गुरु पूर्णिमा/व्यास पूर्णिमा/मुडिय़ा पूनों आषाढ़ मास की पूर्णिमा को कहा जाता है। इस दिन गोवर्धन पर्वत की लाखों श्रद्धालु परिक्रमा देते हैं। बंगाली साधु सिर मुंडाकर परिक्रमा करते हैं क्योंकि आज के दिन सनातन गोस्वामी का तिरोभाव हुआ था। ब्रज में इसे ‘मुडिय़ा पूनों’ कहा जाता है। आज का दिन गुरु-पूजा का दिन होता है। इस दिन गुरु की पूजा की जाती है। पूरे भारत में यह पर्व बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। वैसे तो व्यास नाम के कई विद्वान हुए हैं, परंतु व्यास ऋषि जो चारों वेदों के प्रथम व्याख्याता थे, आज के दिन उनकी पूजा की जाती है। हमें वेदों का ज्ञान देने वाले व्यास जी ही थे। अत: वे हमारे आदिगुरु हुए। उनकी स्मृति को बनाए रखने के लिए हमें अपने-अपने गुरुओं को व्यास जी का अंश मानकर उनकी पूजा करनी चाहिए। प्राचीन काल में जब विद्यार्थी गुरु के आश्रम में नि:शुल्क शिक्षा ग्रहण करते थे तो इसी दिन श्रद्धा भाव से प्रेरित होकर अपने गुरु की पूजा किया करते थे और उन्हें यथाशक्ति दक्षिणा अर्पण किया करते थे। इस दिन केवल गुरु की ही नहीं, अपितु कुटुम्ब में अपने से जो बड़ा है अर्थात माता-पिता, भाई-बहन आदि को भी गुरुतुल्य समझना चाहिए…

गुरु की महिमा

गुरु को गोविंद से भी ऊंचा कहा गया है। शास्त्रों में गु का अर्थ बताया गया है- अंधकार या मूल अज्ञान और रु का अर्थ किया गया है- उसका निरोधक। गुरु को गुरु इसलिए कहा जाता है कि वह अज्ञान तिमिर का ज्ञानांजन-शलाका से निवारण कर देता है। अर्थात अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाले को गुरु कहा जाता है। गुरु तथा देवता में समानता के लिए एक श्लोक में कहा गया है कि जैसी भक्ति की आवश्यकता देवता के लिए है वैसी ही गुरु के लिए भी। सद्गुरु की कृपा से ईश्वर का साक्षात्कार भी संभव है। गुरु की कृपा के अभाव में कुछ भी संभव नहीं है। ‘व्यास’ का शाब्दिक संपादक, वेदों का व्यास यानी विभाजन भी संपादन की श्रेणी में आता है। कथावाचक शब्द भी व्यास का पर्याय है। कथावाचन भी देश-काल-परिस्थिति के अनुरूप पौराणिक कथाओं का विश्लेषण भी संपादन है। भगवान वेदव्यास ने वेदों का संकलन किया, 18 पुराणों और उपपुराणों की रचना की। ऋषियों के बिखरे अनुभवों को समाजभोग्य बना कर व्यवस्थित किया। पंचम वेद महाभारत की रचना इसी पूर्णिमा के दिन पूर्ण की और विश्व के सुप्रसिद्ध आर्ष ग्रंथ ब्रह्मसूत्र का लेखन इसी दिन आरंभ किया। तब देवताओं ने वेदव्यास जी का पूजन किया। तभी से व्यास पूर्णिमा मनायी जा रही है। ‘तमसो मा ज्योतिगर्मय’, अंधकार की बजाय प्रकाश की ओर ले जाना ही गुरुत्व है। आगम-निगम-पुराण का निरंतर संपादन ही व्यास रूपी सद्गुरु शिष्य को परमपिता परमात्मा से साक्षात्कार का माध्यम है। जिससे मिलती है सारूप्य मुक्ति।

वेद व्यास जयंती

गुरु पूर्णिमा जगत गुरु माने जाने वाले वेद व्यास को समर्पित है। माना जाता है कि वेदव्यास का जन्म आषाढ़ मास की पूर्णिमा को हुआ था। वेदों के सार ब्रह्मसूत्र की रचना भी वेदव्यास ने आज ही के दिन की थी। वेद व्यास ने ही वेद ऋचाओं का संकलन कर वेदों को चार भागों में बांटा था। उन्होंने ही महाभारत, 18 पुराणों व 18 उप पुराणों की रचना की थी जिनमें भागवत पुराण जैसा अतुलनीय ग्रंथ भी शामिल है। ऐसे जगत गुरु के जन्म दिवस पर गुरु पूर्णिमा मनाने की परंपरा है।

गुरु पूर्णिमा का महत्त्व

‘गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु, गुरु देवो महेश्वर, गुरु साक्षात् परमं ब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नम:।’ अर्थात गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है और गुरु ही भगवान शंकर है। गुरु ही साक्षात परब्रह्म है। ऐसे गुरु को मैं प्रणाम करता हूं। गुरु के प्रति नतमस्तक होकर कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन है गुरु पूर्णिमा। गुरु के लिए पूर्णिमा से बढक़र और कोई तिथि नहीं हो सकती। जो स्वयं में पूर्ण है, वही तो पूर्णत्व की प्राप्ति दूसरों को करा सकता है। पूर्णिमा के चंद्रमा की भांति जिसके जीवन में केवल प्रकाश है, वही तो अपने शिष्यों के अंत:करण में ज्ञान रूपी चंद्र की किरणें बिखेर सकता है। इस दिन हमें अपने गुरुजनों के चरणों में अपनी समस्त श्रद्धा अर्पित कर अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करनी चाहिए। गुरु कृपा असंभव को संभव बनाती है। गुरु कृपा शिष्य के हृदय में अगाध ज्ञान का संचार करती है।

व्रत और विधान

इस दिन प्रात:काल स्नान पूजा आदि नित्य कर्मों से निवृत्त होकर उत्तम और शुद्ध वस्त्र धारण कर गुरु के पास जाना चाहिए। गुरु को ऊंचे सुसज्जित आसन पर बैठाकर पुष्पमाला पहनानी चाहिए। इसके बाद वस्त्र, फल, फूल व माला अर्पण कर तथा धन भेंट करना चाहिए। इस प्रकार श्रद्धापूर्वक पूजन करने से गुरु का आशीर्वाद प्राप्त होता है। गुरु के आशीर्वाद से ही विद्यार्थी को विद्या आती है। उसके हृदय का, अज्ञानता का अन्धकार दूर होता है। गुरु का आशीर्वाद ही प्राणी मात्र के लिए कल्याणकारी, ज्ञानवर्धक और मंगल करने वाला होता है। संसार की संपूर्ण विद्याएं गुरु की कृपा से ही प्राप्त होती हैं और गुरु के आशीर्वाद से ही दी हुई विद्या सिद्ध और सफल होती है। गुरु पूर्णिमा पर व्यासजी द्वारा रचे हुए ग्रंथों का अध्ययन-मनन करके उनके उपदेशों पर आचरण करना चाहिए।

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