लोकसभा चुनाव के बीच पार्टी के रुख में बदलाव का संकेत देते हुए बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने ‘सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय’ के अपने आदर्श वाक्य को बदलकर ‘बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय’ कर दिया है जो पार्टी के अपनी जड़ों की तरफ लौटने का स्पष्ट संकेत है। बसपा की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति में पार्टी अध्यक्ष मायावती की गुरुवार को नागपुर (महाराष्ट्र) में होने वाली चुनावी सभाओं की जानकारी देते हुए ‘बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय’ आदर्श वाक्य का इस्तेमाल किया गया है। पिछले चुनाव तक बसपा के पैड, बैनर और पोस्टरों में ‘सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय’ लिखा होता था।

मिली जानकारी के मुताबिक, अपनी स्थापना के दो दशक से भी ज्यादा समय बीतने के बाद बसपा ने 2007 के उप्र विधानसभा चुनाव में अपने ‘सोशल इंजीनियरिंग’ फॉर्मूले के जरिये उच्च जातियों को पार्टी के साथ जोड़कर उत्तर प्रदेश में पहली बार पूर्ण बहुमत से सत्ता हासिल की थी। लेकिन अब वह ‘बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय’ के साथ अपने मूल मतदाताओं की तरफ बढ़ती दिख रही है। बहुजन समाज पार्टी का गठन धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ-साथ अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) का जिक्र करते हुए बहुजन (शाब्दिक अर्थ ‘बहुसंख्यक समुदाय’) का प्रतिनिधित्व करने के लिए किया गया था। बसपा संस्थापक कांशीराम ने जब 1984 में बसपा की स्थापना की थी, तब भारत की आबादी में 85 प्रतिशत बहुजन शामिल थे, लेकिन वे 6,000 अलग-अलग जातियों में विभाजित थे। यह दावा कांशीराम ने किया था।

बसपा कार्यालय की ओर से गुरुवार को जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि बसपा ‘बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय’ के व्यापक हित और कल्याण के मद्देनजर ही इस आम चुनाव में किसी भी पार्टी अथवा गठबंधन से कोई तालमेल या समझौता नहीं की है। बसपा पूरे देश में अपनी पार्टी के लोगों के तन, मन, धन के बल पर पूरी मजबूती से अकेले संसदीय चुनाव लड़ रही है। पार्टी सूत्रों के अनुसार, वर्ष 2007 में बसपा ने 403 सीट वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में 206 सीट जीतकर पूर्ण बहुमत हासिल किया था और मायावती के नेतृत्‍व में चौथी बार सरकार बनाई थी, लेकिन 2012 के विधानसभा चुनाव से पार्टी के प्रदर्शन का स्तर लगातार गिरता जा रहा है। वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में बसपा हार गई और सपा की सरकार बनी, लेकिन बसपा 80 सीट और 25 प्रतिशत वोट शेयर के साथ मुख्य विपक्षी दल बनी रही। पांच साल बाद 2017 के विधानसभा चुनाव में बसपा की सीट संख्या तेजी से घटकर 19 रह गई और उसका वोट शेयर घटकर 20 प्रतिशत के आस-पास सिमटकर रह गया।

बताया जा रहा है कि बसपा ने पिछला लोकसभा चुनाव समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में लड़ा था और 19 प्रतिशत से अधिक वोट हासिल करने के साथ 10 सीट पर विजय हासिल की। लेकिन इसके पहले 2014 में अकेले दम पर वह कोई भी सीट जीतने में असफल रही थी, लेकिन अपना वोट प्रतिशत बरकरार रखा था। वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में 403 सीट में से बसपा को सिर्फ एक सीट पर जीत मिली। पार्टी के एक नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि 2022 के विधानसभा चुनाव में पार्टी की हार के बाद उत्तर प्रदेश की राजनीति में प्रासंगिक बने रहने के लिए बसपा को अपने मूल मतदाताओं को जोड़े रखने की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि बसपा को इस बात का भी एहसास है कि जिस पार्टी का गठन वंचित वर्गों की समस्याओं के समाधान के लिए किया गया था, वह धीरे-धीरे उसी राह पर आगे बढ़ी जिस पर अन्य पार्टियां चल रही थीं।

बसपा के एक अन्‍य नेता ने कहा कि बसपा का गठन ब्राह्मणवाद और मनुवाद के खिलाफ हुआ था, इसकी ताकत उन वर्गों की एकता में थी जो संपन्न और ऊंची जातियों के खिलाफ थे। उन्होंने कहा कि बाद में सवर्णों ने पार्टी के पदों और टिकटों के आवंटन की प्रक्रिया पर कब्जा कर लिया जिससे दलित खुद को उपेक्षित महसूस करने लगे। उन्होंने कहा कि पार्टी के लिए सबसे बड़ा काम अपने लगभग 13 प्रतिशत वोट को बनाए रखना है जो उसे 2022 के चुनावों में मिला था। एक अन्य नेता ने कहा कि बसपा की ताकत उसका वफादार वोट बैंक है जो हमेशा उसके साथ रहा है। उन्होंने कहा कि इस कोर वोट की वजह से ही ऊंची जातियों समेत बाकी सभी जातियां पार्टी के साथ आई थीं, अगर यह कोर वोट बिखर गया तो पार्टी की ताकत खत्म हो जायेगी।

बसपा की उप्र इकाई के अध्यक्ष विश्वनाथ पाल ने एक न्यूज एजेंसी से कहा कि ‘बहुजन’ का मतलब सर्वजन या सर्व समाज है। उन्होंने कहा कि बसपा देश की एकमात्र पार्टी है जो सर्व समाज को प्रतिनिधित्व प्रदान करती है। उन्होंने कहा कि बसपा से पहले समाज में ऐसे भी वर्ग थे जिन्हें चुनाव लड़ने का मौका नहीं मिला, चाहे वह पाल, मौर्य, प्रजापति या विश्वकर्मा रहा हो।” समाज के वंचित वर्गों के लिए काम करने वाले सामाजिक संगठन ‘बहुजन भारत’ के अध्यक्ष कुंवर फतेह बहादुर (सेवानिवृत्त आईएएस) के अनुसार, यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जो पार्टी बहुजन समाज के हितों की रक्षा के लिए बनी थी, वह अपनी मूल विचारधारा से दूर हो गई। उन्होंने कहा कि अगर पार्टी को प्रभाव डालना है और वंचित वर्गों के जीवन में बदलाव लाना है तो अपने मूल मतदाताओं के बीच उसका प्रासंगिक बना रहना महत्वपूर्ण है।

 

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