रंग, राग और ताल में जीकर देखें

नरेंद्र शर्मा परवाना

जब हम अपने देश की संस्कृति की बात करते हैं, तो उसमें रंग, राग और ताल की झलक साफ दिखाई देती है। हमारी परंपराएं केवल किताबों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि उन्होंने नृत्य के माध्यम से जीवन को छुआ है। भारतीय शास्त्रीय नृत्य केवल मंच की कला नहीं, बल्कि आत्मा की भाषा है। यह शरीर से ज्यादा मन और आत्मा का संवाद है। इसकी जड़ें बहुत गहरी हैं और इसकी शाखाएं सात समंदर पार तक फैली हैं। भारतीय शास्त्रीय नृत्य का आरंभ वैदिक युग को ही माना जाता है।

नाट्य शास्त्र के रचयिता भरतमुनि ने इसका पहला व्यवस्थित स्वरूप दिया। वेद, पुराण और उपनिषदों में नृत्य को ईश्वर की आराधना का साधन बताया गया है। नटराज के रूप में भगवान शिव स्वयं नृत्य के देवता माने जाते हैं। शास्त्रीय नृत्य धीरे-धीरे देवालयों से राजदरबारों और फिर रंगमंच तक पहुंचा। यह कला हर युग में समाज का दर्पण रही है। कभी भक्ति की भावनाओं को प्रकट करती है, तो कभी शौर्य और करुणा को। भरतनाट्यम को लोकप्रिय बनाने में ऋषि वल्‍लथोल नारायण मेनन, यामिनी कृष्णमूर्ति और रुक्मिणी देवी अरुंडेल का बड़ा योगदान रहा।

कथक को कथाओं के माध्यम से प्रस्तुत करने वालीं सितारा देवी आज भी प्रेरणा हैं। ओडिसी नृत्य की पहचान बनीं संजुक्ता पाणिग्रही हों या कुचिपुड़ी को मंच तक लाने वाले राजा और राधा रेड्डी- इन सबने शास्त्रीय नृत्य को विश्वभर में पहचान दिलाई। फिल्म अभिनेत्री और सांसद हेमा मालिनी जैसी कलाकार आज भी इस परंपरा को आगे बढ़ा रही हैं।

नृत्य एक कला है, साधना है, व्यायाम है। तभी तो हमारे पूर्वजों ने बताया कि शास्त्रीय नृत्य केवल एक कला नहीं, बल्कि पूर्ण व्यायाम है। इसकी हर मुद्रा, हर हाव-भाव शरीर को लचीला बनाता है, संतुलन देता है और आत्मविश्वास भी बढ़ाता है। मानसिक रूप से यह ध्यान की तरह काम करता है। नृत्य करते समय कलाकार पूरी तरह वर्तमान में होता है, जिससे चिंता और तनाव से राहत मिलती है। बच्चों से लेकर बड़ों तक, सबके लिए यह एक बेहतरीन साधना है।

आज शास्त्रीय नृत्य की गूंज केवल भारत तक सीमित नहीं है। अमेरिका, फ्रांस, जापान, रूस, इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में इसके विद्यालय और मंच हैं। कई विदेशी कलाकार भी इसे सीख रहे हैं और मंचों पर प्रस्तुत कर रहे हैं। यह नृत्य विश्व को भारतीय संस्कृति से जोड़ने का माध्यम बन गया है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि शास्त्रीय नृत्य में अनुशासन, परिश्रम और समर्पण जैसे गुण स्वतः आते हैं। यह केवल कलाकार का नहीं, बल्कि समाज का भी निर्माण करता है। इससे सांस्कृतिक चेतना बढ़ती है, हमारी जड़ों से जुड़ाव होता है और यह आने वाली पीढ़ियों को एक मूल्य आधारित जीवन का मार्ग दिखाता है। एक कलाकार जब मंच पर अपने भावों से कोई कथा सुनाता है तो वह केवल कला नहीं करता वह समाज को सच्चाई, प्रेम और सौंदर्य का अनुभव कराता है। भारतीय शास्त्रीय नृत्य केवल अतीत की बात नहीं है। यह आज भी जीवित है, गतिमान है और हमारे जीवन को संवेदनशीलता से जोड़ता है।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

—————

By admin

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Verified by MonsterInsights