गैंगस्टर से नेता बने आनंद मोहन की रिहाई को लेकर हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार खुद को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बताते फिर रहे हैं लेकिन 2024 में दलितों से क्या कहेंगे। बता दें कि आनंद मोहन को बृहस्पतिवार सुबह सहरसा जेल से रिहा कर दिया गया। मोहन की रिहाई ‘जेल सजा क्षमादान आदेश’ के तहत हुई है। हाल में बिहार सरकार ने जेल नियमावली में बदलाव किया था, जिससे मोहन समेत 27 अभियुक्तों की समयपूर्व रिहाई का मार्ग प्रशस्त हुआ।
नीतीश पर तंज कसते हुए ओवैसी ने कहा, “नीतीश कुमार पूरे देश में विपक्षी एकता के नाम पर घुम रहे हैं और खुद को प्रधानमंत्री उम्मीदवार बता रहे हैं। आप 2024 में दलित समुदाय को बोलेंगे कि आपने एक दलित अफसर की हत्या करने वाले व्यक्ति को छोड़ दिया।” गोपालगंज के तत्कालीन जिलाधिकारी जी कृष्णैया की हत्या के मामले में मोहन उम्रकैद की सजा काट रहे थे। 1994 में मुजफ्फरपुर में एक गैंगस्टर की शवयात्रा के दौरान आईएएस अधिकारी कृष्णैया की हत्या कर दी गई थी।
नीतीश पर निशाना साधते हुए ओवैसी ने कहा कि ये दूसरी बार कृष्णैया की हत्या है। इस मामले में बिहार की आईएएस असोसिएशन चुप है। उन्होंने पूछा कि क्या उस समय लालू यादव की सरकार नहीं थी क्या उन्होंने उनकी पत्नी से मुलाकात नहीं की थी। अब कौन सा आईएएस अधिकारी बिहार में जान जोखिम में डालेगा। मोहन संभवत: बृहस्पतिवार को दिन में अपने घर पहुंच जाएंगे। वह कृष्णैया हत्याकांड में दोषी पाए जाने के बाद पिछले 15 वर्षों से सलाखों के पीछे थे।
असदुद्दीन ओवैसी ने कहा, “5 दिसंबर 1994 को एक दलित आईएएस की हत्या की गई, जब वह महज 37 साल का था। आखिर अब कौन सा आईएएस अधिकारी बिहार में जान जोखिम में डालेगा। कृष्णैया ने मजदूरी कर पढ़ाई की थी।” ओवैसी ने कहा कि वह कृष्णैया के परिवार के साथ हैं और ये भी उम्मीद करते हैं कि एक बार फिर इस मामले को लेकर सोचा जाएगा। वहीं, दिवंगत आईएएस की पत्नी उमा कृष्णैया ने आनंद मोहन को रिहा करने के बिहार सरकार के फैसले पर निराशा जाहिर की है।
बता दें कि अक्टूबर 2007 में एक स्थानीय अदालत ने मोहन को मौत की सजा सुनाई थी, लेकिन दिसंबर 2008 में पटना उच्च न्यायालय ने मृत्युदंड को उम्रकैद में बदल दिया था। मोहन ने निचली अदालत के फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। नीतीश कुमार नीत बिहार सरकार ने 10 अप्रैल को बिहार जेल नियमावली, 2012 में संशोधन किया था और उस उपबंध को हटा दिया था, जिसमें कहा गया था कि ‘ड्यूटी पर कार्यरत जनसेवक की हत्या’ के दोषी को उसकी जेल की सजा में माफी/छूट नहीं दी जा सकती। सरकार के इस कदम से राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया था। बिहार में विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने नीतीश सरकार के इस कदम की आलोचना की थी।