सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि जब आरोपी के खिलाफ यूपी गैंगस्टर एक्ट (UP Gangsters Act) की धारा 3(1) के तहत मुकदमा चलाया जाए तब अभियोजन पक्ष को यह साबित करने की जरुरत है कि गिरोह का सदस्य होने के नाते आरोपी असामाजिक गतिविधियों में लिप्त है, जो भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत दंडनीय अपराधों के तहत कवर किया जाएगा।
लॉ लाइव हिन्दी की एक रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने कहा, “कहने की जरूरत नहीं है कि गैंगस्टर एक्ट के तहत अपराध के लिए आरोप तय करने और उपरोक्त प्रावधानों के तहत अभियुक्तों पर मुकदमा चलाने के लिए अभियोजन पक्ष को स्पष्ट रूप से यह बताना होगा कि अपीलकर्ताओं पर किसी एक या अधिक अपराधों के लिए मुकदमा चलाया जा रहा है ( आईपीसी के तहत निहित) धारा 2 (बी) के तहत परिभाषित असामाजिक गतिविधियों के अंतर्गत आता है।”
हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए, जिसने अपीलकर्ता आरोपियों के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही रद्द करने से इनकार किया था, जस्टिस संदीप मेहता द्वारा लिखे गए फैसले में कहा गया कि यदि आरोपी अधिनियम की धारा 2 (बी) (आई) के तहत आने वाले विधेय अपराधों से बरी हो जाता है तो गैंगस्टर एक्ट के तहत अपराध के लिए अभियुक्तों पर लगातार मुकदमा चलाना अनुचित है और अदालत की प्रक्रिया के दुरुपयोग के समान है।
गैंगस्टर एक्ट की धारा 2(बी)(आई) में कहा गया कि यदि व्यक्ति असामाजिक गतिविधियों में लिप्त पाया जाता है तो उसे गिरोह का सदस्य माना जाएगा, जो आईपीसी के अध्याय XVI, या XVII, XXII के तहत दंडनीय अपराधों के अंतर्गत आएगा। एक्ट की धारा 3(1) और धारा 2(बी) के तहत परिभाषित गिरोह का सदस्य होने के लिए दंड निर्धारित करती है।

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