सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के जस्टिस राजबीर सहरावत की एकल पीठ की ओर से अवमानना के एक मामले में शीर्ष अदालत के खिलाफ की गई टिप्पणियों पर बुधवार को कड़ी नाराजगी जाहिर करते हुए उसे आदेश से हटा दिया। सुप्रीम कोर्ट ने मामले पर स्वत: संज्ञान लेते हुए सुनवाई के दौरान जस्टिस सहरावत की टिप्पणियों को ‘अनुचित और अपमानजनक’ करार दिया।
हालांकि सीजेआइ डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने जस्टिस सेहरावत की आलोचनात्मक टिप्पणियों के लिए उनके खिलाफ किसी तरह की कार्रवाई से इनकार कर दिया। पीठ में सीजेआइ के अलावा जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बी.आर. गवई, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस ऋषिकेश रॉय शामिल थे। पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि देश में संविधान ही सर्वोच्च है। न तो हाईकोर्ट और न ही सुप्रीम कोर्ट। सीजेआइ ने कहा कि पीठ पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के जज की टिप्पणियों से आहत है। कई चीजों के संबंध में अनावश्यक टिप्पणियां की गईं। सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का अनुपालन पसंद का मामला नहीं है, बल्कि बाध्यकारी कानूनी प्रणाली का मामला है। पीठ ने न्यायिक अनुशासन का उल्लेख करते हुए कहा कि भविष्य में उसे हाईकोर्ट द्वारा मामलों से निपटने के दौरान अधिक सावधानी बरतने की उम्मीद है।
जस्टिस सेहरावत ने 17 जुलाई के आदेश में हाईकोर्ट की ओर से शुरू की गई अवमानना कार्यवाही पर स्थगन आदेश जारी करने के लिए सुप्रीम कोर्ट की आलोचना करते हुए उसके हस्तक्षेप के अधिकार पर सवाल उठाया था। जस्टिस सेहरावत ने कहा था कि मनोवैज्ञानिक स्तर पर देखा जाए तो इस प्रकार का आदेश मुख्य रूप से दो कारकों से प्रेरित होता है। पहला, आदेश के परिणाम की जिम्मेदारी लेने से बचने की प्रवृत्ति। दूसरा, सुप्रीम कोर्ट को वास्तव में जितना है, उससे अधिक सर्वोच्च मानने और हाईकोर्ट को संवैधानिक रूप से जितना है, उससे कम उच्च मानने की प्रवृत्ति।