जालंधर। पंजाब में जालंधर लोकसभा उपचुनाव संपन्न हो चुका है और इस चुनाव में भाजपा को वो सफलता नहीं मिली, जैसी कि वह उम्मीद रख रही थी। इस बीच पार्टी अपने नाराज वर्करों को मनाने के लिए प्रयासों में जुट गई है। प्रदेश अध्यक्ष की तरफ से हाल ही में जो प्रदेश कार्यकारिणी में विस्तार किया गया है, उसमें उन लोगों को भी स्थान दिया गया है, जो हाल ही के लोकसभा उपचुनाव में दरकिनार थे। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि आखिर पार्टी ने इस चुनाव से पहले अपने नाराज लोगों को मनाने की कोशिश क्यों नहीं की।
लोकसभा उपचुनाव के बाद अब प्रदेश में निकाय चुनाव होने हैं तथा उसके बाद लोकसभा चुनाव होंगे। लेकिन जैसा कि पिछले कुछ समय से भाजपा के अंदर स्थितियां पैंदा हो रही हैं, उससे यह तो साफ है कि पार्टी में अपने वर्कर की बजाय बाहरी लोगों को ज्यादा वैल्यू मिलने वाली है। कांग्रेस से पिछले कुछ समय में भाजपा के अंदर बड़े स्तर पर भर्ती हुई है। कैप्टन अमरेंद्र सिंह से लेकर कई बड़े नेता भाजपा में शामिल हो गए और इस बीच भाजपा का अपना वर्कर दरकिनार कर दिया गया। अब चर्चा यह भी चल रही है कि पंजाब लोकसभा की सभी 13 सीटों पर भाजपा बाहरी लोगों को टिकट देने पर विचार कर रही है। जिसके कारण एक बार फिर से पार्टी का अपना वर्कर दरकिनार होगा।
पंजाब में पैराशूट से भाजपा में लैंड किए बाहरी लोगों को सुरक्षा तो दी ही गई, साथ ही अपने पार्टी के अपने वर्कर से ज्यादा वैल्यू दी जा रही है, लेकिन भाजपा वर्कर के अंदर इन इंपोर्ट किए गए नेताओं को लेकर बड़े सवाल खड़े किए जा रहे हैं। कुछ लोग तो यह भी कह रहे हैं कि जिन्होंने अपनी मातृ पार्टी का बंटाधार कर दिया, वह भाजपा का क्या संवार पाएंगे। जबकि उनकी सुरक्षा को लेकर भी कई तरह के सवाल खड़े किए जा रहे हैं। भाजपा खेमे में इन दिनों चर्चा है कि भाजपा के अंदर वर्षों से काम कर रहे वर्कर को कभी खरोंच तक नहीं आई तो फिर इन कांग्रेस या अन्य दलों से आए लोगों को अत्याधुनिक हथियारों से लैस सुरक्षा कर्मियों की क्या जरूरत पड़ गई। क्या इन्हें वाकय ही किसी से खतरा है या पुराने किसी दल में किए गए इनके ‘कर्मों’ का इन्हें डर सता रहा है।
हाल ही के जालंधर लोकसभा उपचुनाव में भाजपा के वर्कर या फिर पार्टी के वरिष्ठ नेता ही प्रचार में काम आए। बेशक भाजपा में बाहरी राजनीतिक दलों से बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए हैं। लेकिन चुनावों के दौरान ये लोग अपना कोई खास जलवा नहीं दिखा पाए। इनमें से कुछ तो शहर में आए, लेकिन न आए जैसा ही हाल था। अंतत: भाजपा के पुराने टकसारी वर्कर को ही मैदान में उतरना पड़ा और जो थोड़े बहुत वोट हासिल हुए हैं, उसी वर्कर की बदौलत ही मिले। इसके अलावा केंद्रीय नेतृत्व से भी कई मंत्री व वरिष्ठ नेता मैदान में इसी कारण उतारे गए क्योंकि इंपोर्ट किए लोग किसी काम नहीं आ रहे थे।