भारत विविधताओं से भरा देश है। यहां अगल- अलग क्षेत्रों में विभिन्न जाति, धर्म और संप्रदाय के लोग हैं। सांप्रदायिक तौर पर देखा जाए तो अलग- धर्मों के मानने वाले लोगों को यहां शादी, तलाक, बच्चों को अपना उत्तराधिकारी बनाने के अलग- अलग नियम हैं। अलग- अलग धर्मों में बेटियों और बेटों के पैतृक संपत्ति पर हकों को लेकर अंतर देखने को मिले है।

शादी और तलाक के मामलों में भी कई तरह की विसंगतियां देखने को मिलती हैं। ऐसे में पारिवारिक विवाद के मामले अदालतों में लगातार बढ़ रहे हैं। तलाक, उत्तराधिकार के दावे से संबंधित हैं। ऐसे में मौजूदा एनडीए की सरकार लगातार समान नागरिक संहिता की वकालत करती रही।

यूनीफार्म सिविल कोड यानी एक ऐसा कानून जो किसी देश में रहने वाले सभी नागरिकों के लिए एक समान हो। जो किसी जाति या फिर धर्म के आधार पर किसी भी प्रकार के भेदभाव रहित हो। ये कानून बनने के बाद भारत में शादी, तलाक, बच्चे को गोद लेना या फिर उत्तराधिकार के मामलों में सभी नागरिकों के लिए नियम एक जैसे होंगे।

इससे पहले जून में पीएम मोदी ने कॉमन सिविल कोड को लेकर बड़ी बात कही थी। उन्होंने कहा कि एक ही परिवार में दो लोगों के अलग-अलग नियम नहीं हो सकते। ऐसी दोहरी व्यवस्था से घर कैसे चल पाएगा? पीएम ने कहा,”सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार कहा है. सुप्रीम कोर्ट डंडा मारता है. कहता है कॉमन सिविल कोड लाओ. लेकिन ये वोट बैंक के भूखे लोग इसमें अड़ंगा लगा रहे हैं. लेकिन भाजपा सबका साथ, सबका विकास की भावना से काम कर रही है.”

वहीं तीन तलाक को लेकर प्रधानमंत्री ने कहा कि जो ‘ट्रिपल तलाक़’ की वकालत करते हैं, वे वोट बैंक के भूखे हैं और मुस्लिम बेटियों के साथ घोर अन्याय कर रहे हैं। ‘ट्रिपल तलाक़’ न सिर्फ महिलाओं की चिंता का विषय है, बल्कि यह समूचे परिवार को नष्ट कर देता है।

यूसीसी को लेकर केंद्र सरकार का तर्क है कि समान नागरिक संहिता का मकसद देश में मौजूद सभी नागरिकों के पर्सनल लॉ को एक समान बनाना है। ये बिल धार्मिक, लैंगिक या जातीय भेदभाव को दूर करने के लिए लाया जाएगा।

 

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