पश्चिम बंगाल के पुरुलिया में महाराष्ट्र के पालघर जैसी हैरान कर देने वाला मामला सामने आई है। दरअसल यहां  भीड़ ने कुछ साधुओं को निर्वस्त्र कर घेरा और फिर जमकर पीटा।  भीड़ द्वारा साधुओं के कपड़ें फाड़ दिए गए और लोग  बेहरमी से उन्हें पीटते रहे। इस घटना के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की आलोचना की। टीएमसी ने आरोपों पर तत्काल कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। हालांकि पुलिस ने 12 लोगों को गिरफ्तार किया है।

पश्चिम बंगाल भाजपा ने सोशल मीडिया एक्स (ट्विटर) पर शुक्रवार को पार्टी के आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय द्वारा पोस्ट किए गए एक वीडियो पर टिप्पणी करते हुए लिखा, “ममता बनर्जी की बहरी चुप्पी पर शर्म आनी चाहिए! क्या ये हिंदू साधु आपकी मान्यता के योग्य नहीं हैं? यह अत्याचार जवाबदेही की मांग करता है,” ।

वायरल हो रहे 30 सेकंड के एक  वीडियो में, साधु को एक भीड़ द्वारा निर्वस्त्र होते और उन पर हमला करते हुए दिखाया गया है।  इस घटना की तुलना 2020 के पालघर मॉब लिंचिंग से करते हुए, अमित मालवीय ने लिखा, “पश्चिम बंगाल के पुरुलिया से बिल्कुल चौंकाने वाली घटना सामने आई… मकर संक्रांति के लिए गंगासागर जा रहे साधुओं को सत्तारूढ़ टीएमसी से जुड़े अपराधियों ने निर्वस्त्र कर पीटा।”

भाजपा नेता ने जोर देकर कहा कि पश्चिम बंगाल में हिंदू होना अपराध है। उन्होंने आगे दावा किया कि ममता बनर्जी के शासन में, शाहजहाँ शेख जैसे व्यक्तियों, जिन्हें उन्होंने आतंकवादी करार दिया था, को राज्य संरक्षण प्राप्त हुआ, जबकि साधुओं को भीड़ द्वारा हत्या का शिकार होना पड़ा। इसके साथ ही, भाजपा बंगाल के अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने हमले से निपटने के लिए ममता बनर्जी सरकार की आलोचना की।

बंगाल के उत्तर 24 परगना में छापेमारी के दौरान प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की टीम पर हमले के बाद तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के एक प्रमुख सदस्य और स्थानीय नेता शाहजहाँ शेख कथित तौर पर छिपे हुए हैं। कथित राशन घोटाले से जुड़े इस हमले में शेख और एक अन्य टीएमसी नेता शंकर आध्या की संपत्तियों को निशाना बनाया गया। अज्ञात व्यक्तियों ने अधिकारियों पर हमला किया, वाहनों में तोड़फोड़ की और तीन ईडी सदस्यों को घायल कर दिया। इसके बाद नागरिक भर्ती अनियमितताओं के संबंध में मंत्री सुजीत बोस और टीएमसी विधायक तापस रॉय की संपत्तियों पर छापे मारे गए।

घटना की बात करें तो बता दें कि बच्चों के अपहरणकर्ता की अफवाह फैला कर भीड़ ने तीन साधुओं पर हमला कर दिया। ये साधु रांची के रहने वाले थे, और  गंगासागर जा रहे थे। साधुओं ने किसी भी कानूनी जटिलताओं में शामिल होने की अनिच्छा व्यक्त करते हुए मामला दर्ज नहीं करने का फैसला किया है।

 

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