बिना सत्यापन सिर्फ कागज पर बनी फर्म को 82 लाख 70 हजार रुपये से अधिक का भुगतान मनरेगा के सामग्री अंश से किया, जबकि लेन-देन कुछ भी नहीं हुआ था। डीएम ने मानी गलती बोले सख्त कार्रवाई की जाएगी…

सरकारी स्कीम मनरेगा के जरिए भले ही मजदूरों को पूर्ण रोजगार नहीं मिल पा रहा है, लेकिन मनरेगा के जरिए अधिकारियों की जेब जरूर भर रही हैं। ताजा मामला उप्र के हरदोई जिले का है, जहां मनरेगा में अफसरों ने गजब का कारनामा किया है। हरदोई के अफसरों ने वित्तीय वर्ष 2022-23 में एक ऐसी फर्म को 82 लाख रुपये से अधिक का भुगतान कर दिया, जिसने न तो कुछ खरीदा और न ही बेचा। इतना ही नहीं जब इस फर्म को नोटिस जारी किया गया तो काफी खोजने पर भी फर्म का कोई पता नहीं चला।

दरअसल, मनरेगा के तहत कराए जाने वाले विकास कार्यों का भुगतान दो मदों में किया जाता है। श्रमांश का भुगतान जॉबकार्ड धारकों के खातों में किया जाता है, जबकि सामग्री अंश का भुगतान फर्मों को किया जाता है। वित्तीय वर्ष 2022-23 में हरपालपुर विकास खंड की अलग-अलग ग्राम पंचायतों ने खाटू श्याम कांट्रेक्टर्स एंड सप्लायर्स को 82 लाख 70 हजार रुपये से अधिक का भुगतान मनरेगा के सामग्री अंश से किया। सिर्फ कागज पर बनी फर्म को सीमेंट, बजरी, रोड़ी आदि के नाम पर अफसरों ने भुगतान कर दिया, जबकि लेन-देन कुछ भी नहीं हुआ था।

इसकी प्रोपराइटर राधा नाम की महिला है। काफी खोजने पर भी हरपालपुर ब्लॉक मुख्यालय से लेकर हरदोई तक में इस महिला का कोई अता पता नहीं चला। जब इस बारे में और खोजबीन की गई, तो कुछ महत्वपूर्ण दस्तावेज हाथ लगे। इनसे पता चला कि फर्म जरूर जीएसटी में पंजीकृत है, लेकिन फर्म ने ऑनलाइन फीडिंग में अपना कारोबार शून्य बताया है। मतलब यह कि फर्म ने न कुछ खरीदा और न ही कुछ बेचा। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि मनरेगा के खाते से आखिर इस फर्म को 82 लाख रुपये से अधिक का भुगतान जिम्मेदारों ने किस आधार पर कर दिया।

फर्म को मनरेगा की वेंडर्स लिस्ट में किसने फीड कराया? फीडिंग के समय फर्म का स्थलीय सत्यापन क्यों नहीं हुआ? फर्म को कार्य देने का निर्णय किसका था? भुगतान से पहले फर्म की कोई जानकारी क्यों नहीं जुटाई गई? खाटू श्याम कांट्रैक्टर्स एंड सप्लायर्स फर्म को भुगतान से ऐसे कई सवाल खड़े हो गए। मामला सिर्फ कागजी फर्म का ही नहीं बल्कि जीएसटी के खेल का भी है। इस फर्म को 82 लाख रुपये से अधिक का भुगतान हुआ है। यह भुगतान सीमेंट, रोड़ी, बजरी जैसी सामग्रियों पर किया गया है। इन पर जीएसटी अलग-अलग है। एक औसत के मुताबिक लगभग 10 लाख रुपये की जीएसटी की देय बनती है। इसका भी भुगतान कागजी फर्म को दिनाकर गोलमाल किया गया।

दबाव पड़ने पर कर्मचारियों ने प्रतिनिधि ने फर्म के पते पर जाकर जानकारी जुटाई तो एक और खुलासा हुआ। फर्म का पता हाल ही में 30 मई 2023 को बदल दिया गया। इस फर्म का पता छह जनवरी 2023 को कृष्ण कुमार मिश्रा, नवीपुरवा हरदोई था। पूछताछ में कृष्ण कुमार मिश्रा फर्म के बारे में कोई कुछ नहीं बता पाया, लेकिन इतना जरूर बताया कि यह मकान हरपालपुर ब्लॉक में तैनात एक कंप्यूटर ऑपरेटर का है। 30 मई को पता बदलकर 01, विश्वनाथ मंदिर कैनाल रोड प्रगतिनगर, हरदोई कर दिया गया। यहां पहुंचने पर भी फर्म के बारे में स्थानीय लोग कुछ नहीं बता पाए।

इस बारे में हरदोई के डीएम मंगला प्रसाद सिंह ने कहा कि मुझे इस गड़बड़ी के बारे में पता चला है। किसी भी फर्म का सत्यापन किए बिना भुगतान करना ही बड़ी लापरवाही है। पूरे मामले की विस्तृत जांच कराई जाएगी। जो भी दोषी पाया जाएगा, उस पर सख्त कार्रवाई जरूर की जाएगी। अनियमितताएं किसी भी हाल में बर्दाश्त नहीं की जाएंगी।

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