भारत की आबादी लगातार बढ़ रही है, हाल ही में भारत ने आबादी के लिहाज से चीन को पीछे छोड़ दिया है। लेकिन जिस तरह से देश की आबादी बढ़ रही है उसके साथ ही देश में प्रदूषण की समस्या भी बढ़ रही है। बढ़ते प्रदूषण की वजह से लोगों की जीवन प्रत्याशा में भी गिरावट देखने को मिल रही है। जीवन प्रत्याशा की बात करें तो व्यक्ति की जो बची हुई आयु की अवधि का अनुमान होता है।
वर्ष 2021 के पीएम 2.5 के डेटा के अनुसार भारत में प्रदूषण का स्तर बढ़ा है, यह 2020 में 56.2 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर (µg/m3), जोकि 2021 में बढंकर 58.7 µg/m3 पहुंच गया है। जोकि विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से तय सीमा 5 µg/m3 से 10 गुना अधिक है।
अगर भारत की तुलना चीन से की जाए तो चीन ने जीवन प्रत्याशा में सुधार किया है। 2013 में जीवन प्रत्याशा 4.7 वर्ष से 2.5 वर्ष हो गई है। 2.2 वरिष का यह सुधार वायु प्रदूषण पर नियंत्रण की वजह से देखने को मिला है।
यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो के एनर्जी पॉलिसी इंस्टिट्यूट की ओर से वार्षिक एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स की रिपोर्ट जारी की गई है जिसमे कहा गया है कि अगर चीन में प्रदूषण के स्तर को कम नहीं किया होता तो 2013 की तुलना में वैश्विक प्रदूषण में बढ़ोत्तरी देखने को मिलती।
दुनिया के तमाम देशों की बात करें तो भारत पर स्वास्थ्य का सबसे अधिक दबाव देखने को मिल रहा है। 2013 के बाद दुनिया में जितना प्रदूषण बढ़ा है उसमे अकेले भारत का योगदान 59.1 फीसदी है। बता दें कि बढ़ते प्रदूषण की वजह से जीवन प्रत्याशा का दर घटता है।
देश में सबसे अधिक प्रदूषण की बात करें तो सबसे पहले नंबर पर दिल्ली आता है। अगर यहां पर प्रदूषण के स्तर को कम किया जाए तो लोगों की जीवन प्रत्याशा 8.5 वर्ष बढ़ सकती है। इसी तरह से उत्तर प्रदेश में लोगों की उम्र 8.8 वर्ष, हरियाणा के लोगों की 8.3 वर्ष, बिहार के लोगों की 8 वर्ष, पंजाब के लोगों की 6.4 वर्ष जीवन प्रत्याशा बढ़ सकती है।
वहीं एनसीआर के लोगों की जीवन प्रत्याशा 11.9 वर्ष, गौतम बुद्ध नगर में 11.3 वर्ष, गुरुग्राम में 11.2 वर्ष, फरीदाबाद में 10.8 वर्ष, गाजियाबाद में 10.7 वर्ष जीवन प्रत्याशा बढ़ सकती है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन ने अपनी नीतियों में बदलाव के दम पर प्रदूषण के स्तर को कम किया है। चीन ने नेशनल एयर क्वालिटी एक्शन प्लान की शुरुआत की। बीजिंग, शंघाई, ग्वांगझू में सड़क पर कारों की संख्या को सीमित किया। नए कोयला खदानों को रोका गया है।
भारत में भी नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम की शुरुआत की गई थी। 2019 में इस योजना की शुरुआत पीएम लेवल को 20-30 फीसदी कम करने के लिए किया गया था। 2022 में इस लक्ष्य को बढ़ाकर 40 फीसदी करने का टार्गेट रखा गया। 2026 तक प्रदूषण स्तर को 40 फीसदी तक कम करने का लक्ष्य रखा गया है।
वहीं इस रिपोर्ट पर EPIC के डायरेक्टर का कहना है कि लोगों के स्वास्थ्य के लिए हवा में मौजूद छोटे प्रदूषण के कण बड़ी चुनौती हैं। अमेरिका, यूरोप, जापान और हाल ही में चीन ने इसे कम करने में सफलता हासिल की है। इसमे लोगों को जागरूक करना और नीतियों में बदलाव सबसे अहम रहा है।