बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने अनुसूचित जातियों (एससी) के भीतर उप-वर्गीकरण की अनुमति देने वाले सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले का विरोध किया है। उन्होंने अदालत के फैसले को अस्पष्ट बताते हुए कहा कि इसमें कोई मानक तय नहीं किया गया।

लखनऊ में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान मायावती ने कहा, “एससी और एसटी के आरक्षण के भीतर उप-वर्गीकरण की अनुमति दी गई है, हमारी पार्टी इससे सहमत नहीं है। गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला देते हुए कहा था कि राज्यों को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से अधिक पिछड़ी जातियों को आरक्षण देने के लिए एससी/एसटी के आरक्षण के भीतर उप-वर्गीकरण करने का संवैधानिक अधिकार है।”
उन्होंने कहा, “एससी और एसटी के लोगों द्वारा अपने ऊपर किए गए अत्याचारों का सामना एक समूह के रूप में किया गया है और यह समूह समान है, इसमें किसी भी तरह का उप-वर्गीकरण करना सही नहीं होगा। अगर आरक्षण खत्म कर दिया गया, तो करोड़ों दलितों और आदिवासियों के लिए बहुत मुश्किल हो जाएगी।
मायावती ने दावा किया कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के केवल 10 या 11 प्रतिशत लोग ही आर्थिक रूप से मजबूत हैं, बाकी 90 प्रतिशत की हालत बहुत खराब है। अगर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर विचार किया गया, तो ये 90 प्रतिशत अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोग पिछड़ जाएंगे।
उन्होंने कहा, “एससी-एसटी समुदाय का समर्थन करने का दावा करने वाली केंद्र सरकार और भाजपा को सही तरीके से पैरवी करनी चाहिए, जो उन्होंने नहीं की। अगर उनकी मंशा साफ है तो संविधान में संशोधन करके इसे नौवीं अनुसूची में शामिल करें। मैं सुप्रीम कोर्ट के फैसले को स्वीकार नहीं करती, क्योंकि संसद को इसे पलटने का अधिकार है। कोर्ट के फैसले की आड़ में राज्य सरकारें आरक्षण को अप्रभावी बना देंगी।”
बसपा प्रमुख ने कहा, “एससी-एसटी को जो आरक्षण मिला है, वह शैक्षणिक, सामाजिक और आर्थिक असमानता को दूर करने पर आधारित है। उनके बारे में अभी सामाजिक नजरिया नहीं बदला है, इसलिए उनके लिए आरक्षण जरूरी है।”

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