सरकार ने विदेशी फंडिग लेने वाले गैर-सरकारी संगठनों यानी एनजीओ की कड़ी निगरानी शुरू कर दी है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने घोषणा की है कि ऐसे किसी भी एनजीओ का लाइसेंस रद्द कर दिया जाएगा जिसके विकास विरोधी गतिविधियों, धर्मातरण, दुर्भावनापूर्ण इरादे से विरोध-प्रदर्शन भड़काने या आतंकवादी या कट्टरपंथी समूहों के साथ संबंध हैं।

विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम, 2010 के तहत उनका पंजीकरण रद्द कर दिया जाएगा। कानूनन विदेशी चंदा हासिल करने के लिए एनजीओ को विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम के तहत पंजीकृत होना अनिवार्य है।

बीते दो-तीन साल में किसी गतिविधि में शामिल नहीं रहने, पूर्णत: निष्क्रिय या जांच के दौरान उन गतिविधियों की पुष्टि नहीं की जा सकती, जिनका दावा किया गया था। इस साल की पहली तिमाही में ही सरकार द्वारा कई बड़े एनजीओ के पंजीकरण निरस्त किए थे जिन पर नियमों के विरुद्ध गतिविधियों में शामिल होने व कानूनों का उल्लंघन करने का आरोप था।

केंद्रीय सांख्यिकी संस्थान के अनुसार देश में तैंतीस लाख एनजीओ काम कर रहे हैं जो समाज उत्थान व उपेक्षित वर्ग के लिए काम करते हैं। ये गैर-सरकारी व गैर-लाभकारी संगठन देसी-विदेसी संस्थाओं से वित्तीय मदद लेते हैं।

इनमें से कई पर वित्तीय धांधली के अलावा देश विरोधी गतिविधियों में लिप्त होने के आरोप सिद्ध होते रहे हैं जिससे निपटने के लिए सरकार ने सख्त रवैया अपनाया। बीते वित्त वर्ष में इन संगठनों ने विदेशी फंडिंग के माध्यम से साढ़े पचपन हजार करोड़ रुपये की मदद प्राप्त की थी।

जाहिर है, सरकार के पास इस धन के इस्तेमाल का सटीक ब्योरा होना अनिवार्य हो जाता है। देश-विरोधी गतिविधियों, धन शोधन और आतंकवादियों के वित्त पोषण के सबूतों के बाद सरकार का सतर्क होना बनता है।

हालांकि इन गैर-सरकारी संगठनों के प्रतिनिधियों का आरोप है कि सरकार की मंशा संग्दिध है। वह जान-बूझकर इनको अपनी गिरफ्त में रखना चाहती है। बेशक, शिक्षा, चिकित्सा व अन्य सार्वजनिक उपयोगिता उद्देश्यों को देश के जरूरतमंदों तक पहुंचाने का काम एनजीओ करते आए हैं मगर इसलिए उन्हें अतिरिक्त छूट नहीं दी सकती।

आखिर, एक मछली सारे तालाब को गंदा कर देती है। उन्हें सरकारी नियमों और पाबंदियों का ख्याल रखना होगा क्योंकि  कोताही होने पर अंतत: सरकार और सुरक्षा व्यवस्था जवाबदेह माने जाते हैं।

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