अमरीका के सिएटल में संघीय अदालत के एक न्यायाधीश ने फैसला सुनाया है कि एपल और अमजेन पर अमरीका में कंज्यूमर एंटीट्रस्ट (प्रतिस्पर्धा रोधी कृत्य) का मुकद्मा अवश्य चलाया जाना चाहिए। मामले में दोनों तकनीकी दिग्गज कंपनियों पर अमेजन के प्लेटफॉर्म पर बेचे जाने वाले आइफोन और आइपैड की कीमतों को सांठगांठ कर कृत्रिम रूप से बढ़ाने की साजिश रचने का आरोप लगाया गया है।
अमरीका के संघीय जज जॉन कॉफेनोर ने मामले में संभावित क्लास सूट (वर्ग हित आधारित मुकदमा) को खारिज करने के लिए एपल और अमेजन के प्रयासों को विभिन्न कानूनी आधारों पर खारिज कर दिया है। कॉफेनर ने कहा कि एंटीट्रस्ट मामलों में प्रासंगिक बाजार की “वैधता” का महत्वपूर्ण पहलू शामिल है और इसका निर्धारण एक जूरी द्वारा ही किया जाना चाहिए।
अमरीका के संघीय जज जॉन कॉफेनोर ने मामले में संभावित क्लास सूट (वर्ग हित आधारित मुकदमा) को खारिज करने के लिए एपल और अमेजन के प्रयासों को विभिन्न कानूनी आधारों पर खारिज कर दिया है। कॉफेनर ने कहा कि एंटीट्रस्ट मामलों में प्रासंगिक बाजार की “वैधता” का महत्वपूर्ण पहलू शामिल है और इसका निर्धारण एक जूरी द्वारा ही किया जाना चाहिए।
नवंबर में दायर किया गया यह मुकदमा अमेजन के ऑनलाइन मूल्य निर्धारण के तौर-तरीकों को निजी और सरकारी दोनों पक्षों की ओर से कानूनी चुनौती देने वाली श्रृंखला का ही हिस्सा है। महीनों के इंतजार के बाद आए जज कॉफेनोर के इस फैसले का मतलब है कि मामले में अब साक्ष्य-एकत्रीकरण और ट्रायल से पहले होने वाली अन्य कार्यवाही शुरू हो जाएगी।
इस मुकदमे में वादी अमरीका के ही वे नागरिक हैं जिन्होंने जनवरी 2019 के बाद से अमेजन से आइफोन और आइपैड खरीदे थे। इनका आरोप है कि अमेजन और एपल के बीच इस साल से एक समझौता लागू हुआ, जिसके अंतर्गत प्रतिस्पर्धी विक्रेताओं को अमेजन पर एपल फोन बेचने से रोका गया, जो कि एंटीट्रस्ट कानून का उल्लंघन है। दायर किए गए मुकदमे में कहा गया है कि 2018 में अमेजन पर 600 थर्ड पार्टी रीसेलर थे। लेकिन 2019 में एपल ने अमेजन को डिस्काउंट दिया, बदले में अमेजन ने थर्ड पार्टी रीसेलर की संख्या सीमित कर दी। अभियोगी के वकील स्टीव बर्मन कोर्ट ने फैसले को एपल फोन और आइपैड के उपभोक्ताओं के लिए एक बड़ी जीत बताया है।
एपल कंपनी को ओर कोर्ट में कहा गया है कि दोनों कंपनियों में समझौता नकली एपल उत्पादों की बिक्री रोकने के लिए किया गया था और इस तरह के समझौते आम हैं और इनकी वैधता को सुप्रीम कोर्ट ने भी स्वीकारा है।