बांग्लादेश में सरकारी नौकरियों के लिए आरक्षण प्रणाली में सुधार की मांग को लेकर छात्रों के विरोध प्रदर्शन के दौरान राजधानी ढाका तथा अन्य जगहों पर हिंसा भड़कने से मरने वालों का आंकड़ा और बढ़ गया है जिसको देखते हुए शेख हसीना सरकार ने देशभर में कर्फ्यू लगाने और सेना तैनात करने का फैसला किया है। मीडिया रिपोर्टों में प्रधानमंत्री शेख हसीना के प्रेस सचिव का हवाला देते हुए यह जानकारी दी गयी है। रिपोर्टों के मुताबिक प्रधानमंत्री के प्रेस सचिव नईमुल इस्लाम खान ने मीडिया को यह जानकारी दी। स्थानीय मीडिया ने कहा है कि तमाम तरह के प्रतिबंधों के बावजूद छात्रों के प्रदर्शन के दौरान भड़की हिंसा में तीन और लोगों की मौत हो गयी है। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक पुलिस ने कुछ इलाकों में प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस छोड़ी। सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में कई जगह आग की लपटें उठतीं देखी गयीं हैं। बताया जा रहा है कि बांग्लादेश में कई जगहों पर फोन और इंटरनेट कनेक्शन भी बाधित है और कुछ टेलीविजन समाचार चैनलों का प्रसारण बंद हो गया है। हम आपको बता दें कि अधिकारियों ने स्थिति की गंभीरता को देखते हुए मोबाइल फोन सेवाएं बंद कर दी थीं।

इसके अलावा, बंगाली अखबार प्रोथोम अलो ने बताया है कि देशभर में ट्रेन सेवाएं निलंबित कर दी गईं क्योंकि प्रदर्शनकारियों ने सड़कें अवरुद्ध कर दी हैं। कई जगह जनता सुरक्षा अधिकारियों से भिड़ती देखी जा रही है। बताया जा रहा है कि बांग्लादेश के 64 में से 47 जिलों में हुई हिंसा में मरने वालों की कुल संख्या शुक्रवार रात 105 तक पहुंच गई। बताया जा रहा है कि देशभर में हजारों लोग हिंसा के दौरान घायल हुए हैं। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक प्रदर्शनकारियों ने ढाका के रामपुरा इलाके में सरकारी बांग्लादेश टेलीविजन भवन की घेराबंदी कर दी और इसके अगले हिस्से को क्षतिग्रस्त कर दिया और वहां खड़े अनेक वाहनों को आग लगा दी। इससे वहां पत्रकारों सहित कई कर्मचारी फंस गए।

हम आपको बता दें कि ढाका और अन्य शहरों में विश्वविद्यालय के छात्र 1971 में पाकिस्तान से देश की आजादी के लिए लड़ने वाले युद्ध नायकों के रिश्तेदारों के लिए सार्वजनिक क्षेत्र की कुछ नौकरियों को आरक्षित करने की प्रणाली के खिलाफ कई दिनों से रैलियां और विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए रबड़ की गोलियों, आंसू गैस और ध्वनि ग्रेनेड का इस्तेमाल जारी रखा हुआ है। अधिकारियों ने मरने वालों की तत्काल पहचान जारी नहीं की लेकिन खबरों से पता चलता है कि मृतकों में से अधिकतर छात्र शामिल हैं।

बढ़ती हिंसा के कारण अधिकारियों को ढाका आने-जाने वाली रेलवे सेवाओं के साथ-साथ राजधानी के अंदर मेट्रो रेल को भी बंद करना पड़ा था। बांग्लादेश सरकार ने प्रदर्शनकारियों को विफल करने के लिए मोबाइल इंटरनेट नेटवर्क को बंद करने का आदेश दिया था। सरकार ने कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए राजधानी सहित देश भर में अर्धसैनिक बल ‘बॉर्डर गार्ड बांग्लादेश’ के जवानों को तैनात किया है। देश में सरकारी कार्यालय और बैंक खुले रहे क्योंकि अर्धसैनिक बल ‘बॉर्डर गार्ड बांग्लादेश’ (बीजीबी), दंगा रोधी पुलिस और विशिष्ट अपराध रोधी रैपिड एक्शन बटालियन (आरएबी) ढाका और अन्य प्रमुख शहरों में सड़कों पर तैनात थी, लेकिन सीमित परिवहन के कारण उपस्थिति कम रही। कई कार्यालयों ने अपने कर्मचारियों को घर से काम करने के लिए कहा। ढाका और देश के बाकी हिस्सों के बीच बस सेवाएं भी बंद रहीं और लोग घरों में ही रहे।

स्थानीय बाजारों और शॉपिंग मॉल में सीमित प्रवेश बिंदु खुले थे। सड़क किनारे कुछ दुकानें खुली दिखाई दीं, जबकि अन्य बंद रहीं। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि मौजूदा आरक्षण प्रणाली के चलते बड़े पैमाने पर मेधावी छात्र सरकारी सेवाओं से वंचित हो रहे हैं। कानून मंत्री अनीसुल हक ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि सरकार ने प्रदर्शनकारी छात्रों के साथ बातचीत के लिए बैठक करने का फैसला किया है। उन्होंने कहा, ‘‘जब भी वे सहमत होंगे, हम बैठक करेंगे।’’ कानून मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री शेख हसीना द्वारा बुधवार को किए गए वादे के अनुसार हिंसा की जांच के लिए उच्च न्यायालय के न्यायाधीश खोंडकर दिलिरुज्जमां के नेतृत्व में एक न्यायिक जांच समिति का गठन किया गया।

बहरहाल, हम आपको बता दें कि बांग्लादेश में वर्तमान आरक्षण प्रणाली के तहत 56 प्रतिशत सरकारी नौकरियाँ आरक्षित हैं, जिनमें से 30 प्रतिशत 1971 के मुक्ति संग्राम के स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों के लिए, 10 प्रतिशत पिछड़े प्रशासनिक जिलों, 10 प्रतिशत महिलाओं, पाँच प्रतिशत जातीय अल्पसंख्यक समूहों और एक प्रतिशत नौकरियां दिव्यांगों के लिए आरक्षित हैं। देखा जाये तो इस साल शेख हसीना के दोबारा निर्वाचित होने के बाद यह सबसे बड़ा प्रदर्शन है। बांग्लादेश में इस समय बेरोजगारी की दर काफी ज्यादा है। कुछ विश्लेषकों का कहना है कि हिंसा अब व्यापक आर्थिक संकटों जैसे उच्च मुद्रास्फीति और विदेशी मुद्रा के घटते भंडार के कारण भी हो रही है। देखा जाये तो इन विरोध प्रदर्शनों ने 1971 में पाकिस्तान से बांग्लादेश की आजादी के लिए लड़ने वालों और इस्लामाबाद के साथ सहयोग करने के आरोपियों के बीच पुरानी और संवेदनशील लड़ाई दोबारा सड़क पर ला दी है।

 

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