इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शुक्रवार को महत्वपूर्ण आदेश दिया। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा, “किसी निर्दोष व्यक्ति को फंसाने के लिए यौन उत्पीड़न की शिकार होने की झूठी कहानी बनाना किसी महिला के लिए असामान्य होगा। यह आदेश न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह ने कहा। 17 साल की लड़की से रेप के आरोपी आशाराम को जमानत देने से इनकार करते हाईकोर्ट ने कहा।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा, “हमारे देश में यौन उत्पीड़न की शिकार महिला किसी को झूठा फंसाने के बजाय चुपचाप सहती रहेगी। एक रेप पीड़िता का कोई भी बयान एक महिला के लिए बेहद अपमानजनक अनुभव होता है और जब तक वह यौन अपराध की शिकार नहीं होती, तब तक वह असली अपराधी के अलावा किसी और को दोष नहीं देगी।”
प्रॉसिक्यूशन के अनुसार-आरोपी 22 अगस्त 2022 को किशोरी को जबरदस्ती ले गया। उसके साथ यौन शोषण किया। जब किशोरी ने पुलिस से शिकायत करने की धमकी दी तो आरोपी घटना के अगले दिन गांव के बाहर छोड़ दिया।
संभल SP के आदेश पर पुसिल ने 31 अगस्त 2022 को आरोपी के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया। इसके बाद आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया। बचाव पक्ष ने तर्क दिया कि पीड़िता के बयान में विशेष रूप से आरोप नहीं लगाया गया है। मेडिकल जांच रिपोर्ट में कोई चोट नहीं बताई गई है।
कोर्ट को पीड़िता के बयान से पता चला कि उसने स्पष्ट रूप से आरोपी पर उसे जबरन कैद करने और रेप करने का आरोप लगाया था। कोर्ट ने बचाव पक्ष की दलील को खारिज कर दिया।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ग्रामीण भारत में प्रचलित मूल्यों पर विचार करने के लिए कहा। हाईकोर्ट ने कहा, “यौन हमले की पीड़िता वास्तविक अपराधी के अलावा किसी और पर आरोप नहीं लगाएगी। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि उक्त टिप्पणियां इस जमानत अर्जी के निर्धारण की सीमा तक सीमित हैं और किसी भी तरह मामले की योग्यता पर अभिव्यक्ति के रूप में नहीं मानी जाएंगी। ट्रायल कोर्ट पेश किए जाने वाले सबूतों के आधार पर अपने स्वतंत्र निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र होंगी।