सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अपने ही तीन साल पुराने उस फैसले को दरकिनार कर दिया जिसमें दिल्ली मेट्रो के साथ विवाद में अनिल अंबानी समूह की कंपनी को 8,000 करोड़ रुपए का भुगतान करने का आदेश दिया गया था।
शीर्ष अदालत ने कंपनी को पहले ही प्राप्त हो चुके लगभग 2,500 करोड़ रुपए को वापस वसूल करने के लिए कहा और माना कि पिछले फैसले के कारण ‘न्याय की भ्रूण हत्या हुई’ है।
वर्ष 2021 के फैसले के खिलाफ डीएमआरसी की उपचारात्मक याचिका को अनुमति देते हुए सीजेआई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि दिल्ली उच्च न्यायालय की खंडपीठ का आदेश एक ‘सुविचारित निर्णय’ था और सर्वोच्च न्यायालय के लिए इसमें हस्तक्षेप करने का कोई वैध आधार नहीं था।
पीठ ने कहा, ‘इस न्यायालय की दो-न्यायाधीशों की पीठ के फैसले, जिसने उच्च न्यायालय की खंडपीठ के फैसले में हस्तक्षेप किया, के परिणामस्वरूप न्याय नहीं हो सका।’
शीर्ष अदालत ने कहा, ‘खंड पीठ के फैसले को रद्द करते हुए इस न्यायालय ने एक स्पष्ट रूप से अवैध आदेश को बहाल कर दिया, जिसने एक सार्वजनिक इकाई पर अत्यधिक दायित्व थोप दिया।’
न्यायमूर्ति गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने कहा कि सुधारात्मक याचिका पर अनुच्छेद 142 के तहत शक्ति का प्रयोग का जरूर हो जाता है।
मध्यस्थता न्यायाधिकरण के आदेश के अनुसरण में डीएमआरसी द्वारा रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर फर्म को भुगतान की गई राशि पीएसयू को वापस करनी होगी।
डीएएमईपीएल रियायत समझौते के संदर्भ में 2782.33 करोड़ रुपए और ब्याज का हकदार था।
14 फरवरी 2022 तक यह रकम बढ़कर 8,009.38 करोड़ रुपए हो गई।