इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक निर्णय में कहा है कि कानूनन एक दंपति से दुर्भावनापूर्ण आपराधिक मुकदमे के ‘‘जोखिम’’ पर वैवाहिक संबंध बनाए रखने की उम्मीद नहीं की जा सकती है। अदालत ने यह टिप्पणी तलाक के लिए पति की अपील स्वीकार करते हुए की।
अदालत ने यह कहते हुए विवाह को भंग कर दिया कि तथ्य सही सिद्ध होने पर यह आदेश पारित किया गया है जिसमें एक महिला ने अपने पति के खिलाफ दहेज उत्पीड़न का निराधार आरोप लगाया।
बसंत कुमार द्विवेदी नाम के एक व्यक्ति की प्रथम अपील स्वीकार करते हुए न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति दोनादी रमेश की खंडपीठ ने जिला न्यायाधीश, बलिया द्वारा 23 जुलाई, 2010 को पारित आदेश रद्द कर दिया जिसमें अदालत ने अपीलकर्ता पति के तलाक के वाद को खारिज कर दिया था।
अदालत ने 28 अगस्त को दिए अपने निर्णय में कहा, “यह ज्ञात होने पर कि शादी में दहेज की कोई मांग नहीं की गई थी, ऐसे में अपीलकर्ता के परिजनों के खिलाफ इस तरह के आरोप लगाने से इस बात में कोई संदेह नहीं रह जाता कि प्रतिवादी (पत्नी) का आचरण अत्यधिक क्रूर है।’’
अदालत ने कहा कि कानून के मुताबिक, चाहे पुरुष हो या महिला, उससे दुर्भावनापूर्ण आपराधिक मुकदमे के जोखिम पर वैवाहिक संबंध बनाए रखने की उम्मीद नहीं की जा सकती। आपराधिक मुकदमे से निश्चित तौर पर मान सम्मान को नुकसान पहुंचता है।