फ्री बीज यानी मुफ्त की रेवड़ियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी फटकार लगाई है। जजों के वेतन में परेशानी पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताई है। जस्टिस गवई की बेंच ने राज्य सरकारों पर टिप्पणी की है। चुनावी वादों के लिए सरकारों के पास पैसा है लेकिन जजों को सैलरीदेने में परेशानी हो रही है। फ्री बीज के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट की फटकार ऐसे समय में सामने आई है जब पूरे देश में अलग अलग राज्यों में मुफ्त की योजनाओं की बहार आई हुई है और दिल्ली चुनाव में भी सभी राजनीतिक पार्टियों ने अपनी अपनी ओर से अपने अपने वादे और दावे किए हुए हैं। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट की ये टिप्पणी काफी मायने रखती है और जजों को सैलरी देने में परेशानी की बात कही गई है। दिल्ली के विधानसभा चुनाव से पहले चाहे कांग्रेस हो या आम आदमी पार्टी बिजली-पानी मुफ्त की बात लगातार कही जा रही है। अब सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जजों के वेतन में परेशानी आ रही है। लेकिन आपको इससे कोई मतलब नहीं है।

न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने यह मौखिक टिप्पणी उस समय की, जब अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि ने दलील दी कि सरकार को न्यायिक अधिकारियों के वेतन और सेवानिवृत्ति लाभों पर निर्णय लेते समय वित्तीय बाधाओं पर विचार करना होगा। राज्य के पास उन लोगों के लिए पैसा है जो कोई काम नहीं करते। चुनाव आते हैं, आप लाडली बहना और अन्य नयी योजनाएं घोषित करते हैं, जिसके तहत आप निश्चित राशि का भुगतान करते हैं। दिल्ली में अब आए दिन कोई न कोई पार्टी घोषणा कर रही है कि वे सत्ता में आने पर 2,500 रुपये देंगे।

शीर्ष अदालत ने सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को पेंशन के संबंध में अखिल भारतीय न्यायाधीश संघ द्वारा 2015 में दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। वेंकटरमणि ने कहा कि वित्तीय बोझ की वास्तविक चिंताओं को ध्यान में रखा जाना चाहिए। मुफ्त की रेवड़ी एक बड़ा चुनावी मुद्दा बनी हुई है। हालांकि कोई भी राजनीतिक पार्टी इसमें पीछे नहीं रहती है। अलग अलग प्रदेश में राज्य सरकारों की ओर से इसको लेकर ऐलान किया गया। मुफ्त में चीजें बांटने का इसका फायदा निश्चित तौर पर राजनीतिक पार्टियों को भी हुआ है।

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