विदेश मंत्री एस जयशंकर ने शनिवार को वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर गश्त पर चीन के साथ भारत के सफल समझौते का श्रेय सैन्य और कुशल कूटनीति को दिया। पूर्वी लद्दाख में देपसांग और डेमचोक में भारतीय और चीनी सैनिकों की वापसी शुक्रवार को शुरू हुई और 29 अक्टूबर तक पूरी हो जाएगी। दोनों पक्षों की ओर से गश्त 30-31 अक्टूबर को शुरू होगी। पुणे में छात्रों के साथ बातचीत के दौरान मंत्री ने कहा कि संबंधों को सामान्य बनाने में अभी भी कुछ समय लगेगा, स्वाभाविक रूप से विश्वास और साथ मिलकर काम करने की इच्छा को पुनः स्थापित करने में समय लगेगा।
इस सप्ताह के शुरू में रूस के कज़ान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ द्विपक्षीय बैठक को याद करते हुए जयशंकर ने कहा कि यह निर्णय लिया गया कि दोनों देशों के विदेश मंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मिलेंगे और देखेंगे कि आगे कैसे बढ़ना है। जयशंकर ने कहा कि अगर आज हम इस मुकाम पर पहुंचे हैं तो इसका एक कारण यह है कि हमने अपनी जमीन पर डटे रहने और अपनी बात रखने के लिए बहुत दृढ़ प्रयास किया है। सेना देश की रक्षा के लिए बहुत ही अकल्पनीय परिस्थितियों में (एलएसी पर) मौजूद थी और सेना ने अपना काम किया और कूटनीति ने अपना काम किया।
भारत और चीन ने पूर्वी लद्दाख में डेमचोक और डेपसांग मैदानी क्षेत्रों में टकराव वाले दो बिंदुओं से सैनिकों की वापसी शुरू कर दी है और यह प्रक्रिया 28-29 अक्टूबर तक पूरी होने की संभावना है। सेना के सूत्रों ने शुक्रवार को यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि समझौता केवल टकराव वाले इन दो बिंदुओं के लिए हुआ है तथा अन्य क्षेत्रों के लिए “बातचीत अब भी चल रही है।” सूत्रों ने कहा कि सैनिकों की वापसी की प्रक्रिया पूरी होने के बाद टकराव वाले दोनों बिंदुओं पर गश्त शुरू होगी और दोनों पक्ष अपने-अपने सैनिकों को हटाकर अस्थायी ढांचों को नष्ट कर देंगे।
उन्होंने कहा कि अंतत: गश्त का स्तर अप्रैल 2020 से पहले के स्तर पर पहुंचने की उम्मीद है। एक सूत्र ने बताया कि गश्त सशस्त्र कर्मियों द्वारा की जाएगी तथा ध्वस्त की जाने वाली संरचनाओं में अस्थायी शेड और टेंट शामिल हैं। कुछ दिन पहले दोनों देशों के बीच पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के पास से सैनिकों की वापसी और गश्त को लेकर समझौता हुआ था जो चार साल से अधिक समय से जारी गतिरोध को समाप्त करने की दिशा में एक बड़ी सफलता है। सैन्य सूत्रों ने बताया कि समझौता रूपरेखा पर पहली बार राजनयिक स्तर पर सहमति बनी थी और फिर सैन्य स्तर की वार्ता हुई।