उत्तर प्रदेश के पीलीभीत में सोमवार को पुलिस मुठभेड़ में खालिस्तान समर्थक तीन आतंकवादियों को मार गिराए जाने की घटना चिंता पैदा करने वाली है।
पंजाब में पिछले कुछ महीनों से पुलिस थानों और चौकियों पर हमले हो रहे हैं। इन घटनाओं से सवाल खड़े हो रहे हैं कि सीमावर्ती राज्य पंजाब में क्या फिर से खालिस्तानी तत्व सिर उठा रहे हैं। हालांकि छिट-पुट घटनाओं से यह नहीं कहा जा सकता कि पंजाब में खालिस्तान समर्थकों का प्रभाव बढ़ रहा है, लेकिन इतना जरूर है कि विदेशों में बैठे खालिस्तानी आतंकी गुरपतवंत सिंह पन्नू और रंजीत सिंह नीटा जैसे देशद्रोही राज्य के युवाओं को भड़का कर आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने की कोशिश कर रहे हैं।
राज्य और केंद्र सरकार दोनों सतर्क हैं। इसी वर्ष जुलाई में केंद्र सरकार ने ‘सिख फॉर जस्टिस’ पर प्रतिबंध को पांच साल के लिए बढ़ा दिया है। कनाडा, ब्रिटेन और अमेरिका में यह आतंकी संगठन सक्रिय है और वहीं से भारत विरोधी गतिविधियों का संचालन करता है। राज्य सरकार सोशल मीडिया पर युवाओं की संदिग्ध गतिविधियों पर नजर रख रही है।
पीलीभीत के वर्तमान घटनाक्रम में जिन आतंकवादियों को मार गिराया गया है, उनकी पहचान गुरविंदर सिंह, वरिंदर सिंह और जसनप्रीत सिंह के रूप में की गई है। इन तीनों ने पंजाब की भारत-पाकिस्तान सीमा पर लगे हुए गुरदासपुर जिले की पुलिस चौकी पर 18 दिसम्बर को ग्रेनेड से हमला किया था। पुलिस के मुताबिक इन तीनों आतंकवादियों के तार खालिस्तान जिंदाबाद फोर्स (केजेएफ) से जुड़े हुए थे। नब्बे के दशक में रणजीत सिंह नीटा ने केजेएफ की स्थापना की थी।
नीटा अभी पाकिस्तान में है और वहां की खुफिया एजेंसी आईएसआई के लिए काम करता है। पन्नू और नीटा पीलीभीत में तीन आतंकवादियों के मुठभेड़ में मारे जाने से सकते में आ गए हैं और वीडियो जारी करके बदला लेने की धमकी दी है। पाकिस्तान तो भारत का पुराना शत्रु है। चिंता की बात यह है कि कनाडा, अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश भी पाकिस्तान की भूमिका में आ गए हैं।
इन देशों की सरकार और खुफिया एजेंसियां खालिस्तानी तत्वों को भारत के खिलाफ इस्तेमाल कर रही हैं। इन देशों में खालिस्तानी आंदोलन का व्यापक नेटवर्क खड़ा हो गया है। लोगों को याद होगा कि पंजाब ने लंबे समय तक आतंकवाद का खूनी दौर देखा है।
केंद्र और राज्य सरकार दोनों को आतंकवाद और अलगाववाद को रोकने के लिए सख्त कदम उठाने की जरूरत है।