डॉ जितेन्द्र सिंह ने दीर्घकालिक नवाचार के माध्यम से उद्योग की भागीदारी बढ़ाने पर दिया जोर

नई दिल्ली, 2 मई (हि.स.)। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के 55वें स्थापना दिवस के अवसर पर केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. जितेंद्र सिंह ने भारत के उभरते वैज्ञानिक परिदृश्य को रेखांकित किया। इसके साथ उन्होंने दीर्घकालिक नवाचार के माध्यम से उद्योग की भागीदारी बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर दिया।

शुक्रवार को इंटरनेशनल अंबेडकर सेंटर में आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा, “डीएसटी की स्थापना विज्ञान के क्षेत्र में स्वतंत्रता के बाद के भारत की प्रगति को दर्शाती है,” उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि किस प्रकार विभाग ने अनुसंधान और शासन को जोड़ा है तथा दृष्टि को सत्यापन योग्य परिणामों में परिवर्तित किया है। डॉ. जितेंद्र सिंह ने इस बात पर जोर दिया कि डीएसटी के हस्तक्षेपों ने न केवल विज्ञान को आगे बढ़ाया है, बल्कि महिलाओं, बच्चों और हाशिए पर पड़े समुदायों पर ध्यान केंद्रित करते हुए जमीनी स्तर पर विकास को भी गति दी है।

मंत्री ने डीएसटी के प्रभाव के एक उपाय के रूप में भारत की बढ़ती वैश्विक रैंकिंग पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वैश्विक नवाचार सूचकांक में एक लंबी छलांग लगाई है। 2015 में ये 81वें स्थान पर था जो अब 2024 में 39वें स्थान पर आ गया है। स्टार्ट-अप संख्या, विज्ञान और इंजीनियरिंग में पीएचडी और शोध प्रकाशनों में वैश्विक स्तर पर तीसरा स्थान हासिल किया है। भारत अब बौद्धिक संपदा फाइलिंग में भी दुनिया भर में छठे स्थान पर है।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि स्थायी नवाचार को निजी खिलाड़ियों द्वारा संचालित और वित्तपोषित किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत में, केवल ज्ञान साझेदारी काम नहीं करती बल्कि उद्योग को खेल में शामिल होना चाहिए। वैज्ञानिक सफलता को बनाए रखने के लिए निजी क्षेत्र की भागीदारी आवश्यक है।

उन्होंने नवगठित वैधानिक निकाय, एएनआरएफ (अनुसंधान राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन) की भूमिका पर भी प्रकाश डाला, जो अनुसंधान निधि को लोकतांत्रिक बनाने और विश्वविद्यालय की भागीदारी को बढ़ावा देने के उद्देश्य से एक परिवर्तनकारी शक्ति है।

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