बसपा के एजेंडे पर अब उसका अपना कोर वोट बैंक है। बसपा इन्हें अपने साथ बांधे रखने के लिए अब ‘सर्वजन हिताय’ के बजाय ‘बहुजन हिताय’ और ‘बहुजन सुखाय’ की राह पर चलेगी। इनके हितों के लिए काम होगा। देशभर में कहीं भी दलितों के प्रति उत्पीड़न की घटना होने पर पार्टी के लोग वहां पहुंचेंगे भी क्षमता भर मदद भी करेंगे।

बसपा सुप्रीमो मायावती का मानना है कि इसके सहारे वह अपना खोया जनाधार फिर पा सकती हैं। विधानसभा उपचुनाव में भले ही इसका सीधे तौर पर फायदा न मिल सके, लेकिन उन्हें उम्मीद है कि वर्ष 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव में इसका फायदा जरूर मिलेगा।
बसपा का मूल आधार दलित वोट बैंक है। कांशीराम ने दलित समाज के लोगों को अपने साथ जोड़कर बसपा को उत्तर प्रदेश में राजनीतिक पहचान दी। इसी से बसपा गठबंधन ही नहीं अपने दम पर वर्ष 2007 में सरकार बनाने में सफल रही। खराब परिस्थितियों में भी 19 से 20 फीसदी वोट बैंक बचाए रखने वाली बसपा का जनाधार खिसक रहा है। इसकी पुष्टि इस साल हुए लोकसभा चुनाव में उसे मिले 9.39 प्रतिशत वोट से होती है।
छिटक रहे दलित वोटों को अपने साथ बांधे रखने के लिए सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय का नारा देने वाली बसपा अब कांशीराम के दौर वाली बहुजन हिताय बहुजन सुखाय की बात करने लगी हैं। बसपा सुप्रीमो नए सिरे से राजनीतिक जमीन तैयार करने में लगी हुई हैं। इसलिए गांव-गांव जाकर बसपाई समाज के लोगों को समझा रहे हैं कि ‘बहनजी’ को मजबूत करें।

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