अमेरिकी एंडोक्राइन सोसायटी की नई गाइडलाइन सामने आई है। जिसमें डॉक्टरों ने कहा है कि हड्डियों और हृदय के लिए आवश्यक विटामिन डी के लिए किसी तरह की कोई नियमित जांच की जरूरत नहीं है।
इसे सनशाइन विटामिन के नाम से भी जाना जाता है, यह एक वसा में घुलनशील विटामिन है जो डी-2 और डी-3 दो मुख्य रूपों में पाया जाता है।
विटामिन डी हड्डियों और दांतों के विकास और प्रतिरक्षा प्रणाली के नियमित कामकाज के लिए महत्वपूर्ण सूक्ष्म पोषक तत्व है। कई अध्ययनों ने इसकी कमी को मसक्यूलोस्केलेटल, मेटाबॉलिक, कार्डियोवैस्कुलर, घातक ऑटोइम्यून और संक्रामक रोगों सहित आम विकारों से जोड़ा है।
इसके परिणामस्वरूप लोगों में जांच करवाने के मामले में वृद्धि हुई है।
अमेरिका में एंडोक्राइन सोसाइटी ने इस सप्ताह एक नई गाइडलाइन जारी की, जिसमें 75 वर्ष की आयु तक स्वस्थ वयस्कों के लिए विटामिन डी की जांच नहीं कराने की सिफारिश की गई है।
पैनल ने सामान्य रूप से स्वस्थ व्यक्तियों के लिए नियमित 25 हाइड्रॉक्सी विटामिन डी परीक्षण के खिलाफ सुझाव दिया।
पी.डी. हिंदुजा अस्पताल की सेक्शन हेड एंडोक्रिनोलॉजी कंसल्टेंट्स फुलरेणु चौहान ने आईएएनएस को बताया, ”विटामिन डी का सेवन लगभग हर व्यक्ति करता है, जो स्वास्थ्य पोषण, स्वास्थ्य प्रशिक्षकों और इसी तरह के अन्य क्षेत्रों से संबंधित है, जिन्हें इस बात का बिलकुल भी अंदाजा नहीं है कि विटामिन डी के उच्च स्तर या खुराक से क्या हो सकता है।”
उन्होंने इस बात पर अफसोस जताया कि लेबोरेटरी भी अपने पैकेज में विटामिन डी जांच की सुविधा दे रही है।
फुलरेणु ने कहा, “विटामिन डी टेस्ट नियमित रूप से करवाने की जरूरत नहीं है। यह केवल कुछ विशेष परिस्थितियों में ही करवाना चहिए। यह निश्चित रूप से स्क्रीनिंग टेस्ट नहीं है।”
इस नई गाइडलाइन में केवल बच्चों, गर्भवती महिलाओं, 75 वर्ष से अधिक आयु के बुजुर्गों और उच्च जोखिम वाले प्री-डायबिटीज वाले वयस्कों के लिए विटामिन डी के सेवन की सिफारिश की गई है।
फोर्टिस सी-डॉक अस्पताल के डायबिटीज एवं एंडोक्राइनोलॉजी के अध्यक्ष एवं निदेशक अनूप मिश्रा ने आईएएनएस को बताया, ”इन विशिष्ट स्थितियों को छोड़कर विटामिन डी के स्तर की नियमित माप की सिफारिश नहीं की जाती है।”
विशेषज्ञ ने कहा, ”विटामिन डी की कमी भारतीय आबादी में व्यापक तौर पर है,लेकिन इसका महत्व अधिकांश लोगों को नहीं पता है। बच्चों में यह रिकेट्स की घटनाओं को कम कर सकता है, बुजुर्गों में यह गर्भावस्था के दौरान मृत्यु दर को कम कर सकता है, साथ ही यह भ्रूण के प्रतिकूल परिणामों को कम कर सकता है और प्रीडायबिटीज वाले लोगों में यह मधुमेह के विकास को रोक सकता है। इन स्थितियों में इसे लेने की सिफारिश की जाती है।”