राजस्थान की राजनीति में ये नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है तो देश के राजनीतिक गलियारों में भी दशकों तक इस नाम की गूंज रही है। ये गूंज इसलिए नहीं कि शेखावत तीन बार मुख्यमंत्री रहने के साथ देश के उपराष्ट्रपति पद पर भी आसीन रहे। शेखावत की पहचान बनी तो समर्पित भाव से अपने आपकों पार्टी के लिए खपा देने के कारण।

पहले वर्षों तक जनसंघ का “दीपक” जलाया तो फिर बाद में तीन दशक तक भाजपा के “कमल” को खिलाने में अहम भूमिका निभाई। पहले जनसंघ और फिर लंबे समय तक भाजपा का नेतृत्व करते रहे “अटल – आडवाणी” की जोड़ी भी पार्टी के नीतिगत फैसलों में शेखावत की राय को तवज्जो देती थी।

शेखावत की पहचान भले दक्षिणपंथी पार्टी कहे जाने वाली भाजपा नेता के रूप में रही हो लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी की तरह बाकी दलों के लिए वे कभी अछूत नहीं रहे। उनके संबंध वामपंथी नेता ज्योति बसु के साथ भी रहे तो शरद पवार और करूणानिधि से उनकी निजी मित्रता भी किसी से छिपी नहीं रही।

पहले विधानसभा चुनाव से लेकर 1998 तक चुनाव लड़ने वाले शेखावत जब 2002 में उपराष्ट्रपति बने तो उन्होंने दलीय राजनीति को अलविदा कह दिया। लेकिन उसके बाद उनके दामाद नरपत सिंह राजवी ने उनकी राजनीतिक विरासत को संभाला। शेखावत के मुख्यमंत्री रहते ही भाजपा की राजनीति में प्रवेश कर चुके राजवी पांच बार विधानसभा चुनाव जीते।

इस बार भाजपा की राजस्थान के लिए जारी 41 उम्मीदवारों की पहली सूची में राजवी का टिकट कटना प्रदेश के राजनीतिक हलकों में खासी चर्चा का विषय बना हुआ है। चर्चा इस बात की है कि क्या राजवी का टिकट कटने को प्रदेश की राजनीति से शेखावत की विरासत का अंत समझा जाए? या फिर भाजपा नेतृत्व राजवी को अन्यत्र शिफ्ट करने पर विचार कर रहा है?

संभावनाओं के अंतहीन सिलसिले का दूसरा नाम राजनीति है। ये साफ है कि राजवी का टिकट कट गया है। लेकिन अभी ये तय होना बाकी है कि भाजपा की शेष रही 159 सीटों में राजवी को जगह मिलती है या नहीं? यहां सवाल ये भी है कि आखिर राजवी का टिकट कटा क्यों? वसुंधरा राजे से नजदीकी होने के चलते या संगठन से तालमेल का अभाव। या फिर कारण कुछ और हैं जो पर्दे के बाहर नहीं आ रहे।

राजवी की बीते तीन दशकों की राजनीतिक यात्रा पर नजर डाली जाए तो एक बात साफ है कि शेखावत के रहते वे उनकी छत्रछाया में राजनीति करते रहे। लेकिन शेखावत के निधन के बाद अपनी अलग पहचान नहीं बना पाए। उनकी कभी राजे से नहीं बनी तो कभी संगठन से। भाजपा का विचार परिवार कहे जाने वाले संघ से भी उनकी खास नहीं बनी। पांच बार विधायक और मंत्री रहने के बावजूद राजनीति में वे अपनी वो जगह नहीं बना पाए, जो बना सकते थे।

भाजपा की आखिरी सूची आने तक राजवी को लेकर अटकलें चलती रहेंगी। अटकलें सिर्फ राजवी के कारण नहीं। राजवी का नाम शेखावत से जो जुड़ा है। वो शेखावत जिन्होंने 2008 के विधानसभा चुनाव में विधाधर नगर से पहली बार चुनाव लड़े तो सिर्फ राजवी के प्रचार के लिए नरेन्द्र मोदी आए थे। ये किसी से छिपा नहीं कि मोदी शेखावत का कितना सम्मान करते थे।

शेखावत देश के इकलौते राजनेता थे, जो आठ विधानसभा क्षेत्रों से चुनाव जीतने में कामयाब रहे। अपने 55 साल के राजनीतिक जीवन में 10 विधानसभा क्षेत्रों से चुनाव लड़ा और आठ में सफलता हासिल की। जयपुर, जोधपुर, बीकानेर, उदयपुर और कोटा संभाग के आठ अलग-अलग जिलों से चुनाव लड़ने का अनूठा रिकार्ड भी शेखावत के खाते में दर्ज है। भाजपा का पहला उपराष्ट्रपति चुने जाने का अवसर आया तो पार्टी ने सबसे पहले शेखावत को ही मौका दिया था।

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