दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को चेकोस्लोवाकिया की एक महिला से दुष्कर्म करने के मामले में आरोपी एक आध्यात्मिक गुरु को जमानत देने से इनकार कर दिया है।
दरअसल, पीड़ित महिला के पति के निधन के बाद के अनुष्ठानों के लिए आध्यात्मिक गुरु द्वारा उसका मार्गदर्शन किया जा रहा था। हालांकि, आरोपी ने आरोपों से इनकार करते हुए तर्क दिया कि महिला ने उसके साथ प्रयागराज, बनारस और गया सहित कई जगहों पर स्वतंत्र रूप से यात्रा की और उनके बीच कोई भी शारीरिक संबंध सहमति से बने थे।
हाईकोर्ट ने कि वह इस चरण में आरोपी याचिकाकर्ता को राहत देने के लिए राजी नहीं है और केवल इसलिए कि पीड़िता ने उनके साथ रहने के लिए सहमति दी थी, यह यौन संबंध बनाने के लिए उसकी सहमति का अनुमान लगाने का आधार नहीं हो सकता है।
जस्टिस अनूप जयराम भंभानी ने कहा है कि ‘पीड़िता की स्थिति के प्रति सहमति’ बनाम ‘यौन संबंध की सहमति’ के बीच एक अंतर को भी स्पष्ट करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि केवल इसलिए कि एक महिला किसी पुरुष के साथ रहने के लिए सहमति देती है, चाहे वह कितने भी समय के लिए क्यों न हो, इसका मतलब यह नहीं कि उसने पुरुष के साथ यौन संबंध बनाने की भी सहमति दी थी।
कोर्ट ने कहा, “वर्तमान मामले में, केवल इसलिए कि पीड़ित महिला अंतिम संस्कार और अनुष्ठानों के उद्देश्य से याचिकाकर्ता के साथ विभिन्न पवित्र स्थानों पर जाने के लिए सहमत हुई, वास्तव में इसका मतलब यह नहीं है कि उसने उसके साथ यौन संबंधों के लिए सहमति दी।”
अदालत ने कहा कि शारीरिक संबंधों की पहली कथित घटना, जो बलात्कार नहीं थी, लेकिन पीड़िता की चुप्पी को “अधिक गंभीर यौन संपर्क का लाइसेंस नहीं माना जा सकता है”।