पूर्व केंद्रीय मंत्री रामचंद्र प्रसाद सिंह उर्फ आरसीपी सिंह बीजेपी में शामिल हो गए हैं। उन्होंने दिल्ली स्थित बीजेपी दफ्तर में गुरुवार को केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान की मौजूदगी में पार्टी की सदस्यता ग्रहण की। अनुमान लगाया जा रहा था कि बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा शामिल कराएंगे लेकिन उस हिसाब से आरसीपी सिंह की बीजेपी में एंट्री थोड़ी कमजोर दिखी। नीतीश के करीबी रहे आरसीपी सिंह ने पिछले साल जेडीयू से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद से उनके बीजेपी में जाने के कयास लगाए जा रहे थे। उन्हें अपने खेमे में लेकर बीजेपी ने नीतीश कुमार के वोटबैंक में सेंधमारी की तैयारी की है। आरसीपी सिंह कुर्मी जाति से आते हैं और यह जेडीयू के कोर वोटर माने जाते हैं। वह एक ब्यूरोक्रेट रह चुके हैं। आरसीपी सिंह आईएएस अधिकारी रहते हुए सीएम नीतीश के करीब आए और फिर उनकी राजनीति में एंट्री हुई थी। आइए जानते हैं कि कैसे एक आईएएस राजनीति में आया और फिर पार्टी का अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री बना, फिर उसे हाशिए पर धकेल दिया गया।
आरसीपी सिंह बिहार के नालंदा जिले के रहने वाले हैं। वह यूपी कैडर के आईएएस थे। जब वह केंद्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा के निजी सचिव थे, तब वह नीतीश कुमार के संपर्क में आए। नीतीश भी नालंदा के रहने वाले हैं और कुर्मी जाति से हैं, इसलिए दोनों की दोस्ती गहरी हो गई। नीतीश कुमार जब रेल मंत्री बने तो उन्होंने आरसीपी सिंह को विशेष सचिव बनाया। इसके बाद जब वह मुख्यमंत्री बने तो आरसीपी को बिहार ले आए और प्रमुख सचिव बना दिया।
सीएम नीतीश, आरसीपी सिंह के कामकाज से काफी प्रभावित हुए। धीरे-धीरे उनकी जेडीयू में पकड़ मजबूत होती गई। साल 2010 में आरसीपी सिंह ने वीआरएस ले लिया और जेडीयू में शामिल हो गए। पार्टी ने उन्हें राज्यसभा सांसद बनाया। 2016 में वे दोबारा राज्यसभा पहुंचे। इसके बाद 2020 में नीतीश कुमार ने उन्हें जेडीयू अध्यक्ष बना दिया। यानी कि पार्टी में वह नंबर 2 की पॉजिशन पर आ गए।
केंद्रीय मंत्री बनने के बाद नीतीश के बीच खिंची तलवार
जेडीयू जब एनडीए में थी तब नरेंद्र मोदी सरकार 2.0 में आरसीपी सिंह को केंद्र में मंत्री बनाया गया। बताया जाता है कि आरसीपी ने नीतीश कुमार को बताए बिना ही खुद का नाम केंद्रीय मंत्री पद के लिए दे दिया गया। इसके बाद से नीतीश और आरसीपी के बीच दूरियां बढ़ती गईं। आरसीपी सिंह पर बीजेपी से नजदीकी बढ़ाने के आरोप लगने लगे। धीरे-धीरे पार्टी ने उन्हें साइडलाइन करना शुरू कर दिया। आरसीपी के करीबियों को भी पार्टी से निकाला जाने लगा।
जेडीयू को था टूट का डर?
नीतीश कुमार, ललन सिंह और पार्टी के नेता तब कहते थे कि आरसीपी सिंह जेडीयू के पद पर रहकर बीजेपी के इशारों पर काम कर रहे थे। जेडीयू के नेता कहते थे कि नीतीश ने आरसीपी को जमीन से उठाकर आसमान पर बिठा दिया लेकिन उनकी आंखों में पानी नहीं है और वो भाजपा की गोद में जाकर बैठ गए हैं। माना जाता है कि जेडीयू और बीजेपी के रिश्ते खराब होने की एक वजह आरसीपी सिंह भी रहे। जेडीयू को डर सताता रहा कि बीजेपी आरसीपी सिंह को चढ़ाकर महाराष्ट्र में शिवसेना की तरह पार्टी तोड़ सकती है और खतरा नीतीश की सरकार तक फैल सकता है।
पिछले साल आरसीपी सिंह का राज्यसभा का कार्यकाल खत्म हो गया। उन्हें केंद्रीय मंत्री पद पर बने रहने के लिए राज्यसभा से फिर चुने जाना जरूरी था। मगर जेडीयू ने उनका टिकट काट दिया और पार्टी ने खीरो महतो को राज्यसभा भेज दिया। इसके बाद मजबूरन आरसीपी सिंह को केंद्रीय मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। मंत्री पद जाने के बाद आरसीपी के पास न तो सरकार और न ही पार्टी में कोई जिम्मेदारी बची थी। इस बीच पार्टी ने उनको नोटिस भेजकर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए। इससे आहत होकर आखिरकार अगस्त 2022 में आरसीपी सिंह ने जेडीयू छोड़ दी। जेडीयू छोड़ने के बाद से वह सीएम नीतीश पर लगातार हमला बोल रहे हैं। अब बीजेपी में रहकर नीतीश सरकार के खिलाफ लड़ाई लड़ेंगे।