भारत ने अमेरिका के नाटो प्लस में शामिल होने के ऑफर को ठुकरा दिया है, जो पीएम मोदी की अमेरिका यात्रा से पहले बाइडेन प्रशासन के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है।
भारत ने साफ कर दिया है, कि पश्चिमी देशों के नेतृत्व वाले उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) में शामिल होने का उसका कोई इरादा नहीं है। भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा है, कि नाटो सैन्य गठबंधन “भारत के लिए उपयुक्त नहीं है”।
आपको बता दें, कि नाटो 31 देशों का सैन्य गठबंधन है, जिसमें 29 यूरोपीय देश और दो उत्तरी अमेरिका के देश शामिल हैं। यह एक इंटर-गवर्मेंटल सैन्य गठबंधन है, जिसका मुख्य उद्देश्य राजनीतिक और सैन्य माध्यमों से अपने सदस्यों की स्वतंत्रता और सुरक्षा की गारंटी देना है।
भारत ने नाटो में शामिल होने से उस वक्त इनकार किया है, अमेरिकी कांग्रेस की एक शक्तिशाली कमेटी ने भारत को नाटो प्लस में शामिल करने की मजबूत सिफारिश की थी। अमेरिकी कांग्रेस की कमेटी ने कहा था, कि एशिया में नाटो प्लस में भारत को शामिल करने की मजबूत कोशिश की जानी चाहिए।
नाटो प्लस, नाटो का ही एक एक्सटेंशन है, जिसमें ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, जापान, इजरायल और दक्षिण कोरिया हैं और ये एक सुरक्षा व्यवस्था है, जिसे नाटो से टेक्नोलॉजिकल, खुफिया और हथियारों की मदद मिलती है।
भारत को बोर्ड पर लाने से इन देशों के बीच सहज खुफिया जानकारी साझा करने में सुविधा होगी और भारत बिना किसी समय के नवीनतम सैन्य तकनीक तक पहुंच बना सकेगा। हालांकि, प्रस्ताव को खारिज करते हुए भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा, कि “नाटो का खाका भारत पर लागू नहीं होता है।”
गौरतलब है कि अमेरिका से यह सुझाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा से पहले आया था।
अमेरिका का मानना है, कि भारत को अपने पड़ोसी देश चीन से अपनी सीमाओं की रक्षा के लिए नाटो गठबंधन में शामिल होना चाहिए। इसके अलावा, अमेरिका के नेतृत्व वाले गठबंधन में शामिल होने से, भारत वैश्विक सुरक्षा को मजबूत करने और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सीसीपी की आक्रामकता को रोकने में सक्षम होगा।
अमेरिकी कांग्रेस की सलेक्ट कमेटी ने जो प्रस्ताव दिया था, उसमें कहा गया था, कि “चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के साथ रणनीतिक प्रतिस्पर्धा जीतना और ताइवान की सुरक्षा सुनिश्चित करना जरूरी है, लिहाजा संयुक्त राज्य अमेरिका की मांग है कि भारत सहित हमारे सहयोगियों और सुरक्षा भागीदारों के साथ संबंध मजबूत करें”।
यूएस कांग्रेस सलेक्ट कमेटी ने आगे कहा, कि “नाटो प्लस सुरक्षा व्यवस्था में भारत को शामिल करने से वैश्विक सुरक्षा को मजबूत करने और भारत-प्रशांत क्षेत्र में सीसीपी की आक्रामकता को रोकने के लिए अमेरिका और भारत की घनिष्ठ साझेदारी का निर्माण होगा।”
इसके विपरीत, भारत ने कहा है, कि वह गठबंधन में शामिल नहीं होगा, क्योंकि भारत अकेले ही किसी भी तरह के चीनी आक्रमण का मुकाबला करने में सक्षम है।
इसके अलावा, भारत का मानना रहा है, कि वो किसी भी ऐसे गठबंधन का हिस्सा नहीं बनेगा, जिसका मकसद सैन्य तरीके से किसी मुद्दे का समाधान करना होगा। भारत शुरू से ही गुटनिरपेक्ष आंदोलन का अगुवा रहा है। हालांकि, भारत ने अपने इस स्टैंड में थोड़ा सा बदलाव किया है और भारत ने कहा है, कि वो पहले अपना हित देखेगा।
लेकिन, अगर भारत इस गठबंधन का हिस्सा बनता है, तो उसे बार बार उन लड़ाइयों का हिस्सा बनना पड़ेगा, जिसे अमेरिका शुरू करता है। जैसे अफगानिस्तान युद्ध, जिसमें नाटो के सभी 30 देश शामिल हुए थे, चाहे उन्हें युद्ध में शामिल होने का मन था या नहीं।
इसके साथ ही, अगर भारत नाटो का हिस्सा बनता है, तो रूस के साथ भारत के संबंध बिगड़ जाएंगे, जो भारत नहीं चाहता है।
जबकि, अमेरिकी कांग्रेस समिति ने सिफारिश की थी, कि “भारत को शामिल करने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका को नाटो प्लस व्यवस्था को मजबूत करना चाहिए। संयुक्त राज्य अमेरिका को अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में ताइवान की भागीदारी का समर्थन करके और TAIPEI अधिनियम में संशोधन करके कूटनीतिक प्रतिरोध को भी मजबूत करना चाहिए ताकि संयुक्त राज्य अमेरिका, अपने सहयोगियों और भागीदारों के साथ, CCP द्वारा जानबूझकर ताइवान की संप्रभुता की स्थिति को हल करने के किसी भी प्रयास का सार्वजनिक रूप से विरोध करे”।