समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने बुधवार को संभल हिंसा में शामिल प्रदर्शनकारियों से सार्वजनिक संपत्ति को हुए नुकसान की कीमत वसूलने की उत्तर प्रदेश सरकार की योजना पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि उसे कथित तौर पर नारे लगाने वाले भाजपा समर्थकों की तस्वीरें भी जारी करनी चाहिए। संभल में रविवार को मुगलकालीन मस्जिद के सर्वे को लेकर भड़की हिंसा में चार लोगों की मौत हो गई। एक स्थानीय अदालत ने एक याचिका के जवाब में सर्वेक्षण का आदेश दिया था जिसमें दावा किया गया था कि मस्जिद का निर्माण एक हिंदू मंदिर के विनाश के बाद किया गया था।
अखिलेश ने कहा कि जिस तरह से उन्होंने (भाजपा) अधिकारियों पर दबाव डालकर चुनाव जीता है और इसलिए उन्होंने लोगों का ध्यान भटकाने के लिए (संभल में) यह दंगा कराया है। अगर सरकार तस्वीरें जारी कर रही है तो उन्हें उन बीजेपी समर्थकों की तस्वीरें भी जारी करनी चाहिए जो सर्वे के दौरान वहां मौजूद थे और नारे लगाए थे। उन्होंने कहा कि भाजपा संविधान नहीं बल्कि ‘मन विधान’ के आधार पर चलती है। वे वोट पाने के लिए मशीनरी का इस्तेमाल करते हैं।’ अगर ईवीएम की फॉरेंसिक जांच हो, ऐसी कोई जांच हो तो आपको पता चल जाएगा कि एक ही व्यक्ति ने कई वोट डाले हैं।
सपा नेता ने कहा कि ये टकराव लखनऊ और दिल्ली के बीच है। जो लोग लखनऊ में हैं वे दिल्ली जाना चाहते हैं और लखनऊ और दिल्ली के झगड़े में उत्तर प्रदेश का भाईचारा खत्म हो रहा है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से इन आरोपों पर संज्ञान लेने का आग्रह किया कि उत्तर प्रदेश पुलिस ने संभल हिंसा पीड़ित के परिजनों को धमकाया और एक कोरे कागज पर उनके अंगूठे का निशान ले लिया। उत्तर प्रदेश सरकार संभल में हाल ही में हुई हिंसा के दौरान सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान की भरपाई प्रदर्शनकारियों से करेगी और ‘पत्थरबाजी’करने वालों के पोस्टर सार्वजनिक स्थानों पर लगवाए जाएंगे। संभल पुलिस ने बुधवार को हिंसा में शामिल कई लोगों की तस्वीरें जारी की हैं।
इन तस्वीरों में नौ लोगों की पहचान की गई है और लोगों से उन लोगों की पहचान करने में मदद मांगी गई है जिनके चेहरे ढके हुए हैं। संभल शहर के मोहल्ला कोट पूर्वी में स्थित जामा मस्जिद के पिछले रविवार को हो रहे सर्वेक्षण के दौरान हिंसा भड़क उठी थी जिसमें चार लोगों की मौत हो गई थी। इस दौरान हुए पथराव में सार्वजनिक संपत्ति को भी नुकसान हुआ था। यह सर्वेक्षण एक याचिका पर कराया गया है जिसमें दावा किया गया था कि मस्जिद से पहले उक्त स्थान पर हरिहर मंदिर था।