धर्मस्थानों का अधिग्रहण अनुचित:शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद

— कॉरिडोर के लिए बांके बिहारी मन्दिर के अधिग्रहण का शंकराचार्य ने किया विरोध

कहा—गोरखनाथ मन्दिर का अधिग्रहण हो जाए तो कैसा लगेगा?

वाराणसी,03 जून (हि.स.)। ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगदगुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने धर्मस्थानों के अधिग्रहण पर नाराजगी जताई है। शंकराचार्य ने वृन्दावन में कॉरिडोर के लिए बांके बिहारी मन्दिर के अधिग्रहण किए जाने पर नाराजगी जताते हुए वृन्दावन के धर्माचार्यों से आह्वान किया कि वे किसी भी कीमत पर बांके बिहारी मन्दिर को अधिगृहीत न होने दें। काशी में प्रवास कर रहे शंकराचार्य ने मंगलवार को एक वीडियो सन्देश के माध्यम से कहा कि हमें बड़ा आश्चर्य हो रहा है कि एक तरफ सनातन धर्म के धर्माचार्य पूरे देश में मुहिम चलाए हुए हैं कि सरकार ने जिन-जिन मन्दिरों व धर्मस्थानों का सरकार ने अधिग्रहण कर लिया है उनको वापस लिया जाए। सनातन धर्म बोर्ड बनाकर धर्माचार्यों के द्वारा उसका संचालन किया जाए। इस मुहिम को सबसे अधिक आगे बढ़ाने वाले देवकीनन्दन ठाकुर के ही वृन्दावन में जो बांके बिहारी मन्दिर परम्परा से सेवायतों और पुजारियों के हाथों में था उसको सरकार दिनदहाड़े ट्रस्ट बनाकर अधिगृहित कर ले रही है। और कोई कुछ नही बोल रहा है। जब सरकार मन्दिर को अधिगृहित करके वहाँ सरकारी अधिकारी बैठा देगी तो भविष्य में फिर वहाँ धर्म की क्या व्यवस्था देखने को मिलेगी?। शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि आश्चर्य है कि बातें अलग कहीं जा रही हैं और व्यवहार अलग तरह का किया जा रहा है। धर्मनिरपेक्ष सरकार को परम्परा से चले आ रहे सनातनी मन्दिरों को अधगृहीत करने का क्या अधिकार है? बांके बिहारी मन्दिर में जो हमारे गोस्वामियों की परम्परा है उस परम्परा का हमें पोषण करना है। यदि बांके बिहारी मन्दिर में कोई कमी या कोई गड़बड़ी भी हो रही है तब भी उस पर विचार कर उसको ठीक किया जाना चाहिए, न कि गड़बड़ी के नाम पर धर्मस्थान को धर्मनिरपेक्ष सरकार द्वारा अधिगृहित कर लेना चाहिए। यदि ऐसा हुआ तो यह धर्मस्थान कहाँ रह जायेगा? ।

उन्होंने बताया कि धर्मस्थान और धर्म निर्पेक्षस्थान में बड़ा अन्तर है। हिन्दुस्तान जब से धर्मनिरपेक्ष हुआ तब से वह धर्म निर्पेक्षस्थान हो गया। इसलिए कम से कम हिन्दुस्तान के धर्मस्थान को तो धर्मस्थान रहने दीजिए उसे धर्मनिर्पेक्षस्थान मत बनाइए।

शंकराचार्य ने स्मरण कराते हुए कहा कि विगत 1982 में काशी विश्वनाथ मन्दिर में हुई चोरी के नाम पर सरकार ने अधिगृहित कर लिया था। जबकि आज तक उस चोरी को सुप्रीम कोर्ट तक में साबित नही किया जा सका है। जबकि अधिग्रहण के बाद से विश्वनाथ मन्दिर में अनेकों चोरियाँ हुईं । लेकिन कहीं कोई दिक्कत नही है क्योंकि वह सरकार के नियन्त्रण में है। शंकराचार्य ने कहा कि जब सब लोग अधिग्रहण के लिए ही तत्पर हैं तो गोरखपुर का गोरखनाथ मन्दिर में भी सरकार का अधिग्रहण हो जाए। यदि ऐसा हो जाए तो मंहत योगी आदित्यनाथ को कैसा लगेगा? जब आप बांके बिहारी मन्दिर को ट्रस्ट बनाकर वहाँ के सेवायतों महन्तों को आप अलग करना चाहते हैं तो आपके गोरखनाथ मन्दिर को भी साथ मे ट्रस्ट बनाकर सरकारी अधिग्रहण कर लिया जाए।

बताते चले वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में कॉरिडोर के लिए 5 एकड़ जमीन अधिग्रहण होनी है। इसके लिए पहले ही देश की सर्वोच्च न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट)ने भी जमीन अधिग्रहण को मंजूरी दे दी है। अदालत ने शर्त लगाई कि अधिग्रहित भूमि देवता के नाम पर पंजीकृत होगी। बांके बिहारी कॉरिडोर निर्माण की अधिसूचना जारी होने और निर्माण एजेंसी तय किए जाने के बाद से मथुरा में विवाद गहराने लगा है।

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