राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) में टूट के बावजूद वरिष्ठ नेता शरद पवार ने महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव में अग्रिम मोर्चे पर कमान संभाली और पार्टी को आठ सीटों पर जीत दिलाते हुए राज्य की राजनीति में अपने कद को और ऊंचा किया।
उनकी अगुवाई वाली राकांपा ने विपक्षी गठबंधन ‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस’ (‘इंडिया’) के साझेदारों के साथ बनी सहमति के तहत राज्य में 10 सीटों पर चुनाव लड़ा था और उनमें से आठ पर जीत हासिल की।
चुनावी लड़ाई के धुरंधर 83 वर्षीय नेता पवार राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) विरोधी गठबंधन के रचनाकारों में से एक हैं और राज्य में महा विकास आघाडी (एमवीए) के प्रमुख वास्तुकार हैं।
लोकसभा चुनाव में अपने प्रदर्शन से राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचंद्र पवार) को राज्य में एक नया जीवनदान मिल गया है जहां अक्टूबर में विधानसभा चुनाव होने हैं।
चुनावी राजनीति में 50 साल से ज्यादा का अनुभव रखने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री ने नए चुनाव चिह्न ‘तुरही बजाता आदमी’ पर अपनी पार्टी राकांपा (एसपी) के प्रचार अभियान की अगुवाई की, रणनीतिक बैठकें कीं और लोकसभा चुनावों के लिए सावधानीपूर्वक उम्मीदवारों का चयन किया।
राजनीतिक विश्लेषक प्रकाश अकोलकर ने कहा कि राकांपा (एसपी) ने 10 लोकसभा सीटों में से आठ सीटें जीतकर शानदार प्रदर्शन किया और यह दिखाता है कि ‘‘असली’’ राकांपा कौन है।
वर्ष 2019 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) विधानसभा चुनाव से पहले राकांपा के कई बड़े नेताओं को अपने पाले में ले आयी थी लेकिन पवार उन्हें फिर से पार्टी में लाने में कामयाब रहे और सातारा में भारी बारिश के बीच उनका भाषण एक निर्णायक क्षण साबित हुआ था।
अविभाजित राकांपा ने राज्य विधानसभा चुनावों में 50 से अधिक सीटें जीतीं और बाद में उद्धव ठाकरे की अगुवाई में एमवीए का हिस्सा बन गयी जिन्होंने शिवसेना में बगावत के बाद जून 2022 में इस्तीफा दे दिया था।
पिछले साल जुलाई में दिग्गज नेता पवार को उस समय झटका लगा था जब उनके भतीजे अजित पवार की अगुवाई में राकांपा में बगावत हो गयी थी और उनके साथ कुछ नेताओं ने भाजपा से हाथ मिलाया और राज्य सरकार का हिस्सा बन गए।
कभी शरद पवार के करीबी माने जाने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रफुल्ल पटेल ने भी उनका साथ छोड़ दिया और विरोधी गुट में शामिल हो गए।
राकांपा में दो फाड़ के बाद करीब 40 विधायक और कई विधान परिषद सदस्य अजित पवार गुट में शामिल हो गए और विरोधी गुट ने पार्टी के नाम और चिह्न के लिए कानूनी व राजनीतिक लड़ाई लड़ी।
पिछले एक साल में अजित पवार और प्रफुल्ल पटेल ने ऐसे बयान दिए जिससे शरद पवार और उनकी विचारधारा के बारे में भ्रम पैदा हुआ। उन्होंने कहा कि शरद पवार भाजपा नीत गठबंधन में शामिल होना चाहते थे लेकिन उन्होंने अंतिम क्षण में कदम पीछे खींच लिए।
लेकिन अजित पवार के पुणे जिले में परिवार के गढ़ बारामती में राकांपा (एसपी) सांसद व चचेरी बहन सुप्रिया सुले के खिलाफ अपनी पत्नी सुनेत्रा को खड़ा करने से यह संकेत मिल गया कि उन्हें अपने चाचा का आशीर्वाद प्राप्त नहीं है।
अजित पवार के तीखे हमलों के बावजूद राज्यसभा सदस्य शरद पवार ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।
उन्होंने अपनी बेटी सुप्रिया सुले के लिए जोरशोर से प्रचार किया और एमवीए प्रत्याशियों के लिए रैलियों को संबोधित करने के लिए पूरे राज्य में घूमे।
सत्तारूढ़ गठबंधन में होने के बावजूद अजित पवार को केवल पांच लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने का मौका मिला। इनमें से परभणी सीट राष्ट्रीय समाज पक्ष के महादेव जानकर को दे दी गयी। अजित पवार नीत राकांपा ने केवल रायगढ़ सीट पर जीत दर्ज की।
राकांपा में फूट के बाद शरद पवार ने घोषणा की थी कि वह पूरे राज्य की यात्रा करेंगे और पार्टी को आगे ले जाने के लिए जमीनी स्तर से एक नया नेतृत्व खड़ा करेंगे।
शरद पवार विपक्ष के उन वरिष्ठ नेताओं में से एक हैं जिन्होंने 2024 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा को हराने के लिए भाजपा विरोधी दलों के बीच एकता का आह्वान किया था।
अब ‘इंडिया’ गठबंधन के लोकसभा चुनाव में शानदार प्रदर्शन करने और भाजपा को बहुमत हासिल करने से रोकने के बाद विपक्षी नेता चुनावों के बाद भाजपा के खिलाफ राजनीतिक संभावनाओं को तलाशने में मार्गदर्शन के लिए पवार की ओर जरूर देखेंगे।