विशाल आयोजनों का सकारात्मक और परिवर्तनकारी प्रभाव पड़़ा। इसने विकास को प्रेरित किया और खुद के प्रति अपने दृष्टिकोण को बदल दिया और जिस तरह से दुनिया ने उनकी क्षमताओं को पहचानना शुरू किया‚ वास्तव में यह उनकी विकास यात्रा में एक महत्वपूर्ण मोड़़ बन गया

प्रश्नः २०२३ के दौरान भारत में पर्यटन से लेकर सेहत‚ जलवायु परिवर्तन से लेकर स्वास्थ्य‚ महिला सशक्तिकरण से लेकर ऊर्जा पारगमन तक जैसे मुद्दों पर २०० से अधिक बैठकें हुईं। इनमें से कितनी ने आपकी संतुष्टि के अनुरूप ठोस परिणाम दिए हैं। क्या कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जहां आप देखते हैं कि हम और अधिक कर सकते थेॽ

उत्तरः इस जवाब के दो पहलू हैं। पहला यह है कि आपको हमारी अध्यक्षता समाप्त होने के बाद दिसम्बर में परिणामों के बारे में मुझसे सवाल पूछना चाहिए। इसके अलावा‚ आगामी शिखर सम्मेलन की महत्ता को ध्यान में रखते हुए‚ अभी विवरण बताना मेरे लिए सही नहीं होगा। लेकिन एक और पहलू है जिसके बारे में‚ मैं निश्चित रूप से बात करना चाहूंगा। पिछले एक वर्ष में कई महत्वपूर्ण मुद्दे उठाए गए हैं। संपूर्ण पृथ्वी को एक परिवार के रूप में एक भविष्य की ओर ले जाने की भावना के अनुरूप काम किया गया जो टिकाऊ और न्यायसंगत हो। ऐसे कई मुद्दों पर चर्चा की गई है और उन्हें आगे बढ़़ाया गया है। जी–२० में विभिन्न स्तरों पर बैठकें हुई हैं। इनमें एक महत्वपूर्ण प्रकार की मंत्रिस्तरीय बैठक भी शामिल है। यह उच्च–स्तरीय है इसलिए इसमें तत्काल नीतिगत प्रभाव की एक बड़़ी संभावना है। मैं आपको मंत्रिस्तरीय बैठकों के कुछ उदाहरण देता हूं। १३ से अधिक मंत्रिस्तरीय बैठकें आयोजित की गई हैं और इनमें कई सफल नतीजों को अंगीकार भी किया गया है। हमारी अध्यक्षता की प्राथमिकताओं में से एक जलवायु कार्रवाई को लोकतांत्रिक बनाकर इसमें तेजी लाना था। मिशन लाइफ के माध्यम से जलवायु पर जीवन शैली के प्रभाव पर ध्यान केंद्रित करना‚ इस मुद्दे को वास्तव में लोकतांत्रिक बनाने का एक तरीका है‚ क्योंकि ग्रह पर सकारात्मक प्रभाव ड़ालने की शक्ति हर व्यक्ति के पास है। विकास मंत्रियों की बैठक में‚ जी–२० ने सतत विकास के लIयों और जीवन शैली पर प्रगति में तेजी लाने के लिए कार्ययोजना को अपनाया।

प्रश्नः हमारे कुछ पड़़ोसियों ने कुछ बैठकों के आयोजन स्थलों पर आपत्ति जताई। पाकिस्तान और चीन की आपत्ति के बावजूद हमने कश्मीर और अरुणाचल प्रदेश में जी–२० में विदेशी नेताओं की मेजबानी करके क्या संदेश दियाॽ

उत्तरः मैं हैरान हूं कि आप इस तरह का सवाल पूछ रहे हैं। यदि हमने उन स्थानों पर बैठकें आयोजित करने से परहेज किया होता‚ तब इस तरह का सवाल वैध होता। हमारा देश इतना विशाल‚ सुंदर और विविधतापूर्ण है। जब जी–२० की बैठकें हो रही हैं‚ तो क्या यह स्वाभाविक नहीं है कि हमारे देश के हर हिस्से में बैठकें होंॽ

प्रश्नः भारत ने जी–२० की अध्यक्षता तब संभाली जब अधिकांश सदस्य राष्ट्र मंदी के खतरे का सामना कर रहे थे‚ जबकि भारत एकमात्र उभरता हुआ देश था। भारत ने ऋण प्रवाह‚ मुद्रास्फीति नियंत्रण और वैश्विक कर सौदों पर आम सहमति बनाने के लिए सबसे तेजी से बढ़़ती अर्थव्यवस्था के रूप में अपनी स्थिति का लाभ कैसे उठाया है?

उत्तरः २०१४ से पहले के तीन दशकों में‚ हमारे देश ने कई सरकारें देखीं जो अस्थिर थीं और इसलिए बहुत कुछ करने में असमर्थ थीं। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में लोगों ने एक निर्णायक जनादेश दिया है जिसकी वजह से एक स्थिर सरकार‚ अनुमानित नीतियां और समग्र दिशा में स्पष्टता आई है। यही कारण है कि पिछले नौ वर्षों में कई सुधार किए गए। अर्थव्यवस्था‚ शिक्षा‚ वित्तीय क्षेत्र‚ बैंक‚ डि़जिटलीकरण‚ कल्याण‚ समावेशन और सामाजिक क्षेत्र से संबंधित इन सुधारों ने एक मजबूत नींव रखी है और विकास इसका स्वभाविक प्रतिफल है। भारत द्वारा की गई तीव्र और निरंतर प्रगति ने स्वाभाविक रूप से दुनिया भर में रुचि पैदा की और कई देश हमारी विकास कहानी को बहुत करीब से देख रहे हैं। वे आश्वस्त हैं कि यह प्रगति आकस्मिक नहीं है‚ बल्कि सुधार‚ प्रदर्शन‚ परिवर्तन‘ के स्पष्ट‚ कार्य–उन्मुख रोड़मैप के परिणामस्वरूप हो रही है। लंबे समय तक‚ भारत को एक अरब से अधिक भूखे पेट वाले लोगों के राष्ट्र के रूप में जाना जाता था। लेकिन अब‚ भारत को एक अरब से अधिक आकांक्षी प्रतिभाओं‚ दो अरब से अधिक कुशल हाथों और लाखों युवाओं के राष्ट्र के रूप में देखा जा रहा है। हम न केवल दुनिया में सबसे अधिक आबादी वाले देश हैं‚ बल्कि सबसे बड़़ी युवा आबादी वाला देश भी हैं। इसलिए‚ भारत के बारे में दृष्टिकोण बदल गया है।

प्रश्नः क्या हम ऋण पुनर्गठन की चुनौती पर जी –२० शिखर सम्मेलन में किसी आम सहमति की उम्मीद कर सकते हैं‚ जो ‘ग्लोबल साउथ’ के लिए एक समस्या बन गई है। क्या भारत चीन के कर्ज के जाल में फंसे देशों जैसे श्रीलंका‚ सूड़ान आदि की मदद कर रहा हैॽ भारत ने इन देशों को सहायता के आवंटन में कितनी वृद्धि की हैॽ

उत्तरः मुझे खुशी है कि आपने मुझसे इस विषय पर एक सवाल पूछा। ऋण संकट वास्तव में दुनिया के लिए‚ विशेष रूप से विकासशील देशों के लिए बड़़ी चिंता का विषय है। विभिन्न देशों के नागरिक इस संबंध में सरकारों द्वारा लिए जा रहे निर्णयों पर उत्सुकता से नजर रख रहे हैं। कुछ सराहनीय परिणाम भी हैं। सबसे पहले‚ जो देश ऋण संकट से गुजर रहे हैं या इससे गुजर चुके हैं‚ उन्होंने वित्तीय अनुशासन को अधिक महत्व देना शुरू कर दिया है। दूसरा‚ जिन अन्य देशों ने कुछ देशों को ऋण संकट के कारण कठिन समय का सामना करते देखा है‚ वे उन्हीं गलत कदमों से बचने के प्रति सचेत हैं। आप अच्छी तरह से जानते हैं कि मैंने अपनी राज्य सरकारों से वित्तीय अनुशासन के बारे में भी सचेत रहने का आग्रह किया है। चाहे वह मुख्य सचिवों के राष्ट्रीय सम्मेलन में हो या ऐसे किसी भी मंच पर‚ मैंने कहा है कि वित्तीय रूप से गैर–जिम्मेदार नीतियां और लोकलुभावनवाद अल्पावधि में राजनीतिक परिणाम दे सकते हैं‚ लेकिन लंबी अवधि में एक बड़़ी सामाजिक और आर्थिक चुनौती लेकर आएंगे। इसके दुष्परिणामों का सबसे अधिक असर सबसे गरीब व सबसे कमजोर लोगों पर पड़़ता है।

प्रश्नः समरकंद में राष्ट्रपति पुतिन को दिए गए आपके संदेश कि यह युद्ध का युग नहीं है‚ ने दुनिया भर में समर्थन हासिल किया है। जी–७ और चीन–रूस गठबंधन के बीच मतभेदों को देखते हुए‚ समूह के लिए इस संदेश को अपनाना मुश्किल होगा। उस संदर्भ में आम सहमति बनाने में मदद करने के लिए भारत अध्यक्ष के रूप में क्या कर सकता है और उस आम सहमति को बनाने में नेताओं के लिए आपका व्यक्तिगत संदेश क्या होगाॽ

उत्तरः विभिन्न क्षेत्रों में कई अलग–अलग संघर्ष हैं। इन सभी को बातचीत और कूटनीति के माध्यम से हल करने की आवश्यकता है। कहीं भी किसी भी संघर्ष पर हमारा यही रुख है। चाहे जी–२० अध्यक्ष के रूप में हो या न हो‚ हम दुनिया भर में शांति सुनिश्चित करने के हर प्रयास का समर्थन करेंगे। हम मानते हैं कि विभिन्न वैश्विक मुद्दों पर हम सभी की अपनी–अपनी स्थिति और अपने–अपने दृष्टिकोण हैं। साथ ही‚ हमने बार–बार इस बात पर जोर दिया है कि विभाजित दुनिया के लिए साझा चुनौतियों से लड़़ना मुश्किल होगा। प्रगति‚ विकास‚ जलवायु परिवर्तन‚ महामारी और आपदा से जुड़़ी चुनौतियां दुनिया के हर हिस्से को प्रभावित करती हैं और ऐसे कई मुद्दों पर परिणाम देने के लिए दुनिया जी–२० की ओर देख रही है। अगर हम एकजुट हों तो हम सभी इन चुनौतियों का बेहतर तरीके से सामना कर सकते हैं। हम शांति‚ स्थिरता और प्रगति के समर्थन में हमेशा खड़़े रहे हैं और रहेंगे।

प्रश्नः भारत द्वारा विश्वसनीय प्रौद्योगिकियों के समान वितरण और प्रौद्योगिकियों के लोकतंत्रीकरण पर बड़़ा जोर दिया गया है। हमने इस लIय को कहां तक हासिल किया हैॽ

उत्तरः जब प्रौद्योगिकी के लोकतंत्रीकरण की बात आती है तो भारत की वैश्विक विश्वसनीयता है। हमने पिछले कुछ वर्षों में कई पहल की हैं जिन पर दुनिया ने ध्यान दिया है। और ये पहल एक बड़़े वैश्विक आंदोलन का जरिया भी बन रहे हैं। दुनिया का सबसे बड़़ा (कोविड़) टीकाकरण अभियान भी सबसे समावेशी था। हमने २०० करोड़़ से अधिक खुराक मुफ्त प्रदान की। यह एक तकनीकी मंच कोविन पर आधारित था। इसके अलावा‚ इस मंच का लाभ भी दुनिया को दिया गया ताकि अन्य देश भी इसे अपना सकें और लाभान्वित हो सकें। आज डि़जिटल लेन–देन हमारे व्यावसायिक जीवन के हर वर्ग को सशक्त बना रहा है‚ रेहड़़ी–पटरी वालों से लेकर बड़़े बैंकों तक। हमारा ‘डि़जिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर’ विश्व स्तर पर कई लोगों के लिए आश्चर्य का विषय था‚ खासकर जिस तरह से इसका उपयोग महामारी के दौरान सार्वजनिक सेवा वितरण के लिए किया गया था। दुनिया भर के कई देशों ने कल्याणकारी पैकेजों की घोषणा की थी‚ लेकिन उनमें से कुछ को इसे लोगों तक पहुंचाना मुश्किल हो गया था। लेकिन भारत में‚ जन धन–आधार–मोबाइल (जेएएम) की तिकड़़ी ने एक क्लिक के साथ लाभार्थियों को सीधे वित्तीय समावेशन‚ प्रमाणीकरण और लाभ का हस्तांतरण सुनिश्चित किया। इसके अलावा‚ ओपन नेटवर्क फॉर डि़जिटल कॉमर्स (ओएनड़ीसी) एक ऐसी पहल है जिसका नागरिकों और विशेषज्ञों द्वारा डि़जिटल मंचों पर एक समान अवसर उपलब्ध कराने और उसका लोकतांत्रिकरण करने में एक महत्वपूर्ण बिंदु के रूप में स्वागत किया जा रहा है।

प्रश्नः जब आपने २०७० का लक्ष्य निर्धारित किया तो आपने देखा कि जीवाश्म ईंधन भारत जैसे देशों में एक प्रमुख भूमिका निभा रहा है‚ जिस पर पश्चिम द्वारा नाराजगी जताई गई थी। लेकिन दुनिया के अधिकांश देशों ने यूक्रेन संघर्ष के बाद जीवाश्म ईंधन के महत्व को महसूस किया‚ यूरोप में कुछ ने कोयला और गैस की ओर वापस रुख किया। आप यूक्रेन युद्ध के बाद के युग में जलवायु परिवर्तन लIयों को कैसे प्रगति करते हुए देखते हैंॽ

उत्तर- हमारा सिद्धांत सरल है–विविधता हमारी सबसे बड़़ी पूंजी है। वह चाहे समाज में हो या हमारे ऊर्जा मिश्रण के संदर्भ में। ऐसा नहीं होता है कि कोई एक चीज हर जगह लागू हो। देशों के विभिन्न मार्गों को देखते हुए‚ ऊर्जा पारगमन के लिए हमारे रास्ते अलग–अलग होंगे। दुनिया की आबादी का १७ प्रतिशत होने के बावजूद‚ संचयी उत्सर्जन में भारत की ऐतिहासिक हिस्सेदारी ५ प्रतिशत से कम रही है। फिर भी‚ हमने अपने जलवायु लIयों को पूरा करने में कोई कसर नहीं छोड़़ी है। मैं पहले ही एक प्रश्न के उत्तर में इस क्षेत्र में हमारी विभिन्न उपलब्धियों के बारे में बात कर चुका हूं। इसलिए‚ हम निश्चित रूप से सही रास्ते पर हैं और विकास सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक विभिन्न कारकों को भी ध्यान में रख रहे हैं। जहां तक जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़़ाई के भविष्य के बारे में बात है तो मैं इसके बारे में बेहद सकारात्मक हूं। हम अन्य देशों के साथ काम कर रहे हैं‚ ताकि दृष्टिकोण को प्रतिबंधात्मक से रचनात्मक दृष्टिकोण में बदला जा सके। विशुद्ध रूप से यह या वह न करने के दृष्टिकोण पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय‚ हम एक ऐसा दृष्टिकोण लाना चाहते हैं जो लोगों और राष्ट्रों को जागरूक करे कि वे वित्त प्रौद्योगिकी और अन्य संसाधनों के संदर्भ में क्या कर सकते हैं और कैसे मदद कर सकते हैं।

प्रश्नः साइबर अपराधों ने धन शोधन और आतंकवाद के खिलाफ लड़़ाई में एक नया आयाम जोड़़ा है। १ से १० के पैमाने पर जी–२० को इसे कहां रखना चाहिए और वर्तमान में यह कहां हैॽ
उत्तरः साइबर खतरों को बहुत गंभीरता से लिया जाना चाहिए। उनके प्रतिकूल प्रभाव का एक कोण उनके कारण होने वाले वित्तीय नुकसान हैं। विश्व बैंक का अनुमान है कि साइबर हमलों से २०१९–२०२३ के दौरान दुनिया को लगभग ५.२ ट्रिलियन ड़ॉलर का नुकसान हो सकता है। लेकिन उनका प्रभाव सिर्फ वित्तीय पहलुओं से परे उन गतिविधियों में चला जाता है जो गहरी चिंता का विषय हैं। इनके सामाजिक और भू–राजनीतिक प्रभाव हो सकते हैं। साइबर आतंकवाद‚ ऑनलाइन कट्टरता‚ धन शोधन से मादक पदार्थ और आतंकवाद की ओर ले जाने के लिए नेटवर्क प्लेटफार्मों का उपयोग महज झलक है। ‘साइबर स्पेस’ ने अवैध वित्तीय गतिविधियों और आतंकवाद के खिलाफ लड़़ाई में एक पूरी तरह से नया आयाम पेश किया है। आतंकवादी संगठन कट्टरपंथ के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग कर रहे हैं‚ धन शोधन और मादक पदार्थों से आतंक के वित्त पोषण में पैसा ले जा रहे हैं‚ और अपने नापाक उद्देश्यों को पूरा करने के लिए ‘ड़ार्क नेट’‚ ‘मेटावर्स’ और ‘क्रिप्टोकरेंसी’ जैसे उभरते डि़जिटल रास्तों का फायदा उठा रहे हैं। ऐसे कई क्षेत्र हो सकते हैं‚ जिनमें वैश्विक सहयोग वांछनीय है। लेकिन ‘साइबर सुरक्षा’ के क्षेत्र में‚ वैश्विक सहयोग न केवल वांछनीय है‚ बल्कि अपरिहार्य है। क्योंकि खतरे की गतिशीलता बढ़ती है– हैंड़लर कहीं हैं‚ संपत्ति कहीं दूसरी जगह है और वे तीसरे स्थान पर स्थापित सर्वरों के माध्यम से संवाद कर रहे होते हैं और उनका वित्त पोषण पूरी तरह से अलग क्षेत्र से आ सकता है। जब तक इस श्रृंखला के सभी राष्ट्र सहयोग नहीं करते हैं‚ तब तक बहुत रोकथाम संभव नहीं है।

प्रश्नः संयुक्त राष्ट्र को ‘वार्ता की एक दुकान’ के रूप में देखा जा रहा है‚ जो दुनिया के सामने आने वाले अधिकांश दबाव वाले मुद्दों को हल करने में विफल रहा है। क्या जी–२० बहुपक्षीय संस्थानों को आज की चुनौतियों के लिए अधिक प्रासंगिक बनाने और वैश्विक व्यवस्था में भारत को उसका उचित स्थान दिलाने के लिए एक मंच बन सकता हैॽ इसे रेखांकित करने में मीडि़या की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण हैॽ

उत्तरः आज की दुनिया एक बहुध्रुवीय दुनिया है‚ जहां सभी चिंताओं के प्रति निष्पक्ष और संवेदनशील संस्थान एक नियम–आधारित व्यवस्था के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। हालांकि‚ संस्थान तभी प्रासंगिकता बनाए रख सकते हैं जब वे समय के साथ बदलते हैं। २०वीं सदी के मध्य का दृष्टिकोण २१वीं सदी में दुनिया के लिए काम नहीं कर सकता है। इसलिए‚ हमारे अंतरराष्ट्रीय संस्थानों को बदलती वास्तविकताओं को पहचानने‚ अपने निर्णय लेने वाले मंचों का विस्तार करने‚ अपनी प्राथमिकताओं पर फिर से विचार करने और महत्वपूर्ण आवाजों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने की आवश्यकता है। जब यह समय पर नहीं किया जाता है तो छोटे या क्षेत्रीय मंच अधिक महत्व प्राप्त करने लगते हैं। जी–२० निश्चित रूप से उन संस्थानों में से एक है जिसे कई देशों द्वारा आशा की दृष्टि से देखा जा रहा है। क्योंकि दुनिया कार्यों और परिणामों की तलाश में है‚ इससे कोई फर्क नहीं पड़़ता कि वे कहां से आते हैं। जी–२० की भारत की अध्यक्षता ऐसे मोड़़ पर आई है। इस संदर्भ में‚ वैश्विक ढांचे के भीतर भारत की स्थिति विशेष रूप से प्रासंगिक हो जाती है। एक विविधतापूर्ण राष्ट्र‚ लोकतंत्र की जननी‚ दुनिया में युवाओं की सर्वाधिक आबादी वाले देशों में से एक और विश्व के विकास इंजन के रूप में‚ भारत के पास दुनिया के भविष्य को आकार देने में योगदान देने के लिए बहुत कुछ है।

प्रश्नः आपने कहा है कि भारत २०३० तक तीसरी सबसे बड़़ी अर्थव्यवस्था होगा। २०४७ के अमृतकाल वर्ष में आप भारत को कहां देखते हैंॽ

उत्तरः विश्व इतिहास में लंबे समय तक‚ भारत दुनिया की शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं में से एक था। बाद में‚ विभिन्न प्रकार के उपनिवेशीकरण के प्रभाव के कारण‚ हमारी वैश्विक स्थिति कमजोर हुई‚ लेकिन अब भारत फिर से आगे बढ़ रहा है। जिस तेजी से हमने एक दशक से भी कम समय में १०वीं सबसे बड़़ी अर्थव्यवस्था से पांचवीं सबसे बड़़ी अर्थव्यवस्था तक पांच स्थानों की छलांग लगाई है‚ उसने इस तथ्य को व्यक्त किया है कि भारत का मतलब व्यापार है। हमारे साथ लोकतंत्र‚ जनसांख्यिकी और विविधता है। जैसा कि मैंने कहा‚ अब इसमें एक चौथा ड़ी जोड़़ा जा रहा है–विकास (ड़ेवलपमेंट)। मैंने पहले भी कहा है कि २०४७ तक की अवधि एक बड़़ा अवसर है। जो भारतीय इस युग में हैं‚ उनके पास विकास की नींव रखने का एक शानदार मौका है जिसे अगले १‚००० वर्षों तक याद किया जाएगा। राष्ट्र भी इस समय की महत्ता को महसूस कर रहा है। यही कारण है कि‚ आप कई क्षेत्रों में अभूतपूर्व वृद्धि देखते हैं। हमारे पास सैंकड़़ों ‘यूनिकॉर्न’ हैं और हम तीसरा सबसे बड़़ा ‘स्टार्टअप’ केंद्र हैं। हमारे अंतरिक्ष क्षेत्र की उपलब्धियों का दुनिया भर में जश्न मनाया जा रहा है। लगभग हर वैश्विक खेल आयोजन में‚ भारत पिछले सभी रिकॉर्ड़ तोड़़ रहा है। अधिक विश्वविद्यालय साल–दर–साल दुनिया की शीर्ष रैंकिंग में प्रवेश कर रहे हैं। इस गति के साथ‚ मैं सकारात्मक हूं कि हम निकट भविष्य में शीर्ष तीन अर्थव्यवस्थाओं में होंगे। मुझे विश्वास है कि २०४७ तक हमारा देश विकसित देशों में शामिल हो जाएगा। हमारी अर्थव्यवस्था और भी समावेशी और नवोन्मेषी होगी। हमारे गरीब लोग गरीबी के खिलाफ लड़़ाई को व्यापक रूप से जीतेंगे। स्वास्थ्य‚ शिक्षा और सामाजिक क्षेत्र के परिणाम दुनिया में सर्वश्रेष्ठ होंगे। भ्रष्टाचार‚ जातिवाद और सांप्रदायिकता का हमारे राष्ट्रीय जीवन में कोई स्थान नहीं होगा। हमारे लोगों के जीवन की गुणवत्ता दुनिया के सर्वश्रेष्ठ देशों के बराबर होगी। सबसे महत्वपूर्ण बात‚ हम प्रकृति और संस्कृति दोनों की देखभाल करते हुए यह सब हासिल करेंगे।

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