एनआईए ने बेंगलुरु के रामेश्वरम कैफे विस्फोट में दो मुख्य संदिग्धों, मुसाविर हुसैन शाजिब और अब्दुल मथीन अहमद ताहा को बंगाल से गिरफ्तार कर लिया है। यह पुलिस और एनआईए की सफलता है, लेकिन इसे लेकर जिस तरह की राजनीति शुरू हुईं है, उससे लगता है कि आंतकवाद को लेकर राजनीतिक दलों के बीच कोई तालमेल नहीं है।

आंतकवाद को राष्ट्रीय समस्या के रूप में लेने के बजाय इसे मजहब और प्रांत से जोड़ कर देखा जाता है और उसी के आधार पर दोषी को सजा दिलाने या बचाने की वकालत की जाती है। दोनों संदिग्धों पर कर्नाटक स्थित शिवमोग्गा के आईएसआईएस सेल से जुड़े होने की खबर आ रही है, लेकिन ममता बनर्जी एनआईए के आतंक विरोधी ऑपरेशन को बीजेपी का प्रचार तंत्र बता कर मामले को नया मोड़ देने की कोशिश कर रही हैं।

रामेश्वरम कैफे विस्फोट का मामला बेहद पेचीदा था। इसे अंजाम देने वाले पूरी तरह से प्रशिक्षित आतंकी थे। उनके अपनाए गए तरीके से पुलिस भी हैरान थी। बम विस्फोट करने वाले आतंकवादियों की योजना निर्दोष लोगों को अधिकतम नुकसान पहुंचाने की थी।

उन्होंने बम को स्क्रू, कील, नट, बोल्ट और स्टील की बॉल्स से भरकर क्षैतिज (horizontal) रूप से विस्फोट करने के लिए डिज़ाइन किया था। सौभाग्य से, विस्फोट क्षैतिज के बजाय लंबवत (vertical) हुआ और रेस्टोरेंट की छत को ही ज्यादा नुकसान पहुंचा। पुलिस का यह भी कहना था कि जो शख्स इस बम धमाके में शामिल था, वह पिछले तीन महीने से रेस्टोरेंट की रेकी कर रहा था।

इस रेस्तरां के आसपास के लगे कैमरों से पता चला कि वह व्यक्ति बार-बार इस रेस्तरां में आता था और भीड़ को देखते हुए तथा रेस्तरां के अंदर बम रखे जाने पर पकड़े जाने से बचने के लिए बाहर निकाल आता था। आखिर उसने 1 मार्च को दोपहर नमाज के बाद इस काम को सफाई से अंजाम तक पहुंचा दिया।

उस दिन आतंकी ने अंदर बम रखने के बाद सीसीटीवी से बचने के लिए टोपी पहन रखी थी और वह फुटपाथ से बचते हुए सड़क किनारे चलकर वहां से निकल गया। खास बात यह थी कि उसने भागने के लिए किसी भी वाहन का उपयोग नहीं किया। वह काफी दूर तक पैदल चला और सरकारी बस में बैठ कर वहां से भागने में कामयाब हुआ। पुलिस का यह भी कहना है कि उसने भागने के लिए 15 बसें बदलीं।

एनआईए से बैंगलुरु पुलिस ने बड़े दावे किए, लेकिन जब कोई खास सुराग नहीं मिला तो फिर राष्ट्रीय जांच एजेंसी को यह काम सौंपा गया। एनआईए ने ही यह यह शुरुआती जानकारी दी कि इस मामले में दो प्राथमिक संदिग्ध हैं। एक की पहचान 30 वर्षीय अब्दुल मतीन अहमद ताहा के रूप में हुई। उसी ने हमले को अंजाम दिया।

खास बात यह है कि इस काम के लिए उसने अपनी मुस्लिम पहचान छुपाई और एक हिंदू नाम का इस्तेमाल किया। रेस्तरां में उसने अपना परिचय विग्नेश या सुमित के रूप में दिया। दूसरे आरोपी मुसाविर हुसैन ने मोहम्मद जुनेद सईद के नाम से फर्जी ड्राइविंग लाइसेंस का इस्तेमाल किया। एनआईए ने 29 मार्च को दोनों आरोपियों के चेहरे जारी किए फिर इन्हें अभी हाल ही में बंगाल से गिरफ्तार भी कर लिया। उन पर 10 लाख रुपये का इनाम रखा गया था।

इनको पकड़ने के लिए एनआईए ने बेहद सावधानी और एहतियात से काम लिया। हमलावर की टोपी कैफे से 3 किमी दूर मिली थी। हमलावर ने जहां टोपी फेंकी थी, वहीं उसने अपनी शर्ट भी बदली थी। जांचकर्ताओं ने कैप के सीरियल नंबर से पता लगाया कि उसे चेन्नई के एक मॉल में खरीदा गया था। वह टोपी एक लिमिटेड एडिशन की खास बेसबॉल कैप थी, जो भारत में केवल 400 बिक्री हुई है।

चेन्नई मॉल के सीसीटीवी से संदिग्धों की पहचान हो गई। एनआईए ने वहाँ की फुटेज से बेंगलुरु की बस में बिना मास्क के ली गई हमलावर की तस्वीरों से मिलान किया और इस तरह से उस तक पहुंचने में मदद मिली। एनआईए ने इस प्रक्रिया में लगभग 1,000 से अधिक सीसीटीवी कैमरों की जांच की। टोपी पर मिले बालों का डीएनए टेस्ट भी करवाया गया और यह सुनिश्चित हो गया कि हमलावर मुसाविर हुसैन शाज़िब ही है, क्योंकि डीएनए सैंपल का मिलान शाजिब के माता-पिता के डीएनए सैंपल से हो गया था।

एनआईए की इस घोषणा के बाद कि उसने बेंगलुरु रामेश्वरम कैफे विस्फोट मामले में दो प्रमुख संदिग्धों को गिरफ्तार कर लिया है, भाजपा और तृणमूल कांग्रेस में बयानबाजी शुरू हो गई है। बीजेपी बंगाल को आतंकवादियों के लिए सुरक्षित पनाहगाह बताकर टीमसी पर हमला कर रही है तो ममता बनर्जी इसे अपनी पुलिस की कामयाबी बताकर पलटवार कर रही है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने कहा कि भाजपा को यह बात पसंद नहीं है कि राज्य में लोग शांति से रहें।

काँग्रेस ने भी रामेश्वरम कैफे विस्फोट को हल्का फुल्का बता कर उस पर पर्दा डालने की कोशिश की थी। विस्फोट होने के तुरंत बाद कांग्रेस के नेता, कार्यकर्ता और उनके मीडिया समर्थक भी इसे गैस सिलेंडर ब्लास्ट बताते रहे और इसमें किसी आतंकी का हाथ होने से लगातार इंकार करते रहे। कर्नाटक कांग्रेस के नेता तो यह भी आरोप लगाने लगे कि भाजपा समर्थक मीडिया एक साधारण दुर्घटना को आतंकी कार्यवाही बता कर मुसलमानों को बदनाम करने की साजिश कर रही है।

इसके पहले एनआईए की टीम ने मेदिनीपुर जिले में 6 अप्रैल देर शाम एक छापा मारा था। लेकिन राष्ट्रीय जांच एजेंसी की इस टीम को तब गहरा धक्का लगा, जब वहाँ के लोगों ने एकत्र होकर एनआईए टीम पर हमला कर दिया। कई अधिकारी इस हमले में घायल हो गए। एनआईए के अधिकारियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के बजाय ममता बनर्जी की पार्टी द्वारा यह कर हमले का बचाव किया गया कि रात को किसी के घर में घुसने पर हमला होगा ही।

यहीं नहीं ममता की पुलिस ने एनआईए अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर लिख कर उनके खिलाफ समन भी जारी कर दिया। उन्हें भूपतिनगर पुलिस स्टेशन के जांच अधिकारी के सामने पेश होने के लिए कहा गया था। भूपतिनगर पुलिस स्टेशन के जांच अधिकारी ने एनआईए से उस वाहन को लाने के लिए भी कहा जो 6 अप्रैल को हमले के दौरान कथित तौर पर क्षतिग्रस्त हो गया था। वे उसका फोरेंसिक परीक्षण करना चाहते थे। स्पष्ट था कि ममता बनर्जी की सरकार प्रशासन और पुलिस सभी मिलकर एनआईए को उसके काम से रोकने की पूरी कोशिश में लगे हुए थे।

 

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