लाइलाज बीमारी नहीं है अस्थमा : डाॅ. वेद प्रकाश

-भारत में 3.4 करोड़ से अधिक लोग अस्थमा ग्रसित

लखनऊ, 06 मई (हि.स.)। अस्थमा लाइलाज बीमारी नहीं है, उचित उपचार व जीवन‑शैली में बदलाव से इसे पूरी तरह नियंत्रित कर सामान्य जीवन जिया जा सकता है। इस वर्ष ग्लोबल इनिशिएटिव फॉर अस्थमा ने विश्व अस्थमा दिवस 2025 की थीम “इनहेलेशन उपचार सभी के लिए सुलभ बनाएं” निर्धारित की है। यह थीम विशेष रूप से इनहेलेड कॉर्टिको‑स्टेरॉयड्स (ICS) जैसी प्रभावी औषधियों को सुनिश्चित करने के महत्व को रेखांकित करती है। यह जानकारी किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग के विभागाध्यक्ष डाॅ. वेद प्रकाश ने दी। डाॅ. वेद प्रकाश ने बताया कि भारत में 3.4 करोड़ से अधिक लोग अस्थमा की बीमारी से ग्रसित हैं। उन्होंने कहा कि दमा को अगर हराना है, सांसों को बचाना है, तो इन्हेलर अपनाना है।”

सांसे हैं अनमोल, रखे दूर अस्थमा रोग, अपनाये इन्हेलर, रहें स्वस्थ्य और निरोग। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार विश्व में अनुमानतः 26.2 करोड़ लोग अस्थमा से प्रभावित हैं। वैश्विक स्तर पर अस्थमा से प्रति वर्ष लगभग 4.55 लाख लोगों की मृत्यु होती हैै। डाॅ. वेद प्रकाश ने बताया कि अस्थमा रोग बच्चों एवं किशोरों में सबसे सामान्य दीर्घकालिक रोग है। महिलाओं में अस्थमा की व्यापकता पुरुषों से अधिक है। वैश्विक अस्थमा मामलों के लगभग 13 फीसदी भारत में पाये जाते हैं जिससे स्वास्थ्य‑व्यवस्था पर भारी बोझ पड़ता है। एलर्जी एक वैश्विक स्वास्थ्य समस्या है और इसकी व्यापकता लगातार बढ़ रही है।

अस्थमा के प्रमुख लक्षण

-घरघराहट (छाती से सीटी की ध्वनि)।

-सांस फूलना या सांस लेने में कठिनाई।

-विशेषकर रात में या सुबह होने वाली खांसी।

-छाती में जकड़न, दर्द या घुटन‑सा महसूस होना।

-संक्रमण, वायु‑प्रदूषण, ठंडी हवा,

अस्थमा प्रबंधन

उचित प्रबंधन से अस्थमा रोगी पूर्णतः सक्रिय एवं स्वस्थ जीवन जी सकते हैं। तुरंत राहत पाने के लिए ब्रोंकोडाएलेटर्स का उपयोग किया जाता है। व्यक्तिगत ट्रिगर पहचान कर न्यूनतम संपर्क करके अस्थमा को बढाने से रोका जा सकता है। चिकित्सकीय निगरानी व योजना में समय‑समय पर संशोधन से अस्थमा का समुचित इलाज किया जाता है। अस्थमा एवं प्रबंधन संबंधी जानकारी देकर रोगी को सशक्त बनाना।

रोकथाम

-इन्हेलेशन दवाओं तक पहुँच सुलभ कराना।

-उच्च‑दक्षता वाले इनहेलर विकसित करना।

-वंचित क्षेत्रों में जन‑जागरूकता अभियान चलाना।

-डिजिटल स्वास्थ्य साधनों का उपयोग कर निगरानी एवं सहायता।

-वायु‑प्रदूषण में कमी हेतु पर्यावरणीय नीतियों का अनुपालन।

-गंभीर अस्थमा के लिए बाॅयोलॉजिक चिकित्सा

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