लोकसभा में ‘भारत के संविधान की 75 वर्षों की गौरवशाली यात्रा’ पर चर्चा के दौरान सपा सांसद ने 6 मिनट लंबा भाषण दिया। उन्होंने सबसे पहले संविधान बनाने वालों को धन्यवाद दिया। इसके बाद, उन्होंने अपने संबोधन में संभल हिंसा, यति नरसिंहानंद के बयान समेत कई मुद्दों पर अपना पक्ष रखा।

कैराना सांसद इकरा हसन ने कहा, “मैं सबसे पहले संविधान बनाने वालों की दूरदृष्टि को सलाम करती हूं। एक युवा सांसद के तौर पर मैं अपनी उम्मीदों को संविधान के साथ जोड़कर खासतौर पर ये बताना चाहती हूं कि आज हमारे देश में पिछड़े, दलित, अल्पसंख्यकों  समुदाय को किस तरह अपने संवैधानिक अधिकारों और आजादी की हिफाजत (सुरक्षा) के लिए हर रोज मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।”
उन्होंने बीआर अंबेडकर का जिक्र करते हुए कहा, “डॉ बीआर अंबेडकर के कथन से मैं अपनी बात रखना चाहती हूं। उन्होंने कहा थी कि मुझे अपने भारतवर्ष पर फक्र है कि जिसके पास ऐसा संविधान है जो लोकतंत्र, समाजवाद और सेक्युलरिज्म को सिक्योर करता है। लेकिन आज ऐसा लगता है कि संविधान की किताब तो है पर इसे चलाने वालों का ईमान गुम हो गया है।”
उन्होंने कहा, “आज हिंदुस्तान में देश के हर वर्ग को किसी न किसी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। मगर अल्पसंख्यक समुदाय खासतौर पर जो मुसलमानों पर कहर टूटा है वह किसी से छिपा नहीं है। ये लोग सिर्फ अपनी मजहबी (धार्मिक) पहचान की वजह से निशाने पर हैं।”

इकरा हसन ने किया अनुच्छेद 15 का जिक्र, “संविधान का अनुच्छेद 15 कहता है कि किसी भी नागरिक के साथ धर्म, जाति या किसी अन्य वजह से भेदभाव नहीं होना चाहिए, लेकिन हकीकत इसके उलट है। हालात इस कदर बिगड़ चुके हैं कि हेट स्पीच, मॉब लिंचिंग, बुलडोजर द्वारा घरों को गिराने की घटनाएं आम हो गई हैं। खासतौर पर उत्तर प्रदेश में, जहां ऐसा लगता है कि कानून के नाम पर जंगलराज चल रहा हो।”

संभल हिंसा का जिक्र करते हुए इकरा हसन ने कहा, “संभल में जो हुआ वो सबके सामने है, पुलिस के संरक्षण में निर्दोष लोगों की हत्या की गई और सरकार ने चुप्पी साध ली। अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा लगातार बढ़ती जा रही है, मगर सत्ता में बैठे लोग या तो आंखें मूंदे हुए हैं या फिर इन घटनाओं को बढ़ावा दे रहे हैं। हद तो तब हो जाती है, जब न्यायपालिका की बात भी अनसुनी कर दी जाती है।”
उन्होंने आगे कहा, ”सुप्रीम कोर्ट ने मॉब लिंचिंग पर 11 सूत्री निर्देश जारी किए थे, इसमें साफ कहा गया है कि राज्य सरकार और पुलिस इस तरह की घटनाओं को रोकने और दोषियों पर सख्त कार्रवाई के लिए जिम्मेदार हैं, लेकिन आज भी इन निर्देशों पर अमल नहीं हो रहा है। हाल यह है कि मॉब लिंचिंग को रोकने के बजाय सत्ता में बैठे लोग आग में घी डालने काम कर रहे हैं। उनकी जुबान से ऐसी बातें निकलती है जो नफरत को और बढ़ावा देती हैं। ये अशांति अब इतनी गहराई तक फैल चुकी है कि हमारे समाज के धर्मनिरपेक्ष चरित्र पर गंभीर सवाल उठने लगे हैं।”
कैराना सांसद इकरा हसन ने दुकान पर नेम प्लेट लगाने का मुद्दा उठाते हुए कहा, “साल की शुरूआत में कई राज्यों में दुकानदारों को अपना नाम बोर्ड पर लगाने के लिए मजबूर किया गया। इसे सेहत और सुरक्षा के कानून का हिस्सा बताया गया। मगर असल मंशा कुछ और थी। यह कदम खासतौर पर मुसलमान दुकानदारों को निशाना बनाकर उठाया गया ताकि उनकी रोजी रोटी पर चोट की जाए।”
मुरादाबाद की घटना का जिक्र करते हुए कैराना सांसद ने कहा, “पिछले हफ्ते मुरादाबाद में एक मुस्लिम डॉक्टर को हिंदू बाहुल्य इलाके में घर खरीदने पर विरोध झेलना पड़ा। वजह बताई गई कि इससे मोहल्ले की सामाजिक शांति बिगड़ जाएगी। अब आप बताइए कि क्या यह ये वजह सही है? जायज है? असल में ये छोटी बड़ी घटनाएं इस बात का सुबूत हैं कि सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने वाले बयान और नीतियां हमारे समाज को अंदर से खोखला कर रही हैं।”

इकरा हसन ने कहा, “उत्तर प्रदेश में यति नरसिंहानंद ने बेहद घटिया बयान दिया, लेकिन सरकार इन बयानों पर कोई कार्रवाई नहीं कर रही है। हेट स्पीच न सिर्फ जनमानस के विचारों को प्रदूषित करती हैं बल्कि इसने असंवैधानिक पदों पर बैठे लोगों को भी प्रभावित कर दिया है।”

इकरा हसन ने कहा, “हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट  के न्यायाधीश ने ऐसे बयान दिए कि जिसका संज्ञान खुद सुप्रीम कोर्ट को लेना पड़ा। संविधान के अनुच्छेद 29 और 30 ने अल्पसंख्यकों को उनके मजहबी और सांस्कृतिक हक दिए हैं, ताकि वह अपनी पहचान को बचा सके और अपने संस्थान चला सकें। आज उन्ही हकों पर हर तरफ से चोट की जा रही है। वक्फ जैसे बिल लाकर उनके धार्मिक अधिकारों को छीनने की कोशिश की जा रही है। आज अल्पसंख्यक समुदाय को संविधान द्वारा दिए गए अपने बुनियादी अधिकार पाने के लिए लंबी लड़ाई लड़नी पड़ रही है।”

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