केंद्र सरकार लोकसभा और राज्यों में विधानसभा चुनाव एक समय पर कराना चाहती है। केंद्र सरकार ने शुक्रवार को वन नेशन, वन इलेक्शन के लिए एक कमेटी गठित की है, जो पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में काम करेगी। कमेटी देश में एक साथ चुनाव की संभावनाओं का पता लगाएगी। यानी एक ही समय में दोनों चुनाव कराए जा सकेंगे। इसके लिए अलग से समय और पैसा दोनों की बचत की जा सकेगी। सत्ता पक्ष के नेताओं ने इसकी यही खूबी गिनाई है। वहीं, विपक्ष ने दोनों चुनाव एक समय पर होने पर नुकसान भी गिनाए हैं।

वन नेशन-वन इलेक्शन के फायदे

नहीं रुकेंगे विकास कार्य

जहां पर चुनाव होने है वहां पर चुनाव होने से पहले आदर्श आचार संहिता लागू की जाती है। अधिसूचना जारी होने के बाद न तो नई योजना की शुरुआत होती है और न ही कोई नियुक्ति। ऐसे में बार बार चुनाव के लिए बार बार आचार संहिता लगाने के कारण विकास कार्य बाधित होते है। अगर पूरे देश में एक समय पर चुनाव होंगे तो आचार संहित भी एक बार ही लागू होगी। इससे विकास कार्यों पर पर कोई असर नहीं पड़ेगा।

समय और पैसे दोनों की बचत

किसी राज्य में विधानसभा और लोकसभा चुनाव अलग अलग कराए जाते है तो खर्च में बढ़ोतरी होती है। शिक्षकों से लेकर सरकारी कर्मचारियों की ड्यूटी इसमें लगाई जाती है। अतिरिक्त खर्च होने के साथ उनकी ड्यूटी भी प्रभावित होती है। एक साथ चुनाव होने से समय के साथ साथ धन की भी बचत होगी। सरकारी कर्मचारी भी अपना काम समय पर कर पाएंगे। इंडिया टुडे की रिपोर्ट्स के अनुसार, 2019 लोकसभा चुनाव में 60,000 करोड़ रुपये खर्च हुए थे। इसमें चुनाव लड़ने वाले राजनीतिक दलों का खर्च और केंद्रीय चुनाव आयोग की तरफ से खर्च की गई रकम शामिल है।

चुनाव आयोग तैयार

साल 2022 में तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा ने कहा था कि अगर पूरे देश में राज्य और लोकसभा चुनाव होते है तो चुनाव आयोग तैयार है। देश में वन नेशन, वन इलेक्शन व्यवस्था लागू करने के लिए संविधान में कुछ बदलाव करने के जरूरत है। बीते साल 2022 में विधि आयोग ने भी इसके संबंध में देश के राजनीतिक दलों से सलाह मांगी थी।

वन नेशन, वन इलेक्शन के नुकसान

विधानसभा में बदलाव

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि नया बदलाव होता है तो यह लोकतंत्र के लिए घातक साबित हो सकता है। विधानसभा के कार्यकाल को सरकार उनकी मर्जी के विपरीत घटा या बढ़ा सकती है। इस बदलाव के बाद उनका सिस्टम प्रभावित होगा।

नियमों में होगा बदलाव

एक देश, एक चुनाव को लागू करना इतना आसान नहीं है। इसके लिए कानून में भी बदलाव करना पड़ता है। पीपुल एक्ट से लेकर संसदीय नियमों में बदलाव किए जाएंगे। इन बदलावों को लेकर विपक्ष कितना सहयोग करता है, यह सरकार के लिए बड़ी चुनौती होगी।

क्षेत्रीय मुद्दे हो सकते हैं नजरअंदाज

कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि दोनों चुनाव एक साथ होते हैं तो राष्ट्रीय मुद्दों के सामने क्षेत्रीय मुद्दे नजरंदाज हो जाएंगे। ऐसे में क्षेत्रीय दलों में नुकसान उठाना पड़ सकता है। वोटर्स के एक तरफा वोटिंग की आशंका रहेगी। जिससे केंद्र सरकार को फायदा होगा।

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