लखनऊ: हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक महत्वपूर्ण निर्णय पारित करते हुए कहा है कि माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण तथा कल्याण अधिनियम 2007 के तहत गठित अधिकरण माता-पिता की अर्जी पर संतानों को माता-पिता के निवास, भोजन व कपड़े के लिए उचित व्यवस्था का आदेश तो दे सकता है। लेकिन अधिकरण माता-पिता की अर्जी पर उनकी संतानों को उनके घर से निकाले जाने का आदेश नहीं पारित कर सकता है। न्यायालय ने कहा कि अधिनियम 2007 की मंशा माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों को भरण-पोषण प्रदान करने व उनके कल्याण तक है।
न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि सिविल प्रकिया के तहत तय होने वाले कानूनी अधिकारों को उक्त अधिनियम के तहत आदेश पारित कर नहीं तय किया जा सकता। यह आदेश न्यायमूर्ति प्रकाश सिंह की एकल पीठ ने सुल्तानपुर निवासी कृष्ण कुमार की ओर से दाखिल रिट याचिका को निस्तारित करते हुए पारित किया।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण की मांग करने वाली दूसरी याचिका पहली याचिका खारिज होने के बावजूद कायम रखी जा सकती है। बशर्ते, परिस्थितियों में बदलाव हो तो दावेदार इस प्रावधान के तहत हकदार हो सकता है। कोर्ट ने कहा कि यदि भरण-पोषण के लिए याचिका दाखिल करने का अधिकार समाप्त कर दिया जाता है तो यह सीआरपीसी की धारा 125 के मूल उद्देश्य को भी समाप्त कर देगा।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण की मांग करने वाली दूसरी याचिका पहली याचिका खारिज होने के बावजूद कायम रखी जा सकती है। बशर्ते, परिस्थितियों में बदलाव हो तो दावेदार इस प्रावधान के तहत हकदार हो सकता है। कोर्ट ने कहा कि यदि भरण-पोषण के लिए याचिका दाखिल करने का अधिकार समाप्त कर दिया जाता है तो यह सीआरपीसी की धारा 125 के मूल उद्देश्य को भी समाप्त कर देगा। यह आदेश न्यायमूर्ति ज्योत्सना शर्मा ने श्याम बहादुर सिंह की याचिका को खारिज करते हुए दिया है। कोर्ट ने कहा कि जहां एक व्यक्ति कुछ समय के लिए अपना भरण-पोषण करने में सक्षम है लेकिन उसके बाद बदली हुई परिस्थितियों के कारण अपने संसाधनों को खो देता है तो ऐसे में भरण-पोषण का दावा करने का एक नया अधिकार मिल सकता है।