अगर कोई व्यक्ति जन्मजात मुस्लिम है, लेकिन अब वह आस्तिक नहीं रहा तो उस पर शरीयत कानून लागू होगा या नहीं, इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट विचार करेगा। कोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार और केरल सरकार को नोटिस जारी किया है। मामले की सुनवाई जुलाई के दूसरे सप्ताह में होगी।

केरल की साफिया पीएम नाम की महिला ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर कहा कि वह अब आस्तिक नहीं है। ऐसे में विरासत संबंधी उसका मामला मुस्लिम पर्सनल लॉ के बजाय भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1925 के तहत निपटाना चाहिए। साफिया पूर्व मुसलमानों के एक संगठन की अध्यक्ष हैं। सीजेआइ डी.वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने इसे महत्त्वपूर्ण मुद्दा बताते हुए नोटिस जारी किए। याचिका में तर्क दिया गया कि गैर-आस्तिक व्यक्ति शरीयत द्वारा शासित नहीं होगा।
इस पर सीजेआई ने कहा कि जिस वक्त आप मुस्लिम के रूप में पैदा होते हैं, आप शरियत कानून द्वारा शासित होते हैं। आपके हक आस्तिक या गैर-आस्तिक होने से नियंत्रित नहीं होते। पीठ ने इस बात पर भी आश्चर्य जताया कि अदालत अनुच्छेद 32 के तहत किसी व्यक्ति पर पर्सनल लॉ लागू न होने की घोषणा कैसे कर सकती है? याचिकाकर्ता के वकील का कहना था कि संविधान का अनुच्छेद 25 गैर-आस्तिक होने का भी अधिकार देता है और अदालत के पास ऐसी घोषणा की व्यापक शक्तियां हैं। वकील ने कहा कि कुरान सुन्नत सोसाइटी द्वारा दायर एक अन्य याचिका में धारा 58 की जांच चल रही है। पीठ ने याचिकाकर्ता का पक्ष सुनने के बाद मामले पर सुनवाई का फैसला किया।
याचिकाकर्ता साफिया का कहना है कि उसके पिता उसे संपत्ति का एक तिहाई से अधिक हिस्सा नहीं दे सकते। संपत्ति का शेष 2/3 हिस्सा उसके भाई को दिया जाएगा, जो डाउन सिंड्रोम से पीड़ित है। याचिकाकर्ता का कहना था कि उसकी एक बेटी है, लेकिन याचिकाकर्ता की मृत्यु के बाद पूरी संपत्ति उसकी बेटी को नहीं मिलेगी, क्योंकि उसके पिता के भाइयों को भी दावा मिलेगा।

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