निठारी कांड अकेला मामला नहीं है, बल्कि पिछले 10 सालों में सीबीआई की चार अलग-अलग अदालतों में 146 केसों का निस्तारण हुआ। इनमें से 30 प्रतिशत आरोपियों को संदेह का लाभ मिला और आरोपों से बरी हो गए।
सीबीआई कोर्ट से फांसी की सजा सुनाए जाने के बाद हाईकोर्ट ने साक्ष्यों के अभाव में हत्या के मामले में सुरेंद्र कोली और मोनिंदर सिंह पंढेर को बरी कर दिया है।
सीबीआई की लचर कार्यप्रणाली के चलते इन केसों में 30 प्रतिशत आरोपियों को संदेह का लाभ मिला और आरोपों से बरी हो गए। पूर्व जिला शासकीय अधिवक्ता सुरेश यादव का कहना है कि अपराध से जुड़े किसी भी केस का आधार सीबीआई का साक्ष्य संग्रह है। अदालत सबूत के आधार पर निर्णय देती है। साक्ष्य नहीं होने पर कई गंभीर अपराधों में भी मुजरिम छूट जाते हैं।
सीबीआई मामलों की पैरवी करने वाले अधिवक्ता राजकुमार चौहान ने बताया कि कई बार मुकदमा दर्ज होने पर मौके पर प्रत्यक्षदर्शी गवाह बन जाते हैं। लेकिन लंबे समय तक सुनवाई चलने और अदालत के चक्कर काटने से बचने के लिए गवाह पूर्व में दिए बयान से मुकर जाते हैं, इसका लाभ आरोपी को मिल जाता है।
निठारी कांड में जनवरी 2007 को सीबीआई ने अपने हाथ में लेते हुए जांच पूरी की थी। सुनवाई पूरी होने के बाद तत्कालीन सीबीआई जज रमा जैन ने पहली 13 फरवरी 2009 को सुरेंद्र कोली और मोनिंदर पंढेर को सजा-ए-मौत की सजा सुनाई थी। 13 साल में 13 मामलों में सुरेंद्र कोली को सजा-ए-मौत की सजा सुनाई गई थी।
हाईकोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि जांच किए बिना एक गरीब नौकर को खलनायक की तरह पेश कर उसे फंसाने का आसान तरीका चुना है। साक्ष्यों का अभाव मानते हुए सुरेंद्र कोली को 12 मामलों में बरी कर दिया। वहीं मोनिंदर पंढेर को भी बेगुनाह साबित कर दिया।
अलीगढ़ में एक शिक्षण संस्थान के मान्यता की जांच सीबीआई ने अक्षम अधिकारी से कराई। अदालत ने जांच और सीबीआई की पूरी कार्रवाई अवैध मानते आरोपियों को दोष मुक्त कर दिया था। 2010 में राजेंद्र सिंह मेमोरियल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्निकल एंड रिसर्च मथुरा रोड के प्रबंधक समिति से साठगांठ करके मान्यता देने में अनियमितता का आरोप लगा था। सीबीआई ने जांच के बाद बताया था कि विशेषज्ञ समिति एआईसीटीसी ने जांच के दौरान अनियमितता की।

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