भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस ने विधानसभा चुनावों से पहले उम्मीदवारों के चयन को लेकर बड़े-बड़े दावे किए थे कि इस बार युवाओं को मौका मिलेगा, खराब छवि वालों को चुनाव से दूर रखेंगे, वंशवाद पर लगाम लगाएंगे, आदि इत्यादि। लेकिन टिकटों की घोषणा के बाद सारे दावे खोखले साबित हो गए। राजस्थान, मध्यप्रदेश में लगभग सभी प्रत्याशी घोषित हो चुके हैं।
राजस्थान में कुछ सीटों को छोड़कर टिकटों की घोषणा की जा चुकी है। प्रत्याशियों के विश्लेषण से यह पता चलता है कि कोई भी दल अपनी नीतियों पर खरा साबित नहीं हुआ। दोनों पार्टियों ने सिर्फ जिताऊ प्रत्याशी के फार्मूले पर ही अमल किया है। राजनीति को बेहतर बनाने का सपना देखने वाला मतदाता फिर चुनाव से पहले ही हार गया।
मध्यप्रदेश में भाजपा ने खराब छवि वाले नेताओं में कैलाश विजयवर्गीय, शेहला मसूद हत्याकांड में घिर चुके ध्रुवनारायण सिंह, विवादों में रहे महेंद्र सिंह सिसौदिया सहित कई चेहरों को टिकट दिया गया है। भाजपा ने महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के इंदौर-1 से उतरने पर उनके पुत्र विधायक आकाश विजवर्गीय का टिकट कट गया, लेकिन मंत्री विजय शाह के साथ उनके भाई संजय शाह को भी टिकट दिया गया है।
भाजपा ने पहले मध्य प्रदेश में गुजरात फार्मूला लागू करने की बात कही थी, इसके तहत बड़ी संख्या में टिकट काटे जाने थे। टिकट काटे भी गए, लेकिन जिनके खिलाफ खराब फीडबैक मिला उन सबका टिकट नहीं काटा जा सका। भाजपा इस बार चार कार्यकाल की एंटी-इंम्बैंसी का सामना कर रही है। सर्वे-फीडबैक में लगातार निगेटिव रिपोर्ट्स मिली, इस कारण पार्टी ने मापदंडों को खारिज करके सिर्फ जीत का लक्ष्य रखकर टिकट दिए हैं।
मध्य प्रदेश में कांग्रेस उम्मीदवारों के टिकट तय करने के लिए तय किया गया था कि पैनल में जिसका नाम होगा, उसे ही टिकट दिया जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं हो सका। कांग्रेस ने तय किया था कि 20 हजार से अधिक मतों से हारे लोगों को टिकट नहीं देंगे, लेकिन इसका पालन नहीं हुआ। यहां तक अन्य दलों से आए नेताओं को भी टिकट भी दिया गया। चंद दिनों पहले कांग्रेस शामिल हुए दीपक जोशी, भंवन सिंह शेखावत, समंदर पटेल इत्यादि को कांग्रेस ने टिकट दिया।
राजस्थान के टिकट वितरण से पहले भाजपा ने वंशवाद को बढ़ावा नहीं देने, पार्टी लाइन पर नहीं चलने वालों को आईना दिखाने और संगठन में पदाधिकारियों को चुनाव नहीं लड़ाने की बात कही थी। 124 नेताओं की सूची जारी हुई तो ज्यादातर दावे फुस्स हो गए। करीब 15 प्रतिशत ऐसे लोगों को भी टिकट दिए गए, जिनका आपराधिक रिकार्ड है। आठ प्रत्याशी ऐसे हैं, जो वंशवाद की बेल से निकले हैं।
2018 में जिन्होंने पार्टी को हराने के लिए चुनाव लड़ा, ऐसे पांच नेताओं को भी टिकट दिया गया है। पार्टी में आते ही दो नेता भी टिकट लेने में कामयाब हो गए। सीट नहीं बदलने की नीति भी फेल हो गई। नेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड़ सीट बदलने में कामयाब रहे। वे अब चूरू की जगह तारानगर से चुनाव लड़ेंगे। दिवंगत भैरों सिंह शेखावत के दामाद को विद्याधर नगर की जगह चित्तौड़गढ से टिकट दिया गया है।
रामगढ़ विधायक का टिकट काटा गया तो उनके पति जुबेर खान को दे दिया गया। इसी प्रकार वरिष्ठ नेता रामेश्वर डूडी बीमार हुए तो उनकी पत्नी को मैदान में उतार दिया। इतना ही नहीं पार्टी ने ऐसे नेताओं को भी टिकट दे दिए जो पिछला चुनाव पार्टी से बगावत कर मैदान में उतरे थे। उनमें कई निर्दलीय विधायक शामिल हैं। पिछले चुनाव में दो बार हारने वाले नेता, 70 से अधिक उम्र वाले, अधिक मतों से हारने वालों आगामी विधानसभा चुनावों में अबतक टिकट बंटवारे को देखा जाए तो सभी पार्टियां इन आरोपों को दरकिनार कर यही सबकुछ प्रैक्टिस में कर रही हैं।