समाजवादी पार्टी (सपा) अध्यक्ष अखिलेश यादव ने सप्ताह में 90 घंटे काम करने की सलाह को अव्यवहारिक करार देते हुये कहा कि आज जो लोग युवाओं को यह सलाह दे रहे हैं, वह दिल पर हाथ रखकर बताएं कि यह विचार उन्हें तब क्यों नहीं आया था। जब वह युवा थे और आया भी था तो क्यों नहीं किया। 

‘क्वांटिटी नहीं, क्वॉलिटी ऑफ़ वर्क सबसे ज़रूरी होता है’
अखिलेश यादव ने सोमवार को कहा कि जो लोग एम्प्लॉयीज़ को 90 घंटे काम करने की सलाह दे रहे हैं, कहीं वह इंसान की जगह रोबोट की बात तो नहीं कर रहे हैं, क्योंकि इंसान तो जज़्बात और परिवार के साथ जीना चाहता है। सलाह देने वाले भूल गये कि मनोरंजन और फ़िल्म उद्योग भी अरबों रुपए इकोनॉमी में जोड़ता है। यह लोग शायद नहीं जानते हैं कि एंटरटेनमेंट से लोग रिफ़्रेश्ड, रिवाइव्ड और री-एनर्जाइज़्ड फ़ील करते हैं, जिससे वकिर्ंग क्वॉलिटी बेटर होती है। उन्होंने कहा कि यह लोग न भूलें कि युवाओं के सिफऱ् हाथ-पैर या शरीर नहीं, एक दिल भी होता है जो खुलकर जीना चाहता है और बात घंटों काम करने की नहीं होती बल्कि दिल लगाकर काम करने की होती है। क्वांटिटी नहीं, क्वॉलिटी ऑफ़ वर्क सबसे ज़रूरी होता है। 

‘जिसकी नाव में छेद हो उसकी नाव डूबनी ही डूबनी है’
अखिलेश यादव ने कहा, सच तो यह है कि युवाओं की रात-दिन की मेहनत का सबसे ज़्यादा लाभ सबसे ऊपर बैठे हुए लोगों को बैठे-बिठाए मिलता है, इसीलिए ऐसे कुछ लोग ‘90 घंटे काम करने’ जैसी इंप्रैक्टिकल सलाह देते हैं। सपा अध्यक्ष ने कहा कि आज जो लोग युवाओं को यह सलाह दे रहे हैं, वह दिल पर हाथ रखकर बताएं कि यह विचार उन्हें तब क्यों नहीं आया था। जब वह युवा थे और आया भी था तो क्यों नहीं किया। अगर उन्होंने अपने समय में 90 घंटे काम किया भी था तो फिर आज हम इतने कम ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी तक ही क्यों पहुँचे। उन्होंने कहा कि वर्क एंड लाइफ़ का बैलेंस ही मानसिक रूप से एक ऐसा स्वस्थ वातावरण बना सकता है, जहाँ युवा क्रिएटिव और प्रॉडक्टिव होकर सही मायने में देश और दुनिया को और बेहतर बना सकते हैं। जिसकी नाव में छेद हो उसकी नाव डूबनी ही डूबनी है। उसे तैरने की सलाह देने का कोई मतलब नहीं है। 

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