राजस्थान में विधानसभा चुनाव से पहले ही भाजपा ने जातीय समीकरण साधने शुरू कर दिए हैं। पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को इस बार भाजपा ने अपना प्रमुख चेहरा नहीं बनाया है। इसके अलावा भी पार्टी ने जातीय वोट बैंक साधने के लिए पार्टी में कई परिवर्तन किए हैं। पिछले ही महीने भाजपा ने एक ब्राह्मण चेहरे को अपनी स्टेट यूनिट का मुखिया बना दिया। इसके अलावा राजे से भड़ने वाले जाट नेता को भी हटाकर राजपूत नेता को आगे लाया गया जिससे कि यह संदेश जाए कि सत्ता में राजपूत समुदाय का भी प्रतिनिधित्व कायम रहेगा।
जयपुर में हुई विधायकों की बैठक में पार्टी ने विधानसभा में विपक्ष के उपनेता राजेंद्र राठोर को नेता प्रतिपक्ष बना दिया। गुलाब चंद कटारिया के जाने के बाद यह जगह खाली ही थी। गुलाब चंद कटारिया को असम का राज्यपाल बना दिया गया है। पिछले ही महीने चित्तौरगढ़ से सांसद सीपी जोशी को भाजपा ने राज्य में पार्टी का अध्यक्ष नियुक्त किया है। उन्होंने सतीश पूनिया को रीप्लेस कर दिया। इस तरह भाजपा ब्रह्मण, जाट और राजपूत तीनों ही समुदाय को साधने में जुटी है।
2018 में भाजपा ने वसुंधरा राजे को आगे करके राजस्थान में चुनाव लड़ा था। राजे का दावा था कि राजस्थान के 36 समुदायों पर उनका असर रहेगा। वसुंधरा राजे ग्वालियर के क्षत्रिय घऱाने से हैं। इसके अलावा उनकी शादी धोलपुर के शाही परिवार में हुई जो कि जाट हैं। वहीं वसुंधरा राजे की बहू गुज्जर समुदाय से आती हैं। इतना होने के बाद भी 2018 में भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ गया।
2018 के विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा ने राजपूत वोट को साधने केलिए गजेंद्र सिंह शेखावत को पार्टी का चीफ बनाना चाहती थी। दरअसल राजपूत आनंद पाल एनकाउंटर मामले को लेकर वसुंधरा राजे से नाराज थे। लेकिन राजे ने अशोक परनामी को भाजपा चीफ बनाने की वकालत की। चुनाव हारने के बकाद परनामी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। इस बार भी पूरे राजस्थान में जातीय समीकरण अहम हैं।