विधान परिषद के उप चुनाव में 20 साल बाद मतदान होगा। इससे पहले वर्ष 2002 में ऐसी स्थिति आई थी, जब रालोद के मुन्ना सिंह चौहान के खिलाफ निर्दल यशवंत ने ताल ठोकी थी। हालांकि बाजी चौहान ने मारी थी। अब 29 मई को दो सीटों पर होने वाले उप चुनाव के लिए सत्ताधारी भाजपा के उम्मीदवारों के खिलाफ मुख्य विपक्षी दल सपा ने भी प्रत्याशी उतार दिए हैं।
विधान परिषद की दो सीटें एमएलसी लक्ष्मण आचार्य के इस्तीफा देने और बनवारी लाल दोहरे के निधन से खाली हुई हैं। इन सीटों को भरने के लिए चुनाव आयोग उप चुनाव करा रहा है। दोनों ही सीटें भाजपा के पास थीं और उसने मानवेंद्र सिंह और पदमसेन को प्रत्याशी बनाया है।
विधान परिषद का उप चुनाव वरीयता व आनुपातिक मतों के बजाय बहुमत के आधार पर होता है। यानी, जिस पार्टी के ज्यादा विधानसभा सदस्य होंगी, वही जीतेगा। वर्तमान में विधानसभा के 403 में से 274 सदस्य भाजपा के हैं, जोकि जीत के लिए जरूरी नंबर से कहीं ज्यादा हैं।
उप चुनाव में मतदान की स्थिति इससे पहले नवंबर 2002 में हुए चुनाव में आई थी। तब विधान परिषद की सीट एमएलसी मसूद खां के निधन से खाली हुई थी। उप चुनाव में रालोद ने मुन्ना सिंह चौहान को अपना प्रत्याशी बनाया तो निर्दलीय प्रत्याशी यशवंत ने भी पर्चा दाखिल कर दिया। 18 नवंबर 2002 को मतदान हुआ तो परिणाम रालोद के पक्ष में गया।