सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को भारतीय वायुसेना और थल सेना को एक पूर्व सैनिक को 1.54 करोड़ रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया। पूर्व सैनिक HIV से पीड़ित है, जिसको सेना के अस्पताल में संक्रमित रक्त चढ़ाया गया था।

याचिककर्ता ने कोर्ट को बताया कि वो भारतीय वायुसेना में कार्यरत थे। भारत ने 2002 में ऑपरेशन पराक्रम चलाया था, जिसके तहत जम्मू-कश्मीर में उनकी तैनाती हुई। एक दिन अचानक वो बीमार पड़ गए और उन्हें सांबा में स्थित सैन्य अस्पताल में भर्ती करवाया गया।

वहां पर उनको HIV संक्रमित रक्त चढ़ा दिया गया। उस वक्त तो उनको छुट्टी दे दी गई थी, लेकिन 2014 में उनको बीमारी का पता चला। इसके बाद एक मेडिकल बोर्ड का गठन हुआ। जिसने बताया कि 2002 के इलाज के दौरान ही उन्हें HIV संक्रमण हुआ था। इसके बाद उन्होंने सेवा विस्तार मांगा, लेकिन वायुसेना ने उसे खारिज कर दिया। साथ ही 31 मई 2016 को उनको रिटायर कर दिया।

इसी से नाराज होकर उन्होंने कोर्ट जाने का फैसला किया। वो पहले राष्ट्रीय आयोग विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) पहुंचे और वहां पर 95 करोड़ का मुआवजा मांगा। हालांकि एनसीडीआरसी की ओर से उनको कोई खास राहत नहीं मिली, ऐसे में वो सुप्रीम कोर्ट पहुंचे।

कोर्ट ने सुनवाई के बाद भारतीय सेना और वायुसेना को संयुक्त रूप से इसके लिए उत्तरदायी पाया। कोर्ट ने कहा कि दोनों की लापरवाही की वजह से सैनिक को ये बीमारी हुई। उनके द्वारा 1,54,73,000 रुपये (1,54 करोड़) मुआवजे की गणना की गई है। दोंनो ही उसका भुगतान करें।

कोर्ट ने ये भी कहा कि वायुसेना थल सेना से आधी राशि तुरंत वसूल करे। इसके अलावा अदालत ने इसे विशिष्ट मामला माना। खंडपीठ ने कहा कि जवान के इलाज के लिए उसका बल उत्तरदायी होता है। इस मामले में गलती हुई है। ऐसे में 6 हफ्ते के भीतर उसके मुआवजे, पेंशन आदि का भुगतान कर दिया जाना चाहिए।

 

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